कतर के सॉवरिन वेल्थ फंड ने बैजू रवींद्रन को भारतीय अदालत में घसीट लिया है। उसने यह कदम इस संकटग्रस्त एडटेक उद्यमी से 23.5 करोड़ डॉलर की वसूली के लिए उठाया है। इससे कंपनी की वैश्विक कानूनी लड़ाई और बढ़ गई है और इसमें भारत के सबसे प्रमुख स्टार्टअप संस्थापकों में शुमार उद्यमी फंस गया है। कतर इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (क्यूआईए) ने अपनी सहायक कंपनी कतर होल्डिंग एलएलसी के जरिये बैजू रवींद्रन और उनकी निवेश कंपनी बैजूस इन्वेस्टमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड (बीआईपीएल) के खिलाफ अपनी कानूनी लड़ाई तेज कर दी है।
उसने कर्नाटक उच्च न्यायालय से रवींद्रन के खिलाफ मध्यस्थता फैसले के तहत वसूली की मांग की है जिन्होंने व्यक्तिगत रूप से 15 करोड़ डॉलर के ऋण की गारंटी दी थी और जिसे चुकाया नहीं गया। उसने 28 फरवरी, 2024 से भुगतान की तारीख तक दैनिक आधार पर बढ़ रहे 4 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की भी मांग की है। यह ब्याज अब 1.4 करोड़ डॉलर (करीब 123 करोड़ रुपये) से अधिक हो चुका है।
यह विवाद सितंबर 2022 से शुरू हुआ है जब कतर होल्डिंग ने बीआईपीएल को 15 करोड़ डॉलर की वित्तीय सहायता दी थी। इस ऋण की व्यक्तिगत गारंटी थिंक ऐंड लर्न प्राइवेट लिमिटेड (संकटग्रस्त एडटेक कंपनी बैजूस) के सह-संस्थापक और प्रमुख शेयरधारक बैजू रवींद्रन ने दी थी। इस रकम का इस्तेमाल आकाश एजुकेशनल सर्विसेज लिमिटेड में 17,891,289 शेयरों के अधिग्रहण की वित्तीय सहायता के लिए किया गया था और इन शेयरों के हस्तांतरण पर स्पष्ट प्रतिबंध था।
क्यूआईए ने आरोप लगाया कि इस समझौते का उल्लंघन करते हुए बाद में ये शेयर रवींद्रन ने नियंत्रित सिंगापुर की अन्य कॉर्पोरेट इकाई को हस्तांतरित कर दिए गए जिसका नियंत्रण बैजू के पास था। बार-बार की चूक के बाद कतर होल्डिंग ने वित्तीय सहायता की व्यवस्था खत्म कर दी और 23.5 करोड़ डॉलर की शीघ्र अदायगी की मांग की।