इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय इन दिनों गूगल प्ले स्टोर के साथ बातचीत कर रहा है ताकि ऋण देने वाले डिजिटल ऐप के कदाचार को रोकने का तरीका खोजा जा सके। इससे जुड़े उपाय के विकल्पों में ऐप को उपयोगकर्ता के डेटा तक पहुंचने से रोकना भी शामिल हो सकता है। जानकार लोगों का कहना है कि कुछ अधिकारियों का मानना है कि इस तरह के मुद्दे अलग-अलग मामले के आधार पर ही निपटाए जा सकते हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा उधारकर्ताओं को लुभाने वाले ऋण, उत्पीड़न और ब्लैकमेल से बचाने के लिए अनियमित उधार गतिविधियों (बीयूएलए) पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक कानून की सिफारिश करने के एक हफ्ते बाद यह घटनाक्रम सामने आया है। केंद्रीय बैंक आरबीआई ने 10 अगस्त के अपने नियामकीय मसौदे में यह अनिवार्य किया है कि केवल उसके द्वारा विनियमित संस्थाओं या कानून के तहत अनुमति पाने वाली संस्थाएं ही ऋण वितरण कर सकती है। इसने यह भी कहा कि डिजिटल ऐप वाले ऋण सीधे उधारकर्ताओं के बैंक खाते में जमा किए जाने चाहिए, न कि किसी तीसरे पक्ष के माध्यम से इसे दिया जाना चाहिए
इसने ऐप को ऐप स्टोर के लिए अपना लाइसेंस बनाने के लिए एक प्रणाली की जरूरत पैदा कर दी है। सूत्रों ने कहा कि गूगल प्ले स्टोर फिलहाल आदेश के कानूनी पहलुओं की समीक्षा कर रहा है। पिछले साल, आरबीआई ने जनवरी 2020 से मार्च 2021 तक ऋण देने वाले डिजिटल ऐप के खिलाफ लगभग 2,562 शिकायतें पाने के बाद एक पैनल का गठन किया था। बैंकिंग नियामक ने प्ले स्टोर पर 600 से अधिक बिना पंजीकरण वाले ऋण देने वाले ऐप उपलब्ध थे। इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘कानून प्रवर्तन एजेंसियों और अन्य संबंधित अधिकारियों को बिना पंजीकरण वाले उधार देने वाले ऐप्स को हटाने के लिए गूगल प्ले स्टोर से संपर्क करना चाहिए।’ उन्होंने कहा कि ऋण देने वाले डिजिटल मंच की अवैध गतिविधियां पहले से ही भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अधीन हैं। उन्होंने कहा, ‘इस तरह के ऐप्लिकेशन को अलग-अलग मामले के आधार पर हटाया जा सकता है।’
मोबाइल पर कर्ज देने वाले ऐप कुछ सौ रुपये से लेकर लगभग 10,000 रुपये तक के तत्काल व्यक्तिगत ऋण की पेशकश करते हैं और छोटे कर्ज देने के उनके अपने व्यावसायिक मॉडल के कारण उन्हें ‘चीनी ऋण ऐप’ के रूप में भी जाना जाता है। जांच एजेंसियों ने पाया है कि इनमें से कई ऐप अवैध रूप से सात दिनों से लेकर एक महीने तक की अवधि के लिए ऋण देते हैं।
कर्ज लेने वाले कई लोगों ने शिकायत की है कि अगर वे भुगतान की तारीख चूक जाते हैं तो ये मंच उन्हें ब्लैकमेल करते हैं। आठ महीने पहले, महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक स्थानीय कारोबारी ने नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा कि उन्होंने ऐसे ही किसी तुरंत कर्ज देने वाले ऐप, यानी इंस्टैंट लोन ऐप से 10,000 रुपये उधार लिए थे। उन्होंने कहा कि मंच संचालकों ने उन्हें अपमानजनक संदेशों और धमकियों के साथ ब्लैकमेल करना शुरू कर दिया।
उस व्यक्ति ने कहा, ‘मेरी तस्वीरों को अनुचित तरीके से दिखाते हुए उसे मेरी संपर्क सूची में सभी को इस संदेश के साथ भेजा गया कि मैंने कोई धोखाधड़ी की है। इससे निजी रूप से मेरी मानहानि हुई और मेरे ग्राहकों के साथ मेरे व्यावसायिक संबंध भी प्रभावित हुए। कम से कम चार कर्जदार ऐसे हैं जिन्होंने मेरे शहर में अकेले इसी तरह के दुर्व्यवहार का सामना किया है।’ उन्होंने कहा कि कर्ज देने वाला मोबाइल ऐप बकाया राशि का भुगतान करने के बावजूद उन्हें और अधिक पैसे के लिए ब्लैकमेल करता रहा।
पिछले महीने, तत्काल ऋण देने वाले ऐप के वसूली एजेंटों के कथित उत्पीड़न के चलते कर्ज लेने वाले तीन व्यक्तियों की आत्महत्या के बाद तेलंगाना सरकार ने आरबीआई को लिखा था। राज्य सरकार ने कहा कि धोखाधड़ी वाले ऋण ऐप से संबंधित आपराधिक मामले वर्ष 2022 में 1,300 फीसदी से अधिक बढ़कर 900 हो गए जो 2021 में 61 थे। आरबीआई ने अपने हालिया नियामकीय फ्रेमवर्क में कहा, ‘डीएलए (डिजिटल लेंडिंग ऐप) द्वारा जुटाया गया डेटा जरूरत पर आधारित होना चाहिए। इसका ऑडिट ट्रेल्स स्पष्ट होना चाहिए और उधार लेने वालों की स्पष्ट सहमति के साथ ही ऐसा किया जाना चाहिए।’ इसमें कहा गया है कि ऐप को मोबाइल फोन संसाधनों जैसे कि फाइलें और मीडिया, संपर्क सूची, कॉल लॉग्स, टेलीफोन के फंक्शन आदि तक पहुंच नहीं बनानी चाहिए।
मंत्रालय के अधिकारियों ने कहा कि वे इस बात की जांच कर रहे हैं, जिसके लिए डिजिटल ऋण देने वाले ऐप को उपयोगकर्ताओं का संपर्क विवरण हासिल करना जरूरी हो जाता है। उन्होंने कहा कि उपयोगकर्ता डेटा का संग्रह, विशेष मकसद के लिए और एक सीमा के तहत होना चाहिए।
सूत्रों ने कहा कि मंत्रालय ऐप की पहुंच केवल उन आवश्यक डेटा तक सीमित रखने के प्रावधानों पर विचार कर रहा है जो संचालन के लिए जरूरी हैं। इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, ‘संदेशों को पढ़ने और फोन से मीडिया तक की पहुंच की भी जरूरत पड़ने पर जांच की जानी चाहिए।’