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सिर्फ आयोग ही टैरिफ में संशोधन कर सकता है

Last Updated- December 09, 2022 | 11:40 PM IST

सर्वोच्च न्यायालय ने दोहराया है कि विद्युत दरों में संशोधन का अधिकार सिर्फ उत्तर प्रदेश विद्युत नियमन आयोग के पास ही है। किसी भी तरह के संशोधन के लिए आयोग से संपर्क किया जाना चाहिए।


न्यायालय ने यह बात ‘बदरी केदार पेपर लिमिटेड बनाम यूपी इलेक्ट्रिसिटी रेग्युलेटरी कमीशन’ मामले में कही है। राज्य के उद्योगों में उत्तर प्रदेश विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा जारी सर्कुलर को लेकर भ्रम बना हुआ था। लगभग 10 रिट याचिकाएं इलाहाबाद उच्च न्यायालय में दायर की गईं जिन्हें खारिज कर दिया गया था।

हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने कंपनी की अपील को मंजूर कर लिया और जोर देकर कहा कि यूपी इलेक्ट्रिसिटी रिफर्म्स ऐक्ट 1999 के तहत निगम टैरिफ में बदलाव नहीं कर सकता, यह आयोग का कार्य था।

निर्यातक पर फौजदारी नहीं, दीवानी मामला

अगर विदेशी खरीदार माल में कमी की शिकायत करता है तो ऐसी स्थिति में किसी निर्यातक पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने ‘शेरॉन मिशेल बनाम स्टेट ऑफ तमिलनाडु’ मामले में यह फैसला दिया है। इस मामले में टीएमएस फैशन प्राइवेट लिमिटेड एक प्रमाणित एजेंट है।

इसने आरबी अपैरल्स इम्पेक्स से संपर्क किया जो जर्मनी में खरीदारों के लिए कार्डिगन की आपूर्ति के लिए होजरी गारमेंट के निर्माण में लगी है। लेकिन जब माल की खेप जर्मनी पहुंची तो खरीदार ने कई कमियां निकालते हुए इसे ठुकरा दिया।

इसके बाद टीएमएस फैशन और इसके प्रबंधकों एवं निदेशकों के खिलाफ मामला दर्ज करा दिया गया। ये लोग इस मामले को चुनौती देने के लिए मद्रास उच्च न्यायालय में चले गए। लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय ने इनके अनुरोध को ठुकरा दिया।

सर्वोच्च न्यायालय ने इनके तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि यह बिक्री के अनुबंध से जुड़ा दीवानी मामला है और इसलिए सामान की खेप को ठुकराए जाने के लिए प्रबंधकों पर आपराधिक मुकदमा नहीं चलाया जा सकता।

अवैध इस्तेमाल वाले वाहन के मालिक को मुआवजा नहीं

सर्वोच्च न्यायालय ने एक फैसले में कहा है कि किसी बीमित निजी वाहन का मालिक उस स्थिति में किसी तरह के मुआवजे का हकदार नहीं है जब एक टैक्सी के रूप में गैर-कानूनी तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा उसका वाहन सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाता है।

न्यायालय ने नैशनल इंश्योरेंस कंपनी की एक अपील पर सुनवाई करते हुए कहा है कि वाहन का गैर-कानूनी इस्तेमाल अनुबंध का उल्लंघन है और ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी बीमित वाहन के मालिक को किसी तरह का मुआवजा देने के लिए जिम्मेदार नहीं है।

नैशनल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा यह अपील नैशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिड्रेसल कमीशन (एनसीडीआरसी) और स्टेट कंज्यूमर डिस्प्यूट्स रिडे्रसल कमीशन, छत्तीसगढ़ द्वारा पारित दिशा-निर्देशों को चुनौती देने के लिए दायर की गई।

दोनों उपभोक्ता फोरम ने बीमा कंपनी को दुर्घटना का शिकार हुई एक मारुति वैन के मालिक को 90,000 रुपये का मुआवजा चुकाने का आदेश दिया था।

First Published - February 1, 2009 | 11:11 PM IST

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