facebookmetapixel
बारिश-बाढ़ से दिल्ली में सब्जियों के दाम 34% तक बढ़े, आगे और महंगाई का डरपब्लिक सेक्टर बैंकों को टेक्नोलॉजी और इनोवेशन पर करना होगा फोकस: SBI चेयरमैन शेट्टीGST 2.0: फाडा ने पीएम मोदी को लिखा पत्र, कंपनसेशन सेस क्रेडिट अटका तो होगा 2,500 करोड़ का नुकसानप्रीमियम स्कूटर बाजार में TVS का बड़ा दांव, Ntorq 150 के लिए ₹100 करोड़ का निवेशGDP से पिछड़ रहा कॉरपोरेट जगत, लगातार 9 तिमाहियों से रेवेन्यू ग्रोथ कमजोरहितधारकों की सहायता के लिए UPI लेनदेन पर संतुलित हो एमडीआरः एमेजॉनAGR बकाया विवाद: वोडाफोन-आइडिया ने नई डिमांड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख कियाअमेरिका का आउटसोर्सिंग पर 25% टैक्स का प्रस्ताव, भारतीय IT कंपनियां और GCC इंडस्ट्री पर बड़ा खतरासिटी बैंक के साउथ एशिया हेड अमोल गुप्ते का दावा, 10 से 12 अरब डॉलर के आएंगे आईपीओNepal GenZ protests: नेपाल में राजनीतिक संकट गहराया, बड़े प्रदर्शन के बीच पीएम ओली ने दिया इस्तीफा

मुआवजे के लिए स्वयं प्रीमियम भरना जरूरी नहीं

Last Updated- December 08, 2022 | 10:40 AM IST

अगर किसी व्यक्ति का बीमा हुआ है और उसका प्रीमियम उसकी बजाय कोई और भर रहा है ।


और कुछ दिनों बाद सड़क हादसे में उस व्यक्ति की मौत हो जाए तो बीमा कंपनी को इस स्थिति में भी उस व्यक्ति के आश्रित को मुआवजे का भुगतान करना पड़ेगा।

यह मामला आत्मा राम नाम के एक ट्रक डाइवर से जुड़ा है। उसका बीमा यूनाइटेड इंडिया एश्योरेंस लिमिटेड से हुआ था। एक हादसे में उसकी मौत हो गई लेकिन उसके आश्रित प्रीमियम अदा करते रहे। बैंक भी तीन साल तक प्रीमियम स्वीकार करता रहा।

ड्राइवर के आश्रित कामगारों के मुआवजे अधिनियम के तहत मुआवजे की मांग कर रहे हैं। इस अधिनियम के मुताबिक बीमा कंपनी को इन आश्रितों को मुआवजे के तौर पर 1.42 लाख रुपये की रकम अदा करनी है।

बीमा कंपनी ने इस रकम को देने से मना कर दिया। उच्चतम न्यायालय ने बीमा कंपनी के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें कंपनी ने कहा कि वास्तविक बीमा धारक की मौत के बाद यह बीमा अनुबंध स्वत: ही समाप्त हो जाता है।

न्यायालय का कहना है कि केवल नाम में गड़बड़ी की वजह से ही यह खारिज नहीं हो जाता। साथ ही न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर यह मामला धोखाधड़ी का होता उस स्थिति में यह खारिज हो जाता।  

सिंघानिया हॉस्पिटल के मामले पर पुनर्विचार

सरकार ने उन अस्पतालों को चिकित्सीय उपकरण मंगाने में सीमा शुल्क में छूट देने की घोषणा की है जिनमें दस फीसदी बेड ऐसे लोगों के लिए हैं जिनकी मासिक आय 500 रुपये प्रति माह से कम है और इन अस्पतालों के बहिरंग विभाग (ओपीडी) में 40 फीसदी इलाज इतनी ही आमदनी वाले लोगों का होता हो।

सीमा शुल्क विभाग इस तरह के कानून को 1988 से ही लागू करने की कोशिश में लगा है। पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय ने कस्टम अपेलिट ट्राइब्यूनल से पूछा कि सुनीता देवी सिंघानिया हॉस्पिटल के मामले पर पुनर्विचार किया जाए। यह मामला सिंघानिया हॉस्पिटल के चिकित्सा उपकरण मंगाने से जुड़ा है।

विभाग ने सिंघानिया हॉस्पिटल पर इन उपकरणों को मंगाने और सीमा शुल्क में छूट लेने के चलते फाइन और पेनाल्टी लगा दिया। दूसरी ओर हॉस्टिपल का दावा है कि उनके यहां पर गरीब लोगों का मुफ्त में इलाज किया जाता है।

इस मामले में सिंघानिया हॉस्पिटल के  अलावा मिराज मेडिकल सेंटर और बालाभाई नानावती हॉस्टिपल भी ट्राइब्यूनल के सामने हाजिर हुए।

इकाइयों को राहत

उत्तर प्रदेश की उन इकाइयों को राहत मिल गई जहां पर धान की भूसी को ईंधन के तौर पर उपयोग किया जाता है। दरअसल, राज्य सरकार इन इकाइयों पर व्यापार कर लगाने की योजना बना रही थी।

लेकिन उच्चतम न्यायालय ने इन इकाइयों को राज्य सरकार के इस प्रस्तावित कर से बचा लिया। राज्य सरकार का तर्क था कि धान की भूसी और चावल की भूसी एक ही तरह के हैं। इसलिए इन इकाइयों को चावल की भूसी के बराबर ही कर अदा करना चाहिए।

ट्रेड टैक्स ट्राइब्यूनल और इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि ये दोनों भूसी अलग-अलग तरह की हैं और धान की भूसी पर ज्यादा कर नहीं लगाना चाहिए। उच्चतम न्यायालय ने भी इस फैसले को बरकरार रखा।

First Published - December 21, 2008 | 11:33 PM IST

संबंधित पोस्ट