ट्रांसफर प्राइस का मतलब उस कीमत से है जो एक रिस्पॉन्सिबिलिटी सेंटर से दूसरे में या फिर एक ही समूह की एक कंपनी से दूसरी कंपनी में उत्पादों या सेवाओं के हस्तांतरण में इस्तेमाल की जाती है।
विभिन्न इकाइयां जो संयुक्त रूप से उत्पादों और सेवाओं का विकास करती हैं, उनको तैयार करती हैं और बाजार में उन्हें बेचती हैं, उनके बीच राजस्व के बंटवारे की एक पद्धति ट्रांसफर प्राइसिंग है। ट्रांसफर प्राइसिंग सिस्टम को तैयार करने के पीछे कुछ इस तरीके के उद्देश्य होते हैं: समूह की हर इकाई को संबंधित और आवश्यक सूचनाओं से लैस करना ताकि संगठन को समग्र तौर पर कोई निर्णय लेने में सहूलियत हो।
साथ ही इसके बीच एक सोच यह भी होती है कि अगर हर इकाई को लक्ष्यों का अंदाजा होगा तो हर डिविजनल प्रबंधक अपने अपने स्तर से इसे पूरा करने की कोशिश में जुटा रहेगा और इससे डिविजनल परफॉर्मेंस को सुधारने में सहायता मिलेगी। बुनियादी सिद्धांत यह है कि ट्रांसफर प्राइस उस कीमत के बराबर होनी चाहिए जो उत्पादों या सेवाओं को किसी बाहरी उपभोक्ता को बेचे जाने या फिर किसी बाहरी स्त्रोत से खरीदे जाने पर चुकानी पड़ती।
बाजार आधारित ट्रांसफर प्राइसिंग सिस्टम ऐसा होना चाहिए जो बेहतर परिणाम दे सके, खासतौर पर तब जब कि उस उत्पाद का बाजार गर्म हो और बिक्री इकाई उत्पाद को किसी भी बाहरी या भीतरी खरीदार को बेच सकने की स्थिति में हो। साथ ही इस प्रक्रिया के अंतर्गत खरीद इकाई के पास भी बाहरी या भीतरी विक्रेता के पास से सभी आवश्यकताओं के पूरा होने की गुंजाइश होनी चाहिए। ऐसी स्थिति में कंपनी को इकाइयों को स्वायत्तता देने के लिए कुछ और खर्च नहीं करना पड़ता है।
उदाहरण के लिए अगर डिविजन ए अपने किसी उत्पाद को प्रति यूनिट 100 रुपये के बाजार भाव पर बेचने का निर्णय लेती है और डिविजन बी उसी उत्पाद को बाजार से ही बाजार भाव पर खरीदने का मन बनाती है तो फर्म के लिए नेट कैश फ्लो शून्य होगा। अगर उस उत्पाद के लिए बाजार का रुख उस वक्त अनुकूल नहीं होगा तो सिस्टम खरीद डिविजन के जरिए उत्पादन क्षमता का अंशत: दोहन ही कर पाएगी। ट्रांसफर प्राइस कुल मार्जिनल कॉस्ट के आधार पर तय होगी और ऐसे स्तर पर जहां मार्जिनल कॉस्ट मार्जिनल रेवेन्यू के बराबर होगी वहां खरीद डिविजन का आउटपुट प्रभावित होगा।
ऐसे में फर्म सकल रूप में अपना मुनाफा बढ़ाने में असमर्थ रहेगी क्योंकि वास्तविक मार्जिनल कॉस्ट ट्रांसफर प्राइस से कम होगा। अगर फर्म इसे बाहरी इकाइयों को बेचती तो बहुत हद तक संभव है कि वह मुनाफा कमा सकती थी। अगर बाजार भाव के हिसाब से कीमत पाना मुश्किल हो तो ट्रांसफर प्राइस का निर्धारण लागत और मुनाफे को जोड़ कर किया जा सकता है। लागत आधारित ट्रांसफर प्राइस का इस्तेमाल करने में परहेज करना चाहिए। बाजार आधारित ट्रांसफर प्राइस का विकल्प न हो तो ही इसका इस्तेमाल करना ठीक होता है क्योंकि लागत आधारित मूल्य की गणना काफी कठिन होती है और नतीजे उत्साहजनक नहीं होते हैं।