बिजली उत्पादन क्षेत्र में निजी निवेश का रास्ता साफ होने के करीब एक दशक बाद बिजली कानून, 2003 में संशोधन किया जा रहा है, जिससे घाटे में चल रहे बिजली वितरण क्षेत्र में निजी कंपनियों के प्रवेश की इजाजत मिल जाएगी। बिजली वितरण क्षेत्र को लाइसेंस रहित बनाने का अपना पुराना रुख बदलते हुए केंद्र सरकार अब एक ही क्षेत्र में कई कंपनियों को परिचालन करने देगी। इससे बिजली वितरण के क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी।
केंद्रीय बिजली मंत्री आर के सिंह ने बिजली (संशोधन) विधेयक, 2022 को आज लोकसभा में पेश किया और कहा कि समीक्षा के लिए इसे ऊर्जा पर स्थायी समिति के पास भेजा गया है। बिजली कानून की धारा 14 और 42 में प्रस्तावित संशोधन के जरिये सरकार किसी राज्य में वितरण लाइसेंस के लिए आवेदन करने वाली हर कंपनी को वितरण नेटवर्क का उपयोग करने की अनुमति देगी। इससे उपभोक्ताओं को संबंधित क्षेत्र में कई आपूर्तिकर्ता चुनने का विकल्प मिलेगा।
विधेयक के इन प्रावधानों का विपक्षी दल और कर्मचारी संगठन विरोध कर रहे हैं। दिल्ली, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और केरल सहित कई गैर-भाजपा शासित राज्य 2020 से ही विधेयक के कई प्रावधानों का विरोध कर रहे हैं। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘विपक्ष शुरू से ही विवादास्पद विधेयक का विरोध कर रहा है और कई राज्यों तथा किसानों ने भी इस पर आपत्ति जताई है। अब स्थायी समिति में इन चिंताओं पर ध्यान दिया जा सकता है। उम्मीद है कि इसमें राय-मशविरे के साथ काम होगा।’
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट में विधेयक को खतरनाक बताते हुए केंद्र से अनुरोध किया कि वह इस पर जल्दबाजी न करे। उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं मुफ्त में मिलने की चिंता करने के बजाय हमें केंद्र द्वारा अपने कारोबारी मित्रों के 10 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ करने पर चिंतित होना चाहिए। केजरीवाल केंद्रीय बिजली मंत्री के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे जिसमें उन्होंने कहा था कि कोई राज्य मुफ्त बिजली दे सकता है, लेकिन इसकी भरपाई उसे अपनी जेब से करनी चाहिए और बोझ डिस्कॉम पर नहीं डालना चाहिए। सिंह ने कहा कि विधेयक पर स्थायी समिति में व्यापक चर्चा होगी और विधेयक में किसानों के लिए बिजली सब्सिडी बंद करने को कोई प्रावधान नहीं है।
केंद्रीय और राज्य बिजली वितरण कंपनियों के इंजीनियरों के संगठन ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) ने पिछले हफ्ते बयान जारी कर बिजली वितरण के निजीकरण के खिलाफ काम बंद कर सामूहिक प्रदर्शन करने का आह्वान किया था। सीटू के सचिव स्वदेश देवराय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजे जाने के कदम का स्वागत किया। उन्होंने कहा, ‘विधेयक को स्थायी समिति में भेजा गया है, ऐसे में सीटू का प्रतिनिधिमंडल भी समिति से मिलेगा।’
एक ही क्षेत्र में कई बिजली आपूर्तिकर्ताओं के लिए विधायी प्रस्ताव ऐसे समय में आया था, जब केंद्र ने बिजली वितरण क्षेत्र में सुधार के लिए 3 लाख करोड़ रुपये की योजना शुरू की थी। पिछले 15 वर्षों में चार पुरुद्धार योजनाओं के बावजूद राज्यों के स्वामित्व वाली बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय और परिचालन स्थिति खस्ताहाल है। पिछली पुनरुद्धार योजना ‘उदय’ वित्त वर्ष 2020 में खत्म हुई थी और अधिकतर राज्य निर्धारित लक्ष्य पूरा करने में विफल रहे थे।
एक अन्य प्रस्तावित संशोधन राष्ट्रीय लोड डिस्पैच केंद्र को सशक्त बनाने का है, जिसके तहत पावर ग्रिड ऑपरेटर बिजली उत्पादक कंपनियों को भुगतान में चूक करने वाले डिस्कॉम या राज्य की बिजली आपूर्त कम कर सकता है। यह संशोधन डिस्कॉम पर बिजली उत्पादक कंपनियों का 1.12 लाख करोड़ रुपये (जुलाई अंत तक) का भारी बकाया देखते हुए किया गया है।
इसके साथ ही केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग और राज्य विद्युत नियामक आयोग को सशक्त बनाने की बात है, जिन्हें अब दीवानी अदालत का दर्जा दिया जाएगा। राज्य विद्युत नियामक आयोग अब डिस्कॉम द्वारा शुल्क संशोधन के लिए आवेदन नहीं किए जाने के बावजूद स्वत: संज्ञान में शुल्क आदेश जारी कर सकेगा।