मार्च तिमाही में 24,000 करोड़ रु. के इरादतन चूक के मामले

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 15, 2022 | 5:02 AM IST

कोविड-19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन से पहले ही जानबूझकर डिफॉल्ट करने वाले लोगों की संख्या बढऩे लगी थी। ट्रांसयूनियन सिबिल के मार्च तिमाही के आंकड़ों का विश्लेषण दर्शाता है कि ऋणदाताओं ने 24,765.5 करोड़ रुपये की वसूली के लिए 1,251 मामले दर्ज कराए। ट्रांसयूनियन सिबिल जानबूझकर डिफॉल्ट करने वाले लोगों के खिलाफ दर्ज कराए गए मामलों का ब्योरा रखती है। ये आंकड़े कुछ देरी से जारी किए गए हैं। सभी ऋणदाता एकसमान रफ्तार से मामलों को अद्यतन नहीं करते हैं। इस वजह से जिन ऋणदाताओं के जानबूझकर डिफॉल्ट किए गए ऋणों की सं?या और मूल्य में बढ़ोतरी हुई है, उन्हें ही विश्लेषण में शामिल किया गया। ऐसे ऋणदाताओं की संख्या 15 थी।
विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड-19 महामारी की वजह से पैदा आर्थिक दबाव के बीच डिफॉल्ट की संख्या में काफी बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है। सरकार ने बीमारी के फैलाव को रोकने के लिए मार्च के अंत में देशव्यापी लॉकडाउन का आदेश दिया था। इस वजह से सभी आर्थिक गतिविधियां थम गई थीं, जिसका कारोबारों और उनकी बैंकों को कर्ज लौटाने की क्षमता पर बुरा असर पड़ा। जानबूझकर डिफॉल्ट करने वाले लोग उन्हें माना जाता है तो कर्ज चुकाने में समर्थ होने के बावजूद कर्ज नहीं चुुकाते हैं। इस विश्लेषण में एक करोड़ रुपये से अधिक की रकम का डिफॉल्ट करने वाले कर्जदारों को शामिल किया गया।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक आनंद टंडन ने कहा कि लॉकडाउन से उन सुनवाई पर भी असर पड़ा है, जिनसे ऐसे कारोबारी मालिकों को अपनी परिसंपत्तियों की बिक्री करनी पड़ती। ऐसे मामलों को निपटाने वाले राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) का कामकाज भी कोविड-19 से प्रभावित हुआ है। इससे ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे डिफॉल्टरों को मदद मिलेगी। उन्होंने कहा, ‘एनसीएलटी का कुुछ डर था, लेकिन अब आपने उसका कामकाज भी रोक दिया है।’ अन्य का भी मानना है कि ऐसे मामले बढ़ सकते हैं। एनसीएलटी में डिफॉल्ट के मामलों से जुड़े एक वकील ने आगामी तिमाहियों में डिफॉल्ट के मामलों को लेकर कहा, ‘स्थिति और विकराल होगी।’ डिफॉल्ट राशि में कुल बढ़ोतरी में राष्ट्रीयकृत या सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का हिस्सा करीब 82 फीसदी था। निजी बैंकों की हिस्सेदारी 17 फीसदी थी। शेष हिस्सेदारी विदेशी बैंकों की थी। आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की खुदरा अनुसंधान शाखा की 30 जून की बैंकिंग रिपोर्ट में कहा गया कि भारतीय रिजर्व बैंक के ऋणों लौटाने में कुछ समय की मोहलत देने से कोविड-19 के बाद बैंकिंग क्षेत्र का परिदृश्य धुंधला नजर आ रहा है। इस रिपोर्ट के लेखक अनुसंधान विश्लेषक काजल गांधी, विशाल नारनोलिया और यश बत्रा थे।  इसमें कहा गया, ‘आर्थिक मंदी से कारोबारी वृद्धि एक अंक में रही है। कोविड के कारण लगाए गए लॉकडाउन से आर्थिक मंदी और गहराई है। आरबीआई के मॉरेटोरियम से परिसंपत्ति गुणवत्ता स्थिर बनी रही, लेकिन अगस्त में मॉरेटोरियम समाप्त होने के बाद कर्ज लौटाने में सुधार को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।’

First Published : July 9, 2020 | 11:54 PM IST