भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बड़े नेताओं में से एक भुवन चंद्र खंडूड़ी के राजनीतिक शिष्य और उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत (57 वर्ष) को इस पहाड़ी राज्य में अपनी ईमानदार छवि और सादगी के लिए जाना जाता है। राज्य की भाजपा इकाई के ज्यादातर नेता इस बात से सहमति जताते हैं कि इस पद के लिए रावत के चयन ने सबको चौंकाया है क्योंकि केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक समेत पार्टी के बहुत से नेता होड़ में शामिल थे। तीरथ सिंह रावत पौड़ी संसदीय क्षेत्र से पहली बार सांसद बने हैं। रावत राज्य के 10वें मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने ऐसे समय राज्य की सत्ता संभाली है, जब विधानसभा चुनाव महज एक साल दूर हैं और यह उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी।
रावत का जन्म 9 अप्रैल, 1964 को पौड़ी जिले के सीरों गांव में हुआ था। उनकी इस पहाड़ी राज्य में राजनीतिक पारी की शानदार शुरुआत हुई थी। वह नवंबर 2000 में नित्यानंद स्वामी (दिवंगत) की अगुआई वाली भाजपा की अंतरिम सरकार में पहले शिक्षा मंत्री बने थे। उन्होंने शिक्षा मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान राज्य शिक्षा बोर्ड की स्थापना की और उन स्कूलों में नए शिक्षकों की नियुक्तियां कीं, जहां उनकी कमी थी।
जब वर्ष 2002 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ तो रावत को पौड़ी विधानसभा सीट पर चौंकाने वाली हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2007 के चुनाव में वह दोबारा हारे। रावत ने वर्ष 2012 में चौबट्टाखाल निर्वाचन क्षेत्र से अपना पहला विधानसभा चुनाव जीता। हालांकि उस समय उनके राजनीतिक गुरु खंडूड़ी चुनाव हार गए थे और भाजपा ने महज एक सीट से सत्ता गंवा दी थी। वर्ष 2013 में रावत को राज्य भाजपा प्रमुख की जिम्मेदारी दी गई। उस समय इस फैसले ने राज्य भाजपा के बहुत से नेताओं को चौंकाया था। वर्ष 2015 में उनकी जगह पार्टी के सांसद अजय भट्ट ने ली। लेकिन रावत जल्द ही भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बन गए। हालांकि वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्हें चौबट्टाखाल से टिकट नहीं दिया गया। वर्ष 2019 में जब भाजपा आलाकमान ने उन्हें पौड़ी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र से खंडूड़ी के पुत्र मनीष के खिलाफ पार्टी का टिकट दिया तो बहुत से लोग हैरान थे। भाजपा का एक वर्ग मान रहा था कि जब रावत के राजनीतिक गुरु का बेटा कांग्रेस से चुनाव लड़ रहा है तो उन्हें (रावत को) टिकट देना सही नहीं है। लेकिन खंडूड़ी ने यह साफ कर दिया कि उन्होंने इस चुनाव में रावत को अपना आशीर्वाद दिया है। आखिरकार रावत ने मनीष को तीन लाख से अधिक मतों से हराकर चुनाव जीता। यह पौड़ी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में सबसे बड़े अंतर से जीत थी।
रावत समाजशास्त्र में स्नातकोत्तर हैं। उन्होंने वर्ष 1983 में संघ प्रचारक के रूप में अपना करियर शुरू किया था। हालांकि वह हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय में छात्र यूनियन के अध्यक्ष थे। वह 1988 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए। वर्ष 1997 में उत्तर प्रदेश में एमएलसी बने।
रावत की पत्नी डॉ. रश्मि रावत डीएवी पीजी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक हैं। उनके एक पुत्री है। डॉ. रश्मि ने कहा, ‘जब वह (रावत) शिक्षा मंत्री थे, तब मैं 25 किलोमीटर का सफर तय कर एक प्राथमिक विद्यालय में पढ़ाने के लिए लिए देहरादून शहर में जाती थी। उस समय मुझे 5,000 रुपये वेतन मिलता था। इसकी वजह यह थी कि मुझे पता था कि राजनीति में काफी उतार-चढ़ाव आते हैं और पति-पत्नी में से किसी एक की नियमित नौकरी होनी चाहिए। लेकिन अब मैं डीएवी कॉलेज में सहायक प्राध्यापक के रूप में काम कर रही हूं।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे लगता था कि यह पद (मुख्यमंत्री) मेरे पति को मिलना चाहिए।’