विनिवेश पर स्वदेशी सुर हो रहे नरम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 12, 2022 | 8:52 AM IST

संघ परिवार के भीतर आर्थिक और दूसरे मामलों में नरेंद्र मोदी सरकार की आलोचना करने वाले शायद अब नरम पड़ रहे हैं क्योंकि सोमवार को पेश हुए केंद्रीय बजट को उनकी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है। इससे लगता है कि संघ के भीतर मोदी सरकार की आलोचना का स्वर मद्घम पड़ता जा रहा है।
पिछले साल पेश बजट पर स्वदेशी जागरण मंच का स्वर काफी तीखा रहा था, जिसने शिक्षा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की इजाजत समेत कई मसलों पर सरकार की जमकर आलोचना की थी। 2021-22 के बजट में उसे विनिवेश पर चिंता है मगर उसका लहजा बहुत नरम हो गया है। मंच ने कहा कि बेहतर होता अगर पहले सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) का कायाकल्प करने की कोशिश होती और उसके बाद किसी रणनीति निवेशक के बजाय बाजार में उसके शेयर बेच दिए जाते। भारतीय जीवन बीमा निगम के मामले में सरकार ने यही करने की बात कही है।
स्वदेशी जागरण मंच ने बजट में भारत पेट्रोलियम कॉरपोरेशन, एयर इंडिया, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ  इंडिया, कंटेनर कॉरपोरेशन ऑफ  इंडिया, पवन हंस, भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल), मेट्रो के लिए डिब्बे आदि बनाने वाली कंपनी के विनिवेश के प्रस्ताव पर ‘गहरी चिंता’ जताई है। यह रुख 2019 से अलग है, जब उसने पीएसयू के निजीकरण के खिलाफ आंदोलन छेडऩे का ऐलान किया था।
स्वदेशी जागरण मंच ने 2021-22 के बजट पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा, ‘बेहतर होगा कि इन उपक्रमों का रणनीतिक विनिवेश करने के बजाय उनका उनका प्रदर्शन करने का प्रयास हो और उसके बाद बाजार में उनके शेयर बेच दिए जाएं। करदाताओं के धन से बने उद्यमों का रणनीतिक विनिवेश सही नहीं है। प्रदर्शन सुधरने के बाद हिस्सेदारी बिक्री ही बेहतर तथा पारदर्शी विकल्प होता।’ अब दिसंबर, 2019 में हरिद्वार में स्वदेशी जागरण मंच की राष्ट्रीय परिषद में पारित प्रस्ताव याद कीजिए। उस प्रस्ताव में मुनाफे वाले सार्वजनिक उपक्रमों के प्रस्तावित विनिवेश पर राष्ट्रीय चर्चा कराने की मांग की गई थी। प्रस्ताव में कहा गया था कि मुनाफा देने वाले सार्वजनिक उपक्रमों पर कुछ कॉरपोरेट संस्थाओं की नजर है। यह चिंता भी जताई गई थी कि ये उपक्रम कॉरपोरेट संस्थाओं और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कौडिय़ों के भाव बेचे जा सकते हैं।
संघ के एक अंदरूनी सूत्र ने कहा, ‘स्वदेशी जागरण मंच और सरकार के संबंधों में बड़ा बदलाव आया है। सबसे खराब साल तब थे, जब हसमुख अढिया (2014 से 2018 तक राजस्व सचिव) वित्त मंत्रालय में थे। वह हमारी बात को एकदम खारिज कर देते थे। हमें लगता था कि वित्त मंत्री अरुण जेटली की रजामंदी भी उनके साथ थी।’ गुजरात विधानसभा चुनाव (दिसंबर 2017) से पहले जब राजकोट और सूरत के छोटे व्यापारियों ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के कारण अपना कारोबार चौपट होने की शिकायत की थी तब मंच ने जीएसटी दरों की खासी आलोचना की थी। उस समय शिकायत करने वाले कई कारोबारी संघ का ‘आर्थिक समूह’ कहलाने वाले संगठन लघु उद्योग भारती के सदस्य थे।
लेकिन 2018-19 में जब सरकार ने जीएसटी दरों में बदलाव कर दिया और और ‘आर्थिक समूह’ की दूसरी चिंता दूर करने के उपाय भी कर दिए तो तस्वीर बदल गई। उन चिंताओं में भारत को क्षेत्रीय समग्र आर्थिक साझेदारी (आरसीईपी) से बाहर रखना भी शामिल था और चीनी वस्तुओं के खिलाफ समूह के मुखर अभियान के बाद 2020 में भारत ने इस साझेदारी में शामिल होने से इनकार कर ही दिया। जब भारत ने आरसीईपी से बाहर रहने की बात की तब संस्था ने कहा था, ‘एसजेएम को लगता है कि आरसीईपी से पिछले छह साल में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा किए गए कई अच्छे काम बिगड़ गए होते। यह समझौता डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया और रोजगार सृजन के तमाम दूसरे रास्तों को बंद कर देता।’
एक सदस्य ने कहा, ‘2014-15 में स्मार्ट सिटी और बुलेट ट्रेन जैसी परियोजनाओं पर सरकार तथा आर्थिक समूह के बीच टकराव हो गया। मगर अब हालात सुधर गए हैं।’ उन्होंने कहा कि अब भारत केंद्रित नीतियों के प्रति झुकाव साफ दिख रहा है। उन्होंने कहा, ‘वित्त मंत्रालय के साथ हमारा काफी अधिक संवाद होता है।’
वित्त मंत्रालय ने अनौपचारिक तौर पर भी संपर्क किया है। मिसाल के तौर पर वित्त मंत्रालय में प्रमुख आर्थिक सलाहकार संजीव सान्याल आर्थिक मामलों पर विचार करने वाले ऐसे कई समूहों से जुड़े हैं, जो आर्थिक समूह ने बनाए हैं। एक सदस्य ने बताया, ‘उदाहरण के लिए सान्याल उन समूहों की बैठकों में नियमित रूप से रहते हैं, जो स्कूल और विश्वविद्यालय स्तर पर अर्थशास्त्र पढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में बदलाव की बात करते हैं। इस समूह को भारतीय शिक्षा मंडल कहा जाता है। हमें लगता है कि अर्थशास्त्र के अध्यापन पर उन लोगों का प्रभाव बहुत अधिक है, जो माक्र्सवादी अर्थशास्त्र पढ़े हैं। हम इसे बदलने जा रहे हैं और इतिहास तथा भारतीय सभ्यता पर सान्याल के काम से हमें नया नजरिया तैयार करने में मदद मिल रही है।’ इस तरह की आखिरी बैठक कुछ महीने पहले हुई थी।

First Published : February 2, 2021 | 11:24 PM IST