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गहलोत से राज्यपाल के तीन सवाल

Last Updated- December 15, 2022 | 4:20 AM IST

राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र, प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की राजनीतिक तकदीर के निर्णायक के रूप में उभरे हैं। मिश्र ने विधानसभा की बैठक बुलाने की कैबिनेट की अनुशंसा पर निर्णय लेने में पूरा समय लिया और उसे नए सवालों तथा दिशानिर्देशों के साथ वापस लौटा दिया। गहलोत ने कांग्रेस विधायकों से कहा कि उन्हें राजभवन से ‘छह पन्नों का एक और प्रेम पत्र’ मिला है।
राज्यपाल ने एक पत्र लिखकर तीन सवाल उठाते हुए कहा कि राज्यपाल का विधानसभा सत्र नहीं बुलाने का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने मुख्यमंत्री से सवाल किया कि क्या वह विश्वास मत हासिल करना चाहते हैं। उन्होंने लिखा, ‘क्या आप विश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं? इसका जिक्र प्रस्ताव में नहीं है लेकिन आप सार्वजनिक रूप से कहते आए हैं कि आप विश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं।’ उन्होंने यह भी पूछा कि क्या कोविड-19 की मौजूदा परिस्थितियों में विधायकों को सत्र में शामिल होने के लिए तीन सप्ताह का नोटिस दिया जाएगा। वह यह भी जानना चाहते हैं कि सामाजिक दूरी समेत विधायकों के स्वास्थ्य और साफ-सफाई के लिए क्या व्यवस्था की जाएगी।
राज्यपाल विधानसभा बुलाने में जल्दबाजी करने से इनकार कर रहे हैं जबकि गहलोत जल्द से जल्द बैठक चाहते हैं। उन्हें जितना इंतजार करना पड़ेगा, संभावनाओं पर उतना ज्यादा असर होगा। गहलोत खुशकिस्मत रहे कि राजस्थान उच्च न्यायालय ने भाजपा द्वारा छह बसपा विधायकों के कांग्रेस में विलय के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। यदि याचिका स्वीकार हो जाती और विलय अवैध घोषित हो जाता तो गहलोत सरकार का गिरना तय था।
उधर, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष सी पी जोशी ने सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल अपनी वह याचिका वापस ले ली है जो उन्होंने उच्चतम न्यायालय के आदेश के खिलाफ दाखिल की थी। उच्चतम न्यायालय ने उनसे कहा था कि वह पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट तथा 18 अन्य विधायकों की अर्हता समाप्त करने संबंधी नोटिस को अभी लंबित रखें। विधानसभा अध्यक्ष ने उच्च न्यायालय के इस आदेश को भी चुनौती दी थी जिसमें उनसे कहा गया था कि बागियों के खिलाफ अभी कोई निर्णय न लें। अब उनके पीछे हट जाने से लग रहा है कि अशोक गहलोत सरकार को बचाने का कानूनी रास्ता त्याग दिया गया है।
विधानसभा अध्यक्ष ने यह निर्णय संभवत: सर्वोच्च न्यायालय के उस सवाल के बाद किया जिसमें उनसे पूछा गया था कि उन्हें पायलट और विधायकों की अर्हता समाप्त करने का क्या अधिकार है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि लोकतंत्र में असहमति की आवाज को दबाया नहीं जाना चाहिए। शायद इसके बाद ही विधानसभा अध्यक्ष को लगा कि उच्चतम न्यायालय में निर्णय उनके पक्ष में नहीं होगा।
राज्यपाल की देरी के बाद गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके आचरण की शिकायत की। यह अपने आप में अस्वाभाविक है क्योंकि इस पूरी प्रक्रिया से प्रधानमंत्री का कोई लेनादेना नहीं है। इस मामले में गृह मंत्रालय प्रमुख है जबकि राज्यपाल राष्ट्रपति को रिपोर्ट करते हैं।
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने एक आभासी संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘मैं आशा करता हूं कि राष्ट्रपति देख रहे होंगे कि क्या हो रहा है-यह संसदीय लोकतंत्र का क्षय है, संविधान को धता बताया जा रहा है, उसका उल्लंघन किया जा रहा है।’ उन्होंने आशा जताई कि राष्ट्रपति परिस्थितियों के अनुसार सही निर्णय लेंगे। चिदंबरम ने कहा कि राष्ट्रपति को पूरा अधिकार है कि वह राज्यपाल से कहें कि वह गलत कर रहे हैं और उन्हें विधानसभा सत्र बुलाने का निर्देश दें।
यह पूछे जाने पर कि क्या राष्ट्रपति सीधे हस्तक्षेप कर सकते हैं, चिदंबरम ने कहा, ‘मुझे अभी भी यकीन है कि भारत के राष्ट्रपति हस्तक्षेप कर सकते हैं और राज्यपाल को विधानसभा सत्र बुलाने को कह सकते हैं।’
उन्होंने कहा कि वह आशा कर रहे हैं कि समझदार लोग राज्यपाल को समझाएंगे कि उन्हें विधानसभा सत्र बुलाया जाा चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्यपाल को ऐसे मामलों में विवेक से निर्णय लेने का अधिकार नहीं है।
चिदंबरम ने कहा कि यदि मुख्यमंत्री बहुमत साबित करना चाहते हैं तो उन्हें सत्र बुलाने का अधिकार है, कोई उनकी राह नहीं रोक सकता। सत्र बुलाने की राह बाधित करने का अर्थ है संसदीय लोकतंत्र की बुनियाद को चोट पहुंचाना। कांग्रेस ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर राज्यपाल के आचरण की शिकायत भी की है।
जयपुर के अलावा पार्टी ने अन्य राज्यों की राजधानियों में राजभवन के सामने प्रदर्शन किया और गिरफ्तारियां भी दीं।

First Published - July 27, 2020 | 11:04 PM IST

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