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चढ़ते पारे के बीच बिजली संकट दूर करने में जुटे केंद्र और राज्य

Last Updated- December 11, 2022 | 7:23 PM IST

तपती गर्मियों का मौसम जल्दी आने और औद्योगिक एवं कृषि गतिविधियों में तेजी के बीच कोयले की किल्लत होने से देश बीते छह साल में सबसे विषम बिजली संकट का सामना कर रहा है। केंद्र और राज्य स्थिति को संभालने का प्रयास कर रहे हैं और मौजूदा संकट के लिए एक-दूसरे पर आरोप भी लगा रहे हैं।
आंकड़ों के लिहाज से देखें तो घरेलू कोयले पर निर्भर करीब 59 फीसदी बिजली संयंत्रों के पास कोयले का भंडार काफी कम है और खदानों के समीप और दूर स्थित बिजली संयंत्रों के पास सामान्य स्टॉक का केवल 31 फीसदी कोयला बचा है। इसकी वजह से कई राज्य बिजली कटौती का सामना कर रहे हैं। दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, राजस्थान, झारखंड और हरियाणा जैसे राज्यों में बिजली कटौती करनी पड़ रही है। राजस्थान में बिजली की सबसे ज्यादा 33 फीसदी, हरियाणा में 14 फीसदी, उत्तर प्रदेश में 4.5 फीसदी और मध्य प्रदेश में 11 फीसदी किल्लत देखी जा रही है। 30 अपै्रल को उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में बिजली की कुल अधिकतम मांग 1,86,950 मेगावाट थी जबकि 12.78 करोड़ यूनिट बिजली की कमी थी। 29 अप्रैल को करीब 14 राज्यों में पारा 44 डिग्री के पार पहुंचने की वजह से बिजली की मांग रिकॉर्ड 2,07,111 मेगावाट तक पहुंच गई थी।
कई राज्य बिजली संकट दूर करने के उपाय में जुट गए हैं। बिजली की सबसे ज्यादा किल्लत का सामना कर रहे राजस्थान ने पूरे राज्य में दैनिक बिजली कटौती की समयसारणी घोषित कर दी है। इसके तहत संभागीय मुख्यालय में एक घंटे, जिला मुख्यालय में 2 घंटे और शहरों में तीन घंटे की बिजली कटौती की जाएगी।
गुजरात चैंबर ऑफ कॉमर्स ऐेंड इंडस्ट्रीज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष पथिक पटवारी ने कहा कि गुजरात सरकार ने उद्योगों से हफ्ते में अलग-अलग दिन साप्ताहिक अवकाश करने के लिए कहा है ताकि बिजली खपत में अचानक कमी या बढ़ोतरी से बचा जा सके। गुजरात में दैनिक बिजली की मांग साल भर पहले के मुकाबले 35 से 40 फीसदी बढ़ गई है लेकिन अधिकतर मांग कृषि और घरेलू क्षेत्रों से आ रही है।
ओडिशा में बिजली की अधिकतम मांग 4,567 मेगावाट है, जबकि उसेे 200 से 250 मेगावाट कम बिजली मिल रही है। राज्य की एक बिजली इकाई सालाना रखरखाव कार्य के लिए बंद है, लेकिन एनटीपीसी पर बोझ बढऩे से उसे भी कटौती करनी पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप राज्य में शनिवार से शाम 7 बजे से लोड का नियमन किया गया है।
राज्य सरकार की बिजली का व्यापार करने वाली इकाई ग्रिडको के प्रबंध निदेशक त्रिलोचन पांडा ने कहा कि दिन के समय सरकार ने किसी तरह का नियमन नहीं लागू किया है। महाराष्ट्र में प्रतिदिन 28,000 मेगावाट बिजली की मांग है, जो जून तक 30,000 मेगावाट पर पहुंच सकती है। राज्य सरकार ने पिछले 10 दिन में किसी तरह बिजली कटौती से बचने का प्रयास किया। पिछले साल की तुलना में बिजली की मांग 2,500 मेगावाट अधिक है।
लेकिन राज्य के बिजली संयंत्रों का कोयले का भंडार भी कम हो रहा है। बिजली विशेषज्ञों का कहना है कि महाराष्ट्र राज्य बिजली उत्पादन इकाइयों को रोजाना 1,41,000 टन से अधिक कोयले की जरूरत है। लेकिन उत्पादन संयंत्रों के पास 5,95,000 टन का ही स्टॉक है जिससे 4 दिन की जरूरत ही पूरी हो सकती है। राज्य सरकार के एक अधिकारी ने कहा, ‘महाजेनको जल्द ही करीब 14 लाख टन अतिरिक्त कोयले का आयात करेगी, जिनमें से 4 लाख मई के मध्य से आने लगेगा।’ महावितरण रोजाना 24,200 मेगावाट बिजली का वितरण करती है, जिनमें से महाजेनको 7,700 मेगावाट की आपूर्ति कर रही है। तमिलनाडु गर्मियों में बिजली की मांग में बढ़ोतरी से निपटने के लिए 4.8 लाख टन कोयला आयात करने के बारे में विचार कर रहा है। यह कोयला 20 मई से पहले आयात किया जाएगा।
गौरतलब है कि केंद्र ने राज्यों से अगले तीन साल आयात बढ़ाने का आग्रह किया है। राज्य कोयले की किल्लत से जूझ रहे हैं, इसलिए नवीकरणीय ऊर्जा उपयोगी साबित हो रही है। गुजरात का ही उदाहरण लेते हैं। राज्य में शुक्रवार को बिजली की खपत 21,000 मेगावाट को पार कर गई और सरकार बिना बिजली कटौती के मांग पूरी करने में सफल रही। राज्य डिस्कॉम गुजरात ऊर्जा विकास निगम लिमिटेड (जीयूवीएनएल) के प्रबंध निदेशक जय प्रकाश शिवहरे ने कहा, ‘हम मौजूदा ताप विद्युत क्षमता के अलावा अच्छे सौर और पवन ऊर्जा उत्पादन के जरिये मांग पूरी करने में सक्षम रहे हैं।’ राज्य बिजली आपूर्ति के लिए अन्य करारों के बारे में विचार कर रहा है।
नवीकरणीय ऊर्जा कर्नाटक को भी राहत मुहैया करा रही है। राज्य के ऊर्जा विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव जी कुमार नायक ने कहा, ‘हमारी स्थापित नवीकरणीय क्षमता हमारी जरूरत की करीब 52 फीसदी है और उसमें से करीब 35 से 40 फीसदी मांग केवल नवीकरणीय ऊर्जा से पूरी की जाती है।’पूर्व में पश्चिम बंगाल अपना कोयला उत्पादन बढ़ा रहा है। हालांकि इसका कोल इंडिया के साथ लिंकेज समझौता 142.7 लाख टन का है, लेकिन इसने पिछले साल अपनी खदानों से 123 लाख टन कोयले का उत्पादन किया। पश्चिम बंगाल बिजली विकास निगम (डब्ल्यूबीपीडीसीएल) के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक पी बी सलीम ने कहा, ‘इस साल राज्य का लक्ष्य 190 लाख टन उत्पादन का है।’ इस संकट के बारे में सबसे पहले इस सप्ताह दिल्ली सरकार ने आगाह किया था, जिसने देश भर में बिजली संकट को लेकर चिंता जताई थी। इसने मेट्रो और अस्पताल जैसी सेवाओं में दिक्कतें पैदा होने की चेतावनी दी थी। हालांकि सप्ताहांत में दिल्ली मेट्रो और अस्पतालों में कोई दिक्कत नहीं दिखी। मगर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र- गुरुग्राम और फरीदाबाद में औद्योगिक इकाइयां प्रभावित हुई हैं।
केंद्र-राज्यों के आरोप-प्रत्यारोप केंद्र ने राज्यों पर कोल इंडिया का बकाया नहीं चुकाने का आरोप लगाया है। मगर शनिवार को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कथित रूप से कहा राज्य ने केंद्र सरकार को कोयले और खनन क्षेत्रों के राजस्व संसाधनों का 1,30,000 करोड़ रुपये बकाया चुकाने के लिए पत्र लिखा है। विभिन्न राज्यों की बिजली उत्पादक कंपनियों पर कोल इंडिया का बकाया बढ़ रहा है। कोल इंडिया के एक बयान में कहा गया, ‘हालांकि महाराष्ट्र, राजस्थान और पश्चिम बंगाल की राज्य उत्पादक कंपनियों पर बकाया बहुत अधिक है, लेकिन सीआईएल ने इन उत्पादक कंपनियों को आपूर्ति कभी कम नहीं की और उप-समूह योजना और रैक की उपलब्धता के आधार पर पर्याप्त आपूूर्ति की है।’

First Published - May 2, 2022 | 12:36 AM IST

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