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Last Updated- December 11, 2022 | 5:10 PM IST

भारत ने अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (यूएसटीआर) कैथरीन ताई की अध्यक्षता में हाल ही में संपन्न हुए  हिंद-प्रशांत आर्थिक ढांचे (आईपीईएफ) की बैठक में केवल एक पर्यवेक्षक के रूप में ही भाग लिया था। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि अमेरिका के नेतृत्व में आईपीईएफ के 14 सदस्यों के बीच व्यापार समझौते की रूपरेखा को अंतिम रूप देने के लिए चल रही चर्चाओं के वास्ते भारत शायद खुद को पूरी तरह से प्रतिबद्ध करने के लिए अभी तैयार नहीं है।
वाणिज्य मंत्रालय में अतिरिक्त सचिव रचना शाह ने 26 जुलाई को आईपीईएफ के व्यापार मंत्रियों की पहली आभासी बैठक में पर्यवेक्षक के रूप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था। हालांकि उम्मीद की जा रही  थी कि बैठक के बाद एक संयुक्त बयान जारी किया जाएगा, लेकिन यूएसटीआर ने बैठक के बाद केवल एक ‘रीडआउट’ (जानकारी) ही जारी की। इसमें कहा गया कि मंत्रियों ने सकारात्मक और रचनात्मक चर्चा की तथा चल रही गहन भागीदारी के जरिये ऊंचे मानक वाले और समावेशी आर्थिक ढांचे की दिशा में बढ़ने के अपने सामूहिक लक्ष्य को दोहराया।
बिजनेस स्टैंडर्ड के एक सवाल के जवाब में भारत के वाणिज्य मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने अमेरिकी वाणिज्य मंत्री जीना रेमोंडो द्वारा आयोजित की गई मंत्रिस्तरीय बैठक में ही हिस्सा लिया था। प्रवक्ता ने कहा ‘यूएसटीआर द्वारा बुलाई गई बैठक में वाणिज्य और उद्योग मंत्री जी20-उच्च स्तरीय फोरम से संबंधित पूर्व प्रतिबद्धता की वजह से भाग नहीं ले सके, जिसमें वह पैनलिस्ट के रूप शामिल थे। हालांकि उन्होंने मंत्रिस्तरीय बैठक से पहले यूएसटीआर के साथ चर्चा की थी।’
प्रवक्ता ने कहा कि फिलहाल मुख्य बातों की रूपरेखा निर्धारित करने के लिए चर्चा चल रही है। उन्होंने कहा ‘इस संबंध में भारत अन्य साझेदार देशों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है।’ आईपीईएफ के चार आधार हैं – व्यापार, आपूर्ति शृंखला; स्वच्छ ऊर्जा, डीकार्बोनाइजेशन और बुनियादी ढांचा, कर तथा भ्रष्टाचार रोकथाम। ‘व्यापार’ श्रेणी के तहत आईपीईएफ उच्च मानक वाली, समावेशी, मुक्त और निष्पक्ष व्यापार प्रतिबद्धताओं का निर्माण करना चाहता है। जहां एक ओर यूएसटीआर व्यापार श्रेणी में चर्चा की अगुआई कर रहा है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी वाणिज्य मंत्री अन्य तीन आधारों पर चर्चा की अगुआई कर रही हैं।
भारत के एक पूर्व वाणिज्य सचिव ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि भारत ने शायद जानबूझकर एक पर्यवेक्षक के रूप में भाग लेने का फैसला किया होगा, क्योंकि शायद वह अभी इस समझौते के लिए तैयार न हो। उन्होंने कहा कि अगर भारत औपचारिक रूप से इस बैठक में भाग ले लेता, तो इसका  मतलब यह होता कि वह बैठक के निष्कर्ष से सहमत है। फिलहाल पर्यवेक्षक का दर्जा भारत को समझौते पर प्रतिबद्ध हुए बिना ही इसमें शामिल करा देगा।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर विश्वजीत धर ने कहा कि भारत ने कदम पीछे किया है, क्योंकि यह तेजी से स्पष्ट हो रहा है कि अमेरिका व्यापार आधार के तहत एक व्यापक व्यापार सौदा चाहता है, जो भारत के लिए दिक्कत भरा होगा। उन्होंने कहा कि आईपीईएफ के व्यापार आधार के तहत पहली बैठक की चर्चा में पर्यवेक्षक के रूप में भारत की भागीदारी एक मजबूत संदेश देती है। इसका मतलब यह है कि भारत ने चर्चा में भाग नहीं लिया और वह अब भी अपने विकल्पों पर विचार कर रहा है।

First Published - August 1, 2022 | 12:30 AM IST

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