संसद की वाणिज्य से जुड़ी स्थायी समिति ने ई-कॉमर्स कंपनियों की इन दलीलों को खारिज कर दिया है कि उनके मंच पर बेचे जाने वाले सामान पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है। समिति ने ई-कॉमर्स कंपनियों की जवाबदेही तय करते हुए उन्हें मंच पर बेचे जा रहे खराब और कम गुणवत्ता वाले सामान की समस्या का समाधान निकालने का निर्देश दिया है। समिति ने ई-कॉमर्स कंपनियों को विक्रेता और ग्राहकों के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए कहा है।
पिछले साल ‘फॉल बैक लायबिलिटी’ के नाम से पहचाने जाने वाले ई-कॉमर्स मसौदा नियम जारी किए गए थे। इसमें कहा गया था कि अगर इस मंच के विक्रेता अपनी लापरवाही, सामान के खोने या विक्रेता द्वारा किसी भी तरह के कमीशन लेने जैसे कदमों की वजह से उपभोक्ता के ऑर्डर किए हुए सामान या सेवाओं की डिलिवरी नहीं करते हैं तो इसके लिए ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस ही जिम्मेदार होगा।
सरकार और ई-कॉमर्स कंपनियों के बीच यह मामला विवादास्पद बन चुका है। ई-कॉमर्स कंपनियों ने सरकार से ई-कॉमर्स नियम की शर्त हटाने की गुजारिश की है। ये कंपनियां हमेशा से यह दावा करती रही हैं कि इन्वेंट्री पर ई-कॉमर्स कंपनियों का नियंत्रण नहीं होता है ऐसे में उन्हें किसी भी विक्रेता के विवाद के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए और विक्रेता को भी जिम्मेदारी वाली शर्तों से जोड़ना चाहिए।
उद्योग से कई चरण के सलाह-मशविरे के बावजूद ई-कॉमर्स से जुड़े मसौदा नियम पर सहमति न बनने की वजह से सरकार को इस मसले पर अंतिम फैसला लेना है।
गुरुवार को राज्यसभा में पेश हुई ‘भारत में ई-कॉमर्स की प्रगति एवं नियमन’ शीर्षक नाम की रिपोर्ट में स्थायी समिति ने कहा, ‘समिति यह महसूस करती है कि ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस को उनके मंच पर बेचे जा रहे सामानों की गुणवत्ता और उनके मानक को बनाए रखने की जिम्मेदारी से पूरी तरह अलग रखना ग्राहकों के हित में नहीं होगा। समिति यह सिफारिश करती है कि ई-कॉमर्स मार्केटप्लेस की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए और उनके मंच पर बेचे जा रहे खराब सामान की डिलिवरी के मसले के समाधान में अहम भूमिका निभानी चाहिए। इसके साथ ही उन्हें ग्राहकों और विक्रेताओं के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभानी चाहिए।’
ई-कॉमर्स नियमों के मसौदे में ग्राहकों के हित को ध्यान में रखते हुए कई तरह की जिम्मेदारी तय की गई है और पारदर्शिता बनाने के साथ ई-कॉमर्स कंपनियों को अपना उत्तरदायित्व भी निभाने के लिए मुख्य अनुपालन अधिकारी, मुख्य संपर्क व्यक्ति, शिकायत निवारण अधिकारी की नियुक्ति के साथ ही कंपनी की वेबसाइट पर एक शिकायत निवारण प्रणाली भी बनाने का निर्देश दिया गया है।
हालांकि संसद की स्थायी समिति ने यह पाया कि ई-कॉमर्स कंपनियों के आकार को ध्यान में रखे बिना उनका अधिक उत्तरदायित्व बढ़ाना सही नहीं होगा क्योंकि इससे देश में ई-कॉमर्स की वृद्धि प्रभावित हो सकती है। इसमें कहा गया, ‘इसी वजह से समिति ई-कॉमर्स संस्थाओं के नियमन के लिए धीरे-धीरे कदम उठाना सही होगा और मसौदा नियमों के तहत अतिरिक्त जवाबदेही उन कंपनियों पर तय की जानी चाहिए जो किसी निश्चित सीमा की पात्रता के दायरे में आती हों।’
मसौदा नियम में ये प्रस्ताव रखे गए हैं कि परंपरागत फ्लैश सेल पर प्रतिबंध नहीं है लेकिन विशेष फ्लैश सेल या एक के बाद एक सेल से ग्राहकों की चयन सीमा सीमित होती है, कीमतें बढ़ती हैं और इससे समान तरह की प्रतिस्पर्द्धा नहीं हो पाती है, ऐसे में इस तरह की गतिविधियों की इजाजत नहीं दी जाएगी।
हालांकि समिति ने यह पाया है कि परंपरागत फ्लैश सेल या अन्य तरह के फ्लैश सेल के बीच अंतर पर स्पष्ट नहीं है जिन पर प्रतिबंध लगाने की बात की जा रही है। इसमें कहा गया है, ‘समिति का मानना है कि नीतियों में अस्पष्टता से इसे लागू करने पर विपरीत असर पड़ सकता है और इससे हितधारकों के बीच भ्रम बढ़ सकता है जो कारोबार के अनुकूल नहीं है। हालांकि समिति यह सिफारिश करती है कि मसौदा नियम में फ्लैश सेल पर रोक को लागू करने पर स्पष्टता दी जाएगी।’
समिति ने ई-कॉमर्स कंपनियों के अपने निजी ब्रांड होने के चलते मंच पर निष्पक्षता की कमी के आरोपों का भी जिक्र किया है। समिति ने कहा, ‘एमेजॉन का अपना निजी ब्रांड सॉलिमो, एमेजॉन बेसिक्स, फ्लिपकार्ट का स्मार्टबाइ, मार्क जैसे ब्रांड समान उत्पाद श्रेणी में थर्ड पार्टी विक्रेता के उत्पाद के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं।’