भारत ने अभी चरणबद्ध तरीके से अनलॉक करना शुरू ही किया गया था जब प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में कोविड-19 के टीके पर पहली विचार-विमर्श वाली बैठक आयोजित की गई थी । यह जुलाई महीने के आखिरी दिन थे। उस वक्त तक देश में कोविड-19 के संक्रमण से 35,000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी थी और संक्रमण के 16 लाख के करीब मामले सामने आए थे। हालांकि उस वक्त टीके की संभावना पर बात करना भी मुश्किल था।
जानकार लोगों के मुताबिक यह बैठक इसलिए बुलाई गई थी क्योंकि भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (टाई) के तत्कालीन अध्यक्ष आर एस शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने इस मुद्दे पर एक प्रेजेंटेशन देना चाहते थे कि सरकार की टीका से जुड़ी रणनीति क्या होनी चाहिए, अन्यथा इस रणनीति के बगैर भारत की मुश्किलें बढ़ेंगी। सितंबर में ट्राई के प्रमुख के पद से रिटायर हुए शर्मा ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। एक अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि प्रधानमंत्रीेके लिए खासतौर पर दिया गया यह प्रेजेंटेशन ही वह शुरुआती बिंदु था जिसके जरिये सरकार के साथ-साथ उद्योग ने भी टीके को लेकर विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया। इस समय कोविड और टीके को लेकर रणनीति बनाने वाली बैठकों में शामिल होने वाले लोग मसलन नीति आयोग के सदस्य वी के पॉल, प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव पी के मिश्रा और स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष नौकरशाहों आदि ने इस प्रेजेंटेशन में हिस्सा लिया था।
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) के पहले महानिदेशक शर्मा ने देश में टीके के वितरण को सफल बनाने में आधार की उपयोगिता का भी जिक्र किया। उस प्रेजेंटेशन से जुड़े एक नोट का जायजा बिज़नेस स्टैंडर्ड ने लिया जिसमें कहा गया था, ‘हमने 1,500 से अधिक पैनल वाली एजेंसियों, 40,000 से अधिक नामांकन स्टेशनों, दो लाख प्रशिक्षित और प्रमाणित ऑपरेटरों के साथ आधार नामांकन संख्या को एक दिन में 15 लाख तक बढ़ा दिया था। इनका इस्तेमाल एक राष्ट्रीय टीकाकरण मंच बनाने के लिए किया जा सकता है।’
एक सूत्र ने कहा कि शर्मा का ध्यान उन कदमों पर था जो सरकार को भारत में 1.3 अरब लोगों के टीकाकरण के लिए जल्द से जल्द उठाने चाहिए। सूत्र के मुताबिक चूंकि भारत को जल्द ही अब कोविड का टीका मिल सकता है, ऐसे में उद्योग के साथ बेहतर कोल्ड चेन और वितरण तंत्र के लिए बातचीत की जा रही है और जुलाई की बैठक के दौरान जिन बिंदुओं पर जोर दिया गया था उस पर भी गौर किया जा रहा है।
शर्मा के प्रेजेंटेशन के मुताबिक कोल्ड चेन, लॉजिस्टिक्स, तकनीक और भुगतान टीके की जटिल प्रक्रिया के चार स्तंभ हैं। उन्होंने बताया कि सरकार को खरीद में शामिल होने के बजाय नियामक की भूमिका निभानी चाहिए। साथ ही, निजी क्षेत्र को खरीद प्रक्रिया के साथ-साथ प्रौद्योगिकी को सक्षम बनाने के लिए मुख्य रूप से जोड़ा जाना चाहिए। इसे कारगर करने के लिए उनकी टीका योजना सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) पर केंद्रित थी।
उदाहरण के लिए भुगतान के लिए कंपनियां टीके के लिए अपने कर्मचारियों को ई-वाउचर जारी कर सकती हैं। वास्तव में, सुझाव यह था कि भुगतान करने के तरीकों का संयोजन किया जाना चाहिए। मसलन जो लोग अपने दम पर भुगतान कर सकते हैं वे करें और कुछ लोग नियोक्ता द्वारा जारी वाउचर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके अलावा कुछ धर्मार्थ संगठन दान दे सकते हैं। कंपनियां टीकाकरण की फंडिंग के लिए कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) की पूंजी का इस्तेमाल कर सकती हैं। सरकार आयुष्मान भारत के लाभार्थियों जैसे कुछ लक्षित समूहों के लिए भुगतान कर सकती है।
जब एक या एक से अधिक टीके उपलब्ध हो जाते हैं तब भारत को संभवत: कम से कम समय में एक अरब लोगों को टीका लगाने की आवश्यकता होगी और वह भी कुछ महीनों के भीतर। शर्मा की टीके से जुड़े नोट के अनुसार, इस समय-सीमा में किसी भी कमी से लोगों की जान बचने के साथ ही पैसे की बचत होगी। आंकड़ों पर काम करते हुए शर्मा ने दलील दी कि प्रतिदिन 10 करोड़ लोगों को टीका लगाने की दर के हिसाब से भी भारत की 1.3 अरब की आबादी को टीका लगाने में 130 दिन लगेंगे। वह कहते हैं, ‘यह प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है, अगर दहशत का माहौल बनए जाए और भीड़ बढऩे के साथ ही हर कोई इसे पहले हासिल करना चाहेगा।’
इस बात को ध्यान में रखकर ट्राई के पूर्व प्रमुख ने सरकार को सलाह दी कि पूरी आबादी का टीकाकरण व्यवस्थित तरीके से कम से कम समय में किया जाना चाहिए। साथ ही ऐसे कदम भी उठाए जाएं ताकि कोई भी इस प्रक्रिया में छूट न पाए। इसके अलावा, इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि टीकाकरण करने वाली एजेंसियां आंकड़ों में यह दिखाने के लिए हेराफेरी न करें कि लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। आधार के लिए नंदन नीलेकणी के साथ मिलकर काम कर चुके शर्मा के मुताबिक, गुणवत्ता से समझौता किए बिना लोगों को विकल्प मुहैया कराने के लिए कई एजेंसियों के जरिये इस अभियान को पूरा किया जाना चाहिए।
नोट में कहा गया है, ‘इन सबके लिए हमें प्रौद्योगिकी की मदद लेने और एक अच्छी तरह से डिजाइन की गई प्रणाली बनाने की आवश्यकता होगी। इस प्रणाली में आधार प्रमाणीकरण का इस्तेमाल कर डिजिटल टीकाकरण का प्रमाणपत्र हासिल करना होगा। यह सुनिश्चित करना होगा कि केवल उन्हीं लोगों को प्रमाणपत्र मिले जिनका टीकाकरण किया गया है और यह भी देखना होगा कि टीका देने वाली एजेंसियां सरकार से अधिक रकम पाने या अपना काम किए बिना श्रेय लेने के लिए आंकड़ों में हेराफेरी तो नहीं कर रही हैं।’
अब तक सरकार ने कोविड टीकाकरण प्रक्रिया में आधार मॉडल का इस्तेमाल करने पर भी निर्णय नहीं लिया है, क्योंकि टीके को लेकर एक के बाद एक उच्चस्तरीय बैठकों में अधिकारी व्यस्त हैं। टीकाकरण प्रक्रिया और कोल्ड स्टोरेज की चुनौतियों के साथ-साथ सरकार के लिए लागत भी अहम मुद्दा है जिसको लेकर केंद्रीय बजट से पहले टीका और कोविड लेकर चर्चा होने की संभावना है।
