अमेरिका ने भारत के स्टील और एल्युमीनियम आयात पर 25 फीसदी का अतिरिक्त शुल्क लगा दिया है। बुधवार से ही यह अतिरिक्त शुल्क लगाने का फैसला लागू हो गया। इससे देश के सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योगों (एमएसएमई) पर काफी चोट पड़नी तय है। हालांकि कार्बन स्टील उत्पाद तैयार करने वाले बड़े स्टील उत्पादकों पर कोई बड़ा असर नजर नहीं आता है। इसका कारण यह है कि ऐसे उत्पादों का निर्यात सीमित है। लेकिन स्टेनलेस स्टील और उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले स्टील उत्पाद पर सबसे अधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्द्धन परिषद (ईईपीसी) के चेयरमैन पंकज चड्ढा ने बताया कि अमेरिका को भारत करीब 5 अरब डॉलर मूल्य के स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों का निर्यात करता है और भारत के इंजीनियरिंग उत्पादों के लिए अमेरिका महत्त्वपूर्ण बाजार है। चड्ढा ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘इसमें 3 अरब डॉलर मूल्य के स्टील उत्पाद (चैप्टर 73 के तहत) का निर्यात मुख्य तौर पर एमएसएमई क्षेत्र करता है – यह क्षेत्र 25 फीसदी शुल्क से प्रभावित होगा। समुद्री मार्ग से अमेरिका को सामान पहुंचने में करीब 60 दिन लगते हैं। अभी करीब 1 अरब डॉलर मूल्य के उत्पाद समुद्री रास्ते से भेजे जा रहे हैं और इन उत्पादों को अमेरिका पहुंचते ही अतिरिक्त शुल्क का सामना करना पड़ेगा।’
हालांकि इस्पात सचिव संदीप पुंडरीक ने दावा किया कि अमेरिका के अतिरिक्त शुल्क लगाए जाने से घरेलू स्टील उद्योग पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा कि भारत अमेरिका को 1 लाख टन से कम का निर्यात करता है। कुल उत्पादन का छोटे हिस्सा ही निर्यात होता है।
सरकारी अधिकारियों ने बताया कि डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति के पहले कार्यकाल में जो हुआ था, उसके विपरीत इस बार स्टील और एल्युमीनियम उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क तो लगाया गया है लेकिन अभी तक किसी भी देश को शुल्क से छूट नहीं दी गई है। लिहाजा इस अतिरिक्त शुल्क से प्रभावित होने वाला देश भारत ही नहीं है।