अमेरिका में H-1B वीजा आवेदनों की जांच प्रक्रिया सख्त होने और टेक कंपनियों में छंटनी का सिलसिला जारी रहने के बीच अब भारतीय प्रोफेशनल्स और कंपनियां वैकल्पिक वीजा विकल्पों की ओर रुख कर रही हैं। The Economic Times की एक रिपोर्ट के अनुसार, अब L-1 और O-1 जैसे नॉन-इमिग्रेंट वीजा के साथ-साथ EB-5 इन्वेस्टमेंट वीजा प्रोग्राम में भी दिलचस्पी तेजी से बढ़ी है।
अमेरिका के इमिग्रेशन वकील Gnanamookan Senthurjothi ने बताया कि यह ट्रेंड नया नहीं है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में ऐसे मामलों में तेज बढ़ोतरी देखी गई है।
इस बदलाव की एक वजह यह भी है कि अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के तहत इस साल की शुरुआत से H-1B वीजा आवेदनों की जांच सख्त हो गई है।
USCIS (यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज) के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल H-1B वीजा अप्रूवल में 27% की गिरावट आई है, जो महामारी के समय (FY21) के बाद सबसे कम है।
अमेरिका के इमिग्रेशन वकील ज्ञानमूकन सेंथुर्जोथि ने बताया कि यह ट्रेंड नया नहीं है, लेकिन पिछले कुछ महीनों में ऐसे मामलों में तेज बढ़ोतरी देखी गई है।
इस बदलाव की एक वजह यह भी है कि अमेरिका में ट्रंप प्रशासन के तहत इस साल की शुरुआत से H-1B वीजा आवेदनों की जांच सख्त हो गई है।
USCIS (यूएस सिटिजनशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज) के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल H-1B वीजा अप्रूवल में 27% की गिरावट आई है, जो महामारी के समय (FY21) के बाद सबसे कम है।
हर साल अमेरिका 85,000 H-1B वीजा विदेशी प्रोफेशनल्स को देता है, जिनमें से करीब 70% भारतीय होते हैं।
लेकिन हाल के महीनों में Microsoft, Google और Intel जैसी बड़ी टेक कंपनियों में छंटनियों की लहर ने अमेरिका में रह रहे भारतीय वर्कर्स की चिंता बढ़ा दी है।
Murthy Law Firm के वकील जोएल यानोविच ने बताया, “हमारे क्लाइंट पहले से ज्यादा डरे और परेशान हैं, खासकर विदेश यात्रा और वीजा स्टैम्पिंग को लेकर। शायद ही कोई दिन जाता है जब कोई न कोई क्लाइंट मुझसे ये न पूछे कि क्या अभी यात्रा करना सुरक्षित है।”
H-1B वीजा प्रक्रिया को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच अब कई लोग L-1 और O-1 वीजा की ओर रुख कर रहे हैं। इन दोनों वीजा पर हर साल संख्या की कोई सीमा नहीं होती, इसलिए ये विकल्प ज़्यादा आसान माने जा रहे हैं।
L-1 वीजा का इस्तेमाल कंपनियों के अंदर ट्रांसफर के लिए होता है, यानी कोई कर्मचारी एक देश से दूसरे देश की उसी कंपनी में जा सकता है। वहीं, O-1 वीजा उन लोगों के लिए होता है जो साइंस, आर्ट्स या बिज़नेस जैसे क्षेत्रों में असाधारण प्रतिभा रखते हैं।
यानोविच ने बताया कि इस बढ़ती मांग की एक वजह यह है कि कुछ लोग H-1B वीजा लॉटरी में चुने नहीं जाते हैं, इसलिए वे दूसरे विकल्प तलाशते हैं। वहीं दूसरी वजह यह है कि कुछ कंपनियां और प्रोफेशनल H-1B वीजा के कड़े नियमों और जांच से बचना चाहते हैं, इसलिए L-1 और O-1 वीजा की ओर जा रहे हैं।
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कनाडा बन रहा है अमेरिका में वीजा के लिए एक रणनीतिक पड़ाव
अब कंपनियां अमेरिका में सीधे वीजा दिलाने की बजाय अपने कर्मचारियों को कुछ समय के लिए कनाडा या किसी अन्य देश भेज रही हैं। इसका मकसद उन्हें ऐसे वीजा के लिए योग्य बनाना है, जो बाद में अमेरिका में स्थायी निवास यानी ग्रीन कार्ड दिला सकते हैं।
डेविस एंड एसोसिएट्स एलएलसी की कंट्री हेड (इंडिया और जीसीसी प्रैक्टिस टीम) सुकन्या रमण ने इकोनॉमिक टाइम्स से कहा कि कई कंपनियां अपने कर्मचारियों को थोड़े समय के लिए अमेरिका के बाहर, जैसे कनाडा में तैनात कर रही हैं ताकि वे L-1 वीजा के लिए पात्र हो सकें। यह वीजा आम तौर पर मैनेजर या सीनियर प्रोफेशनल्स के लिए होता है।
बाद में ऐसे प्रोफेशनल्स EB-1C वीजा के लिए आवेदन कर सकते हैं, जो उन्हें अमेरिका का ग्रीन कार्ड दिलाने का रास्ता बनता है।
इसके अलावा, EB-2 NIW (नेशनल इंटरेस्ट वेवर) वीजा कैटेगरी में भी दिलचस्पी बढ़ रही है। यह वीजा उन लोगों के लिए है जिनके पास उन्नत डिग्री होती है और जिनका काम अमेरिका के राष्ट्रीय हित में माना जाता है।
EB-5 वीजा के लिए भारतीयों की बढ़ी दिलचस्पी
जनवरी 2025 से अब तक EB-5 इन्वेस्टर वीजा के लिए मांग में 50% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। यह जानकारी रमण नाम की एक विशेषज्ञ ने दी।
उन्होंने बताया कि भारतीय नागरिकों के लिए यह वीजा अभी “करंट स्टेटस” में है, यानी इसके लिए वीजा उपलब्ध हैं और आवेदन करने वालों को सिर्फ 3 से 6 महीने में मंजूरी और यात्रा दस्तावेज मिल सकते हैं। इससे वे अमेरिका में कानूनी रूप से रह सकते हैं।
रमण ने यह भी बताया कि H-1B वीजा पर रहने वाले कई भारतीय परिवार अब EB-5 वीजा के लिए आवेदन कर रहे हैं, खासकर तब जब उनके बच्चे 21 साल के करीब पहुंच रहे हों। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि 21 साल की उम्र के बाद बच्चे माता-पिता के वीजा पर डिपेंडेंट नहीं रह सकते।