कॉप 28 के वैश्विक स्टॉकटेक (जीएसटी) के प्रारूप में जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम करने पर भाषा कमजोर किए जाने की ज्यादातर देशों ने कड़ी निंदा की है लेकिन जीवाश्म और हरित ईंधन के इर्द-गिर्द लिखी भाषा से भारत को फायदा हुआ है। जीवाश्म ईंधन में गैस, कोयला और तेल भी आते हैं।
सोमवार को जारी प्रारूप में जीवाश्म ईंधन को हटाने के मुद्दे पर चुप्पी साधी गई है। कई देशों ने जलवायु परिवर्तन में पहली बार इसे वैधानिक लक्ष्य के रूप में पेश किया था। इस सिलसिले में भारत ने जोरदार ढंग से आवाज उठाई थी कि इसमें सभी जीवाश्म ईंधनों को शामिल किया जाना चाहिए। लिहाजा इसमें केवल कोयला नहीं, बल्कि तेल और गैस भी रहे।
प्रारूप की भाषा आयोजक देश यूएई सहित तेल उत्पादक देशों के अत्यधिक अनुकूल कर दी गई है। प्रारूप के मुताबिक, ‘जीवाश्म ईंधनों की खपत और उत्पादन दोनों कम करना है। मसौदे में कहा गया, ‘जीवाश्म ईंधन की खपत और उत्पादन दोनों को उचित, व्यवस्थित और न्यायसंगत तरीके से कम करना है ताकि विज्ञान के अनुरूप करीब 2050 या उससे पहले शुद्ध जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।’ हालांकि कोयले के बारे में कहा गया, ‘बेरोकटोक कोयले के इस्तेमाल को तेजी से कम करना है। कोयले से बिजली उत्पादन पर सीमाएं लगानी हैं।’ प्रारूप में तेल/ प्राकृति गैस का अलग से एक भी उल्लेख नहीं है।
विकासशील और पिछड़े देशों का प्रतिनिधित्व करते हुए भारत ने कहा कि जी 77 और बेसिक समूह में प्रारूप में केवल कोयले का उपयोग कम करने पर आपत्ति जताई गई थी। अधिकारी ने बताया, ‘ग्लोबाल साउथ अपनी मांग पर अडिग है।’ इन देशों ने कहा कि पैराग्राफ 39 को पूरी तरह बदले जाने की जरूरत है। यह पैराग्राफ हरित गैसों के उत्सर्जन को कम करने से जुड़ा है।
सीबीडीआर-आरसी या कॉमन जलवायु परिवर्तन के लिए अलग जिम्मेदारियों और अलग क्षमताओं के बारे में है और राष्ट्रों के उत्सर्जन स्तरों व आर्थिक स्थिति के अनुसार वित्तीय मदद मुहैया कराने से संबंधित है।
वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘यह अंतिम प्रारूप होने की संभावना अधिक है। आयोजक देश यूएई अपने जीवाश्म ईंधन उद्योग पर हमला करने के सक्षम नहीं है। हमने हमेशा सीआरडीआर-आरसी का समर्थन किया है। इसके तहत हरित ईंधन आधारित विकास को नियमित व त्वरित रूप से आगे बढ़ाया जाएगा।’