बाइडेन प्रशासन के तहत प्रतीत होता है कि अमेरिका ने भारत के साथ सौदार्दपूर्ण संबंध को आकार देने के लिए अपने कठोर रुख को छोड़ दिया है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि इससे दोनों देशों के मध्य किसी व्यापारिक समझौते का रास्ता निकलेगा।
पिछले हफ्ते मंगलवार को अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई और वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने नई दिल्ली में नए व्यापार नीति मंच (टीपीएफ) की पहली बैठक की अध्यक्षता की थी। दोनों देशों के बीच यह बैठक चार वर्ष के लंबे अंतराल के बाद हुई। दोनों देशों ने अगले छह से आठ महीनों में कृषि, गैर-कृषि सामानों, सेवाओं, निवेशों और बौद्घिक संपदा अधिकारों से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए कुछ हद तक सहमति पर पहुंचने की उम्मीद जताई थी। उन्होंने इन सब मुद्दों पर एक उप-समूह के गठन पर सहमति जताई थी।
कुछ विशेषज्ञों कहा कहना है कि दोनों नए सिरे से पुनर्जीवित टीपीएफ के तहत विवादास्पद मुद्दों का समाधान करने का प्रयास कर रहे हैं। विशेषज्ञों की राय है कि यह पहल भविष्य में दोनों देशों के बीच कोई बड़ा व्यापारिक समझौता होने की तरफ बढ़ाया गया पहला कदम है। हालांकि, बाइडेन प्रशासन ने फिलहाल किसी भी मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) से इनकार किया है। इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनैशनल इकोनॉमिक रिलेशंस (इक्रियर) में प्रोफेसर अर्पिता मुखर्जी ने कहा, ‘टीपीएफ को दोबारा से लॉन्च करना सही दिशा में उठाया गया कदम है। इससे आगे चलकर दोनों देशों के बीच एफटीए की बाधाएं भी दूर हो सकती हैं।’ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर इकोनॉमक स्टडीज ऐंड प्लानिंग में प्रोफेसर विश्वजीत धर ने कहा कि अमेरिका को भारत की संवेनशीलता को समझना होगा।
उन्होंने कहा, ‘हमारी संवेदनशीलता कृषि बाजार पहुंच जैसे कई क्षेत्रों में है और अमेरिका को इसकी सराहना करनी होगी। यदि समझ जारी रहती है और यह पर एक शुरुआत हो जाती है तो दोनों देशों के मध्य करीबी आर्थिक संबंध हो सकते हैं। यह भी कहना अभी जल्दबाजी होगी कि क्या कोई व्यापार समझौता हो पाएगा। लेकिन कम से कम इससे दोनों देशों के बीच व्यापार संबंध और मजबूत होंगे।’
हालांकि, पूर्व डब्ल्यूटीओ एंबेसडर जयंत दासगुप्ता ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि टीपीएफ और उप समूह अपने पहले के स्वरूप में भी किसी एफटीए को आकार देने के मकसद से बनाए गए थे। उन्हें लगता है कि इनका मकसद समस्याओं का हल निकालना था। दासगुप्ता ने कहा, ‘मुझे लगता है कि फिर से वे यही काम करेंगे जब तक कि उन्हें इसका अधिकार नहीं दिया जाता कि एफटीए में किन बातों को शामिल किया जाए। लेकिन इसे औपचारिक रूप से संयुक्त अध्ययन समूहों के जरिये अंजाम दिया जाता है। यह एक अलग बात है।’ उन्होंने कहा कि एफटीए राजनीतिक और आर्थिक दोनों प्रकार का निर्णय है। दासगुप्ता ने कहा, ‘इसे वास्तव में दो राष्ट्र प्रमुखों को उठाना होगा। यह इस बात पर निर्भर नहीं करेगा कि क्या विवादास्पद मुद्दों के समाधान हो गए।’
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा कि वे इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि हाल में संपन्न हुए टीपीएफ के परिणाम स्वरूप अमेरिका से भारत में और अधिक मात्रा में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) आएगा।
