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India- US Trade Deal: निर्यातकों के मार्जिन पर दबाव बढ़ने के आसार

भारत और अमेरिका के बीच 1 अगस्त से पहले अंतरिम व्यापार समझौता नहीं हो पाया तो भारत को अमेरिका में 26 फीसदी जवाबी शुल्क का सामना करना पड़ सकता है।

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श्रेया नंदी   
Last Updated- July 22, 2025 | 10:38 PM IST

निर्यातकों ने अमेरिकी खरीदारों के साथ ऊंचे शुल्क को लेकर बातचीत शुरू कर दी है। भारत और अमेरिका के बीच 1 अगस्त से पहले अंतरिम व्यापार समझौता नहीं हो पाया तो भारत को अमेरिका में 26 फीसदी जवाबी शुल्क का सामना करना पड़ सकता है। यही वजह है कि निर्यातक अमेरिकी आयातकों से इस पर बात कर रहे हैं कि ऊंचे शुल्क की भरपाई किस तरह से की जा सकती है।

वर्तमान में मौजूदा सर्वाधिक पसंदीदा राष्ट्र पर लागू शुल्क के अलावा भारत के आयात पर 10 फीसदी का बुनियादी शुल्क वसूला जा रहा है मगर अमेरिकी प्रशासन ने 1 अगस्त से अपने व्यापार भागीदारों पर देश-विशिष्ट के आधार पर जवाबी शुल्क लागू  करने की घोषणा की है। संभावित 16 फीसदी अतिरिक्त शुल्क का बोझ उठाने पर चर्चा महत्त्वपूर्ण है। खास तौर पर उन उत्पादों के मामले में जिन्हें पहले ही भारत से भेज दिया गया है और जो 1 अगस्त को या उसके बाद अमेरिकी बंदरगाहों पर पहुंचेंगे।

निर्यातकों के संगठन फियो के महानिदेशक और मुख्य कार्याधिकारी अजय सहाय ने कहा, ‘आम तौर पर ‘एक-तिहाई सिद्धांत’ लागू किया जाता है। इसमें अतिरिक्त शुल्क लागत का एक-एक तिहाई हिस्सा निर्यातक, आयातक और उपभोक्ता द्वारा वहन किया जाता है। खरीदार और विक्रेता के बीच इस तरह की चर्चा पहले ही शुरू हो चुकी है, खास तौर पर उन वस्तुओं के मामले में जिन्हें भेज दिया गया है और जो 1 अगस्त को या उसके बाद अमेरिकी बंदरगाहों पर पहुंचेंगी।

मुख्य मुद्दा यह होगा कि अतिरिक्त शुल्क को व्यवसायों द्वारा किस हद तक और कैसे वहन किया जाएगा। निर्यातकों ने कहा कि 26 फीसदी का जवाबी शुल्क निश्चित रूप से एक झटका होगा और अप्रैल से शुल्क पर अनिश्चितता उनके मुनाफे को प्रभावित कर रही है। अतिरिक्त 16 फीसदी शुल्क अमेरिकी बाजार में भारतीय निर्यात की मांग को कम कर सकता है, खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक्स और रत्न एवं आभूषण जैसी उच्च-मूल्य वाली वस्तुओं के मामले में। इसके अलावा व्यवसायों को प्रतिस्पर्धी देशों के शुल्क प्रभाव का भी आकलन करना होगा। उदाहरण के लिए, भारत को चीन की तुलना में कम शुल्क का सामना करना पड़ सकता है लेकिन उसे वियतनाम के बराबर शुल्क वहन करना पड़ सकता है।

अखिल भारतीय कालीन निर्माता संघ के पूर्व अध्यक्ष रवि पटोडिया ने कहा कि अमेरिकी प्रशासन द्वारा जवाबी शुल्क को लागू करने की बदलती समय सीमा ने निर्यातकों के लिए अनिश्चितता पैदा कर दी है। इससे मांग पर भी असर पड़ रहा है।

पटोडिया ने कहा, ‘हमसे बढ़ी हुई शुल्क का 50 फीसदी वहन करने की उम्मीद है।’ उन्होंने आगे कहा कि कालीन के मामले में भारत का मुख्य प्रतिस्पर्धी तुर्की है, जिसे 10 फीसदी जवाबी शुल्क का सामना करना पड़ेगा। यह निश्चित रूप से तुर्की को भारत पर बढ़त देगा।

First Published : July 22, 2025 | 10:18 PM IST