नीति आयोग के पूर्व सीईओ परमेश्वरन अय्यर को विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया है। सरकार ने साल 2014 के बाद पहली बार किसी सेवानिवृत्त अधिकारी को इस पद के लिए नामित किया है। अय्यर का नीति आयोग में कार्यकाल छह महीने का रहा था। इसके बाद राजेश खुल्लर को स्वदेश बुलाकर अय्यर को नियुक्त किया गया। विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक नियुक्त होने से पहले खुल्लर आर्थिक मामलों के विभाग में संयुक्त सचिव के पद पर थे।
अर्थशास्त्री व पूर्व योजना आयोग के मुख्य सलाहकार प्रोनाब सेन ने कहा, ‘‘विश्व बैंक और IMF में भारत के पास निश्चित संख्या में पद हैं। आमतौर पर इन पदों पर नियुक्त लोगों को पुरस्कृत करने के लिए की जाती हैं। आमतौर पर नौकशाहों की नियुक्ति होती है। लेकिन कभी-कभी सेवानिवृत्त व्यक्ति की नियुक्ति हुई और इस बार भी सेवानिवृत्त व्यक्ति की नियुक्ति हुई ।’’ विशेषज्ञों के मुताबिक इन शीर्ष पदों पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का वेतन मिलता है। सरकारी वेतन इन अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों में मिलने वाले वेतन के आसपास भी नहीं होता है।
साल 2011 में 1972 बैच के बिहार कैडर के अधिकारी एमएन प्रसाद को सेवानिवृत्त होने के बाद विश्व बैंक में कार्यकारी निदेशक नियुक्त किया गया था। वे उस समय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सचिव थे और उन्हें सिंह ने दिल्ली स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स में पढ़ाया था। प्रसाद ने वाशिंगटन डीसी में 2011 से 2014 तक विश्व बैंक के कार्यकारी निदेशक के पद पर कार्य किया। उस समय विशेषज्ञों ने इंगित किया था कि युवा अधिकारी की नियुक्ति हुई जबकि पहले इस पद सेवानिवृत्त अधिकारी नियुक्त किए जाते थे।
वरिष्ठ सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, ‘यदि आप वहां से अनुभव लेने के बाद उस अधिकारी को वापस आना चाहते हैं तो सेवानिवृत्त अधिकारी को अनुभव प्राप्त कराने का कोई फायदा प्राप्त नहीं होगा।’
नीति विशेषज्ञों के मुताबिक विदेशों में नियुक्ति जैसे विश्व बैंक, एशिया विकास बैंक (ADB), अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) आदि पुरस्कार के तौर पर होती हैं। पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘यह संरक्षण देने वाला पद है और सरकार उन अधिकारियों को देती है जिन्हें वह फायदा पहुंचाना चाहती है। यह शुद्ध रूप से पक्षपात है और इसके सिवाए कुछ भी नहीं।’ वरिष्ठ राजनीतिज्ञ ने कहा कि ऐसा विरले ही होता है कि सरकार पद पर कार्यरत अधिकारी को हटाने के लिए किसी और की नियुक्ति करती है।
वरिष्ठ आर्थिक अधिकारीगण इन नियुक्तयों का कुछ दशकों से फायदा उठा रहे हैं। बिमल जालान के लिए रास्ता बनाने की खातिर 1989 में वित्त सचिव गोपी अरोड़ा को IMF में कार्यकारी निदेशक के पद पर नियुक्त किया गया था। पूर्व राजस्व सचिव एम आर शिवरामन को सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क के ढांच में आमूलचूल बदलाव करने के लिए जाना जाता था। उन्हें उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 1996 में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में नियुक्ति देकर पुरस्कृत किया था।
अगस्त, 2022 में अशोक लवासा ने चुनाव आयोग के पद से इस्तीफा दे दिया था जबकि उनका कार्यकाल दो साल शेष था। उन्होंने एशिया विकास बैंक में पद प्राप्त हुआ। लवासा मुख्य निर्वाचन अधिकारी बनने की कतार में थे और वे चुनाव आयोग के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को कथित आचार संहिता का उल्लंघन करने के मामले में क्लीन चिट देने के एकमात्र समर्थक नहीं थे।