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भारत में पानी की कमी से उद्योगों और अर्थव्यवस्था को खतरा: मूडीज रिपोर्ट

मूडीज रेटिंग्स ने चेताया कि पानी की कमी से कृषि, उद्योग और सामाजिक स्थिरता प्रभावित हो सकती है।

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रुचिका चित्रवंशी   
Last Updated- June 25, 2024 | 10:51 PM IST

मूडीज रेटिंग्स का कहना है कि भारत में तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ-साथ पानी की कमी भी बढ़ रही है। यह कमी देश की साख और उन उद्योगों के लिए खतरनाक है जिन्हें ज्यादा पानी की जरूरत होती है, जैसे कोयला आधारित बिजली उत्पादक और स्टील बनाने वाली कंपनियां।

रेटिंग एजेंसी का कहना है कि पानी की कमी से खेती और उद्योगों में परेशानी आ सकती है। इससे खाने की चीजों के दाम बढ़ सकते हैं और लोगों की आमदनी कम हो सकती है। साथ ही इससे सामाजिक अशांति भी पैदा हो सकती है।

मूडीज रेटिंग्स का कहना है कि पानी की कमी भारत के विकास में अस्थिरता पैदा कर सकती है और अर्थव्यवस्था को झटकों से बचाने की क्षमता को कमजोर कर सकती है।

ये रिपोर्ट ऐसे समय में आई है, जब देश की राजधानी दिल्ली सहित कई शहरों में पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि, “भारत तेजी से शहरीकरण और औद्योगीकरण के दौर से गुजर रहा है, जिससे पहले से ही कम होते जा रहे जल संसाधनों पर बोझ बढ़ेगा।”

हालांकि, मूडीज की रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि वॉटर इंफ्रास्ट्रक्चर और नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश से लंबे समय में अर्थव्यवस्था, बिजली उत्पादकों और इस्पात निर्माताओं के लिए जोखिम को कम किया जा सकता है।

मूडीज का कहना है कि भारत का बढ़ता हुआ सस्टेनेबल फाइनेंस (स्थायी वित्त) बाजार कंपनियों को पानी से जुड़े निवेश के लिए मदद तो कर सकता है, लेकिन अभी भारत में ग्रीन, सोशल, सस्टेनेबिलिटी और सस्टेनेबिलिटी लिंक्ड (GSSS) बॉन्ड्स का बाजार बहुत छोटा है। एनवायरॉनमेंटल फाइनेंस के आंकड़ों के अनुसार, एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कुल बांड्स में भारत के बकाया बॉन्ड्स की राशि 29 बिलियन डॉलर है, जो सिर्फ 2.2 प्रतिशत है।

सरकार ने जल संसाधन, नदी विकास और गंगा पुनर्जीवन विभाग के लिए वित्तीय वर्ष 2025 के बजट को दोगुना कर 2.52 बिलियन डॉलर कर दिया है, जो वित्तीय वर्ष 2020 के बजट से दोगुना है। भारत विश्व बैंक के साथ मिलकर राष्ट्रीय भूजल सुधार कार्यक्रम पर काम कर रहा है, जिसमें कुल 1.35 बिलियन डॉलर का निवेश किया जाएगा, जिसमें से विश्व बैंक 450 मिलियन डॉलर देगा।

जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, भारत में प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 2021 के 1,486 क्यूबिक मीटर के पहले से ही कम स्तर से घटकर 2031 तक 1,367 क्यूबिक मीटर होने की संभावना है। मंत्रालय के मुताबिक 1,700 क्यूबिक मीटर से कम जल स्तर का मतलब पानी का संकट और 1,000 क्यूबिक मीटर से कम जल स्तर का मतलब पानी की कमी होना है।

मूडीज की रिपोर्ट में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखे, गर्मी की लहरें और बाढ़ जैसी अतिवादी मौसमी घटनाओं की संख्या, तीव्रता या अवधि बढ़ने से स्थिति और भी खराब हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत पानी की सप्लाई के लिए मानसून की बारिश पर बहुत अधिक निर्भर करता है। साल 2023 में, भारत में मानसून की बारिश 1971-2020 के औसत से 6 प्रतिशत कम रही।

हालांकि, रिपोर्ट में एक सकारात्मक पहलू भी बताया गया है। भारत जैसे-जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से बिजली उत्पादन बढ़ाएगा, वैसे-वैसे कोयले की खपत कम होगी। इससे कोयला आधारित बिजली उत्पादन में लगने वाले पानी की मांग कम होगी और पानी की कमी की समस्या में कमी आएगी।

सरकार ने भी थर्मल पावर प्लांट्स में पानी की खपत को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट से 50 किलोमीटर के दायरे में स्थित थर्मल पावर प्लांटों में ट्रीटेड सीवेज वाटर के इस्तेमाल को अनिवार्य बनाना।
  • जीरो वाटर डिस्चार्ज सिस्टम लगाना।
  • ऐश वाटर री-सर्कुलेशन सिस्टम लगाना।
First Published : June 25, 2024 | 6:04 PM IST