भारत

Waqf Board Property: 150 से घटकर 1.26 करोड़ रुपये पर आ गया फंड, कैसे अर्श से फर्श पर पहुंची वक्फ बोर्ड की कमाई

Waqf Board Property income: FY15 के बाद वक्फ के तहत पंजीकृत संपत्तियों में तीन गुना वृद्धि के बावजूद आय में भारी गिरावट आई है।

Published by
समरीन वानी   
Last Updated- August 16, 2024 | 7:30 PM IST

Waqf Board Property income: वक्फ प्रॉपर्टी से होने वाली कुल आय में 2019-20 से 2023-24 के बीच पांच सालों में 99 प्रतिशत की भारी गिरावट देखी गई है। यह गिरावट तब भी जारी है जब संपत्तियों के प्रबंधन में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

बता दें कि वक्फ संपत्तियों का उपयोग मुस्लिम समुदाय की भलाई के लिए किया जाता है। संपत्तियों से आय में गिरावट का असर यह हुआ है कि अन्य सभी खर्चों (खासकर महामारी) के बाद, समुदाय की भलाई पर खर्च करने के लिए बहुत कम फंड बचा है।

भारत के वक्फ संपत्ति प्रबंधन प्रणाली (Waqf Assets Management System of India/ WAMSI) के आंकड़ों के अनुसार, अलग-अलग राज्यों में वक्फ संपत्तियों की कुल शुद्ध आय यानी नेट इनकम 2014-15 ( FY15) और 2015-16 (FY16) में 80 करोड़ रुपये से अधिक थी। यह आय धीरे-धीरे बढ़ती गई और FY19 और FY20 में 150 करोड़ रुपये से अधिक हो गई।

हालांकि, इसके बाद के सालों में उनकी आय में लगातार गिरावट आई है। वित्त वर्ष 24 (FY24) में वक्फ संपत्तियों से आई शुद्ध आय लगभग 1.26 करोड़ रुपये रह गई। यह पूरी आय तीन राज्यों से आई है, जबकि अन्य राज्यों ने शुद्ध आय जीरो बताई गई।

वक्फ परिषद और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय से इस भारी गिरावट के कारण पूछे जाने पर खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं मिला।

शुद्ध वार्षिक आय (Net annual income) में टैक्स या किसी लोकल अथॉरिटी को भुगतान की गई लाइसेंस फीस, मरम्मत और रखरखाव और वेतन पर होने वाले खर्च को घटाकर सकल वार्षिक आय (gross annual income) शामिल होती है।

वक्फ अधिनियम 1995 के अनुसार, सरकारी अनुदान, सार्वजनिक दान या शैक्षणिक संस्थानों से जुटाई गई फीस या स्कूल, कॉलेज, अस्पताल या अनाथालय जैसे 'गैर-लाभकारी उपक्रमों' (NGO) से होने वाली कमाई को आय के रूप में नहीं माना जा सकता।

वक्फ बोर्डों पर वित्तीय कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार (financial mismanagement and corruption) के आरोप भी लगे हैं।

केंद्र सरकार ने हाल ही में संसद के बजट सत्र में एक विधेयक पेश किया था जिसमें संशोधन की मांग की गई थी और कुप्रबंधन का आरोप लगाया गया था। इस विधेयक को बाद में एक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजा गया था। माना जा रहा है कि यह अधिनियम राज्य वक्फ बोर्डों में जवाबदेही और पारदर्शिता बढ़ाने का प्रयास करता है।

चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (CNLU) पटना के कुलपति (VC) फैजान मुस्तफा कहते हैं कि इन वक्फ संपत्तियों को विकसित करने की जरूरत है ताकि उनकी आय बढ़ सके और मुस्लिमों के कल्याण के लिए सरकार पर निर्भरता कम हो सके।

उन्होंने कहा, 'ये पुरानी संपत्तियां हैं, बहुत कम किराया देती हैं और कभी खाली नहीं होती हैं। ज्यादातर वक्फ संपत्तियां केंद्रीय स्थानों पर स्थित हैं और अगर इन्हें कमर्शियल सेंटर के रूप में विकसित किया जाए तो वे बेहतर रिटर्न दे सकती हैं।'

विभिन्न वक्फ बोर्डों के खातों की जांच राज्य सरकार द्वारा नियुक्त लेखा परीक्षकों द्वारा की जाती है।

मुस्तफा ने कहा, 'चूंकि वक्फ बोर्डों और वक्फ परिषद के लिए ज्यादातर नामांकन सरकार द्वारा किए जाते हैं, इसलिए वह 1995 अधिनियम के तहत किसी को भी यह काम सौंप सकती है जिसे वह जरूरी मानती है। लेकिन अगर नए विधेयक के तहत नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) ऐसा करते हैं तो यह ठीक है।'

FY15 के बाद के दशक में वक्फ के तहत पंजीकृत संपत्तियों की संख्या तीन गुना हो गई है।

लेकिन, 232,500 से अधिक पंजीकृत संपत्तियां सिर्फ उत्तर प्रदेश में हैं। यह देश के सभी वक्फ संपत्तियों का एक चौथाई से अधिक है। इसके बाद पश्चिम बंगाल (9.23 प्रतिशत), पंजाब (8.7 प्रतिशत), तमिलनाडु (7.6 प्रतिशत), कर्नाटक (7.2 प्रतिशत) और केरल (6.11 प्रतिशत) का स्थान आता है।

जबकि सभी पंजीकृत संपत्तियों में से 17 प्रतिशत कब्रिस्तान हैं, अन्य 16 प्रतिशत कृषि भूमि, 14 प्रतिशत मस्जिदें, 13 प्रतिशत दुकानें और 11 प्रतिशत घर हैं।

First Published : August 16, 2024 | 7:16 PM IST