कारसेवकपुरम में राम मंदिर का मॉडल, जिसके चारों ओर अदालत की फाइलों के साथ बक्से रखे हुए हैं। फोटो: वीनू संधू
अयोध्या के कारसेवकपुरम में राम जन्मभूमि मंदिर के मॉडल के चारों ओर प्लास्टिक की चादरों से ढके 153 बक्से रखे हुए हैं। इन बक्सों में मंदिर के लिए लड़ी गई अदालती लड़ाइयों के दस्तावेज हैं, जिन्हें विभिन्न अदालतों में लड़ा और जीता गया है। राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े इन दस्तावेजों में निचली अदालतों, उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय के तकरीबन 3,000 से अधिक फैसलों और सहायक साक्ष्यों की फाइलें हैं।
ये दस्तावेज एक खास वजह से यहां रखी गई हैं। इन 3,000 से अधिक फाइलों का डिजिटलीकरण किया जा रहा है ताकि ये दस्तावेज शोध और अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं, वकीलों, छात्रों और इतिहासकारों सबके लिए सुलभ हों। इसके अलावा इन बक्सों में सैकड़ों कानूनी और ऐतिहासिक पुस्तकें भी हैं जिनका हवाला इस मामले में दिया गया।
जिस हॉल में मंदिर का मॉडल रखा है उसके प्रभारी हजारीलाल गुप्ता गर्व से बताते हैं कि वह राम जन्मभूमि आंदोलन के सक्रिय सदस्य थे। उन दिनों वह एक युवा कार्यकर्ता थे लेकिन बाद में प्रचारक बन गए।
कारसेवकपुरम अनेक कार्यकर्ताओं और प्रचारकों का आश्रयस्थल माना जाता है। इस 10 एकड़ के परिसर में विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के उपाध्यक्ष और श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव, चंपत राय का निवास स्थान और स्थायी कार्यालय भी है।
विहिप के क्षेत्रीय प्रवक्ता शरद शर्मा कहते हैं, ‘1990 के दशक में राम जन्मभूमि आंदोलन का केंद्र यही था, यहीं से सब कुछ शुरू हुआ था।’ आज 30 साल बाद भी, यह राम मंदिर के निर्माण और इससे जुड़ी व्यवस्थाओं की निगरानी के लिए नियंत्रण केंद्र बना हुआ है।
सुबह 11 बजे से ही चंपत राय के कार्यालय के बाहर प्रतीक्षा करने के लिए बने एक कमरे में आगंतुकों की भीड़ जुटने लगती है। इस कमरे में जूते पहन कर घुसने की अनुमति नहीं है क्योंकि यहां प्रवेश द्वार के पास ही राम, सीता और लक्ष्मण की मूर्तियां स्थापित की गईं हैं। यहां एक सोफे पर चेन्नई के एक संत बैठे हैं और लोग उनका आशीर्वाद लेने के लिए आ रहे हैं। पुणे के एक और संत, वृंदावन के रास्ते होते हुए यहां आए हैं और वह उनके बगल में ही बैठे हैं।
कारसेवकपुरम के प्रमुख व्यक्ति माने जाने वाले शर्मा कहते हैं, ‘हाल के दिनों में अयोध्या में कई संत आ रहे हैं और हम उन सभी का स्वागत करते हैं।’
यहां आने वाले लोगों में कुछ ऐसे भी हैं जो दान देने या अपनी सेवाएं देने आए हैं। दरअसल वे 22 जनवरी को मंदिर के उद्घाटन के दिन हजारों श्रद्धालुओं के आने की व्यवस्था में मदद करना चाहते हैं और इनमें से ही कई रसोई की जिम्मेदारी संभालने के साथ-साथ फूलों आदि की व्यवस्था भी कर रहे हैं। शर्मा बताते हैं, ‘ये सभी लोग यह सब निःस्वार्थ भाव से कर रहे हैं।’ जनवरी में कारसेवकपुरम में ही लगभग 1,200 लोगों के ठहरने की उम्मीद है।
राय के इंतजार में बैठे हुए लोग यहां के टेबल पर रखे ब्रॉशर, पर्चे और पत्रिकाओं को उलट-पुलट कर देख रहे हैं। इनमें से एक ‘सनातन पंचांग’ भी है जो शुभ तिथियों की जानकारी देने के साथ ही, विभिन्न संतों के स्मृति दिवसों और धार्मिक त्योहारों की जानकारी देने वाला कैलेंडर है। इसमें ‘पाप’ या ‘भय नाश’ के लिए, ‘पुत्र प्राप्ति’ या ‘पति वशीकरण’ के लिए मंत्र भी लिखे गए हैं। यहां पांचजन्य भी है जिसे भारतीय जनसंघ के नेता दीनदयाल उपाध्याय ने 1948 में लखनऊ में शुरू किया था।
कुछ समय पहले तक, कारसेवकपुरम में पूरे भारत और विदेश के भक्तों द्वारा मंदिर निर्माण के लिए दान की गई लगभग 3 लाख ईंटें भी रखी थीं। हर ईंट पर राम का नाम उस क्षेत्र की भाषा में लिखा था जहां से ये ईंटें आई थी। शर्मा कहते हैं, ‘ये ईंटें अब मंदिर की नींव में लग चुकी हैं।’
अयोध्या में तिलक लगाए साधुओं को बाइक पर घूमता देखना कोई असामान्य बात नहीं है। इसी अयोध्या में मंदिर के उद्घाटन के साथ ही कई और कार्यक्रमों का आयोजन होगा। इसी तरह के आयोजनों की तैयारी के तहत एक बड़े संत कारसेवकपुरम के पास ही एक मैदान में महायज्ञ कराएंगे।
दिल्ली की एक इवेंट प्लानिंग कंपनी, हितकारी प्रोडक्शंस को इसकी जिम्मेदारी दी गई है। इस कंपनी के एक अधिकारी कहते हैं, ‘हम सभी लॉजिस्टिक्स का ध्यान रखेंगे जिनमें सोने से लेकर भोजन तक की व्यवस्था शामिल होगी। हम इस आयोजन के लिए जर्मन हैंगर लगा रहे हैं।’
अयोध्या के अखाड़ों में उत्साह का माहौल है जो संतों और साधुओं का संगठन माना जाता हैं और यह धार्मिक तथा राजनीतिक दोनों केंद्रों के रूप में कार्य करता है। एक अखाड़े के महंत कहते हैं, ‘मंदिर ने अयोध्या के लिए च्यवनप्राश की तरह काम किया है। अब यहां दुनिया भर से लोग आ रहे हैं।’
हालांकि अयोध्या शहर से लगभग 25 किलोमीटर दूर, अयोध्या-लखनऊ राजमार्ग से थोड़ी दूरी पर मौजूद धन्नीपुर गांव का नजारा बिल्कुल अलग है। अयोध्या में इस वक्त जो चहल-पहल दिख रही है उसका यहां कोई आभास नहीं मिलता।
अयोध्या विवाद के फैसले के बाद उच्चतम न्यायालय ने मस्जिद बनाने के लिए धन्नीपुर में ही जगह दी। यह पांच एकड़ का क्षेत्र है जहां 18वीं सदी के सूफी संत हजरत शाहगदा शाह की दरगाह है और यह क्षेत्र अभी तक बिल्कुल अछूता है।
इस मस्जिद के लिए पहले भविष्य को ध्यान में रखते हुए स्टील का गुंबद बनाने की योजना थी लेकिन फिलहाल उसे छोड़ दिया गया है। प्रस्तावित मस्जिद का नाम बदलकर ‘मस्जिद मोहम्मद बिन अब्दुल्लाह’ कर दिया गया है।
करीब 2,500 की आबादी वाले धन्नीपुर में कई दशकों से हिंदू और मुस्लिम परिवार मिलजुल कर रह रहे हैं। इसके बगल के गांव रौनाही में मुख्य रूप से मुस्लिम आबादी रहती है। यहां के लोग अतीत की बातों को पीछे छोड़कर अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं। हालांकि, इन्हें भी उम्मीद है कि मस्जिद का निर्माण जल्द ही शुरू होगा और इससे इस क्षेत्र का विकास होगा और समृद्धि आएगी।
मुंबई के भारतीय जनता पार्टी के नेता हाजी अरफात शेख को मस्जिद विकास समिति का अध्यक्ष बनाया गया है। वह कहते हैं कि यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद होगी। उन्होंने मुंबई से फोन पर बताया, ‘इसमें दुनिया का सबसे बड़ा कुरान भी होगा जो 21 फीट चौड़ा और 36 फीट ऊंचा होगा।’ अयोध्या में आप मंदिर या मस्जिद किसी की भी बात कर लें सबकी चर्चा बड़े, विशाल और भव्य जैसे शब्दों के बिना अधूरी रहती है।
शेख आगे कहते हैं, ‘मस्जिद में पांच मीनार होंगी इस्लाम के पांच स्तंभों का प्रतीक है और ये मीनारें भारत की एकमात्र ऐसी मीनारें होंगीं।’
इसके अलावा इस मस्जिद परिसर में एक निःशुल्क कैंसर अस्पताल और इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, लॉ और डेंटल कॉलेज बनाने की भी योजना है। हालांकि 18वीं सदी के सूफी दरगाह के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी।
हालांकि, सभी प्रस्तावित परियोजनाओं के लिए यह जगह पर्याप्त नहीं है इसलिए समिति ने और छह एकड़ जमीन मांगी है। वह कहते हैं, ‘जब यह सब बनकर तैयार हो जाएगा तब यह अद्भुत होगा। राम और रहीम दोनों अयोध्या में रहें, इससे बेहतर क्या बात हो सकती है!’