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दिल्ली-एनसीआर में दिवाली पर पांच दिन तक पटाखे बेचने और फोड़ने की अनुमति मिल सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस संबंध में ऐलान किया है कि दिवाली के दौरान सीमित अवधि के लिए पटाखों की बिक्री और आतिशबाजी की इजाजत ट्रायल बेसिस पर दी जाएगी। यह फैसला कई सालों बाद पहली बार हो सकता है जब त्योहार के दौरान कानूनी रूप से पटाखे जलाने की अनुमति मिलेगी। हालांकि, इसे लेकर प्रदूषण और नियमों के पालन को लेकर चिंता भी जताई जा रही है।
मुख्य न्यायाधीश भूषण आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने केंद्र सरकार के उस प्रस्ताव पर सुनवाई की, जिसमें सिर्फ ग्रीन पटाखों को बेचने और फोड़ने की अनुमति देने की बात कही गई है। ये ग्रीन पटाखे राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (NEERI) द्वारा प्रमाणित होंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पटाखे जलाने की अनुमति तय समय सीमा के भीतर ही दी जाएगी। अदालत ने इस मामले में अंतिम फैसला सुरक्षित रख लिया है।
दिल्ली-एनसीआर और हरियाणा की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि दिवाली के मौके पर केवल हरे पटाखे (Green Firecrackers) रात 8 बजे से 10 बजे तक चलाने की अनुमति दी जाए। इसके अलावा, नए साल की पूर्व संध्या पर रात 11:55 बजे से 12:30 बजे तक और गुरुपुरब के दिन सुबह व शाम एक-एक घंटे के लिए पटाखे चलाने का समय तय करने का प्रस्ताव दिया गया। उन्होंने यह भी साफ किया कि पारंपरिक पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध जारी रहेगा।
निगरानी और पालन के निर्देश
पटाखों के उत्पादन और बिक्री से जुड़ी इकाइयों की नियमित जांच करने का प्रस्ताव रखा गया है। साथ ही, नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए अचानक निरीक्षण भी किए जाएंगे। आम लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार जन-जागरूकता अभियान चलाएगी, जिसमें हरे पटाखों और उनके स्वास्थ्य प्रभावों की जानकारी दी जाएगी।
स्वीकृत उत्पादों की सूची और अनुसंधान
सीएसआईआर-नीरी (CSIR–NEERI) और पेसो (PESO) की ओर से स्वीकृत उत्पादों और निर्माताओं की सूची नियमित रूप से अपडेट की जाएगी। केंद्र सरकार ने अदालत को बताया कि सीएसआईआर-नीरी कम उत्सर्जन वाले पटाखों पर शोध का काम जारी रखेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिलहाल नए परीक्षण केंद्र स्थापित करना संभव नहीं है, इसलिए यादृच्छिक (रैंडम) नमूनों के माध्यम से जांच की जा सकती है। पटाखा निर्माताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकीलों ने अदालत से अनुरोध किया कि बिक्री के लिए अलग-अलग क्षेत्र (सेल जोन) तय किए जाएं ताकि निगरानी और पालन में आसानी हो।
पर्यावरण विशेषज्ञों और अमिकस क्यूरी, जिनमें वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह भी शामिल हैं, ने ग्रीन पटाखों की निगरानी और उनके दुरुपयोग को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि बाजार में “फेक ग्रीन पटाखे” झूठे लेबल के साथ बेचे जा सकते हैं, जिससे प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास कमजोर पड़ सकते हैं।
राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (NEERI) का दावा है कि ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में 30 से 35 फीसदी तक कम प्रदूषण करते हैं। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि अगर इनका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ, तो प्रदूषण घटाने का असर कम हो सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 2018 से 2024 तक के वायु गुणवत्ता के आंकड़ों की समीक्षा की और पाया कि कोविड-19 लॉकडाउन को छोड़कर प्रदूषण के स्तर में कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। अदालत ने कहा कि पिछले वर्षों के अनुभव बताते हैं कि ग्रीन पटाखों जैसे अस्थायी कदमों से प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी नहीं आई है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि इस बार दीपावली पर ग्रीन पटाखों की अनुमति सिर्फ पांच दिनों के लिए ट्रायल आधार पर दी जाएगी। इस दौरान अधिकारियों को प्रदूषण के स्तर की सख्ती से निगरानी करनी होगी। निगरानी के नतीजों के आधार पर तय किया जाएगा कि भविष्य में इस छूट को जारी रखा जाए या नहीं।