कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं की परियोजना नियोजन प्रक्रिया की बार-बार आलोचना होने के बाद सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने राजमार्ग परियोजनाओं के लिए तकनीकी जरूरतों में बदलाव किया है। मंत्रालय ने राष्ट्रीय राजमार्ग परियोजनाओं के लिए सलाहकारों द्वारा तैयार योजना के लिए बोलियों के मूल्यांकन ढांचे में आज बदलाव कर दिया।
नए ढांचे के तहत सलाहकारों द्वारा किए गए पिछले कार्य में अगर कोई खामी है तो उसे भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) जैसी सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की एजेंसियों द्वारा बोली मूल्यांकन प्रक्रिया के दौरान अनिवार्य तौर पर उजागर किया जाएगा। केंद्र सरकार बोली लगाने वाले परियोजना सलाहकारों द्वारा भेजे गए तकनीकी प्रस्तावों के मूल्य को अब 80 फीसदी भार देगी जबकि पहले यह आंकड़ा 70 फीसदी था। ऐसा नहीं है कि केवल भार में ही बदलाव किया गया है। सरकार ने तकनीकी प्रस्तावों के मूल्यांकन के अन्य घटकों में भी बदलाव किया है ताकि इस क्षेत्र में प्रचलित तमाम खामियों को दूर किया जा सके।
परियोजना तैयार करने वालों को अब कम से कम 5 विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करनी होगी। इन डीपीआर को पूर्व अनुभव श्रेणी में प्राथमिकता के आधार पर रखा जाएगा। अब तक उन्हें 3 डीपीआर तैयार करना पड़ती थी। पिछले अनुभव के भार में भी बढ़ोतरी की गई है।
पिछली परियोजनाओं में केंद्र को आम तौर पर भूमि अधिग्रहण में देरी का सामना करना पड़ता था। इसकी मुख्य वजह योजनाकारों द्वारा परियोजना पहले की परियोजनाओं में आम तौर पर योजना बनाने में योजनाकारों द्वारा उचित परिश्रम न किए जाने के कारण केंद्र को अक्सर भूमि अधिग्रहण में देरी से जूझना पड़ता था।
बोली लगाने वालों को अपने पिछले प्रदर्शन की खामियों का खुलासा भी करना है जिनमें मूल योजना की तुलना में क्रियान्वयन के दौरान औसत क्षेत्र में अंतर, योजनाकार द्वारा बनाए गए अंतिम पांच डीपीआर में भूमि अधिग्रहण में होने वाली औसत देरी और योजनागत कार्य में औसत बदलाव की गुंजाइश जैसी चीजें शामिल हैं। इसके अलावा सरकार, कम बोली के प्रचलन पर भी रोक लगाने की उम्मीद कर रही है और इसके लिए परामर्श से जुड़े काम के लिए कम बोली लगाने वालों को तरजीह देने का चलन भी खत्म किया जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि कई बार परामर्शदाता अनुबंध करार के लिए ऐसी कीमतें बताते हैं जो वास्तविक नहीं होती हैं ऐसे में खराब गुणवत्ता वाले डीपीआर बनते हैं।
नए फ्रेमवर्क के मुताबिक सभी बोली का मूल्य जो औसत बोली कीमत का 25 फीसदी या उससे कम है तब उसका वित्तीय स्कोर 100 अंक होगा और इसे बाकी अन्य बोलीदाताओं को दिए गए अंकों के आकलन के लिए एक पैमाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा। पहले सबसे कम बोली लगाने वाले को 100 अंक देने की अनुमति थी।
मुंबई के एक विश्लेषक ने कहा कि सरकार का यह कदम सही दिशा में है लेकिन इससे परियोजना के परामर्शदाताओं की गुटबंदी होने जैसे गैर-इरादतन नतीजे भी देखने को मिल सकते हैं जब कुछ पक्ष एक कीमत पर सहमति बना लेंगे जो 25 फीसदी के दायरे में होगा। ऐसे में कई पक्षों को 100 फीसदी अंक मिल सकता है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने डीपीआर परामर्शदाताओं की सार्वजनिक तौर पर आलोचना की थी।