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महीने में केवल एक बार ही धुले जाते हैं रेलवे के कंबल, RTI खुलासे से मचा हड़कंप

इस सफाई की कमी ने यात्रियों के बीच सफर के दौरान मिलने वाली बिस्तर की स्वच्छता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।

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नंदिनी सिंह   
Last Updated- October 23, 2024 | 4:05 PM IST

भारतीय रेलवे में सफर करने वाले यात्रियों को अब अपने सफर के दौरान साफ-सफाई को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ सकती है। हाल ही में एक सूचना के अधिकार (RTI) के तहत मिली जानकारी से खुलासा हुआ है कि एयर कंडीशन कोचों में यात्रियों को दिए जाने वाले बेडशीट और तकिए के कवर तो हर यात्रा के बाद धोए जाते हैं, लेकिन कंबल केवल महीने में एक बार या उससे भी कम बार साफ किए जाते हैं।

इस सफाई की कमी ने यात्रियों के बीच सफर के दौरान मिलने वाली बिस्तर की स्वच्छता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। यात्रियों की सुरक्षा और आराम के लिए भारतीय रेलवे द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर भी चिंता जताई जा रही है।

एयर कंडीशन कोचों में सफर करने वाले यात्रियों को बेडशीट, तकिए के कवर और कंबल सहित एक साफ-सुथरा बिस्तर सेट दिया जाता है। इन सभी वस्तुओं की लागत ट्रेन के किराए में शामिल होती है, लेकिन इनकी साफ-सफाई में बड़ा अंतर है। RTI के जवाब से पता चला है कि बेडशीट और तकिए के कवर हर यात्रा के बाद धोए जाते हैं, जिससे नए यात्रियों को ताजा सेट मिलता है। हालांकि, कंबलों के साथ ऐसा नहीं होता।

रेल मंत्रालय के पर्यावरण और हाउसकीपिंग प्रबंधन (EnHM) के अनुभाग अधिकारी ऋषु गुप्ता ने पुष्टि की कि ऊनी कंबल महीने में केवल एक बार या कभी-कभी विशेष रूप से गंदे होने पर दो बार धोए जाते हैं। इस जानकारी से यात्रियों में नाराज़गी बढ़ गई है, क्योंकि उन्हें लग रहा है कि वे ऐसी सुविधाओं के लिए पैसे दे रहे हैं जो साफ-सफाई के बुनियादी मानकों पर खरी नहीं उतरतीं।

लंबी दूरी की ट्रेनों में हाउसकीपिंग स्टाफ ने यह पुष्टि की है कि कंबलों की कम धुलाई एक आम प्रैक्टिस है। 10 साल से अधिक अनुभव रखने वाले एक स्टाफ सदस्य ने बताया कि कंबल सिर्फ महीने में एक बार धुलाई के लिए भेजे जाते हैं, वह भी तब जब वे साफ दिखाई न दें। उन्होंने कहा, “हम कंबल तभी धोने के लिए भेजते हैं जब उनमें बदबू आ रही हो या उन पर उल्टी या खाने-पीने की चीजें गिरी हों। वरना, हम बस उन्हें फोल्ड करके फिर से इस्तेमाल कर लेते हैं।”

इस तरह की लापरवाही भरी सफाई से कई यात्रियों को यह सवाल उठाने पर मजबूर कर दिया है कि उन्हें असल में कितनी बार साफ कंबल मिल रहे हैं।

कंबल की सफाई को लेकर चिंताएं नई नहीं हैं। 2017 में महालेखा परीक्षक (CAG) की एक रिपोर्ट में भी यह गंभीर मुद्दा सामने आया था, जिसमें खुलासा हुआ था कि कुछ कंबल छह महीने तक बिना धुले ही इस्तेमाल होते रहे। इस रिपोर्ट के बावजूद, भारतीय रेलवे के कंबल साफ करने के नियमों में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। हाल की RTI से भी पुष्टि होती है कि सफाई के मामले में अब भी बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है।

कंबलों को बदलने की मांग तेज

इन खुलासों के बाद, विशेषज्ञों और पूर्व रेलवे अधिकारियों ने भारतीय रेलवे से ऊनी कंबलों को पूरी तरह हटाने की मांग की है। रेलवे के EnHM डिवीजन के एक रिटायर्ड वरिष्ठ अधिकारी ने सुझाव दिया कि ये भारी कंबल, जिन्हें साफ करना मुश्किल है, अब यात्रियों की जरूरतों के लिए उपयुक्त नहीं हैं। उन्होंने कहा, “कंबल बहुत भारी हैं और इन्हें सही तरीके से धोना एक चुनौती है। अब समय आ गया है कि रेलवे इन्हें हल्के और आसानी से साफ होने वाले विकल्पों से बदले।”

यात्री भी इससे सहमत नजर आते हैं। कई यात्रियों ने दिए गए कंबलों से असंतोष जाहिर किया है, खासकर उनके गहरे रंगों—जो आमतौर पर काले या भूरे होते हैं—के कारण, जो दाग-धब्बों को छिपा देते हैं, जिससे यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि वे सच में साफ हैं या नहीं।

भारतीय रेलवे का देशभर में बड़ा लॉन्ड्री नेटवर्क है, जिसमें 46 डिपार्टमेंटल लॉन्ड्री और 25 BOOT (बिल्ड-ओन-ऑपरेट-ट्रांसफर) लॉन्ड्री शामिल हैं। डिपार्टमेंटल लॉन्ड्री रेलवे के स्वामित्व में हैं, लेकिन इनमें काम करने वाले कर्मचारी अक्सर ठेके पर होते हैं। BOOT लॉन्ड्री में जमीन रेलवे की होती है, जबकि निजी ठेकेदार धुलाई उपकरण और कर्मचारियों का मैनेजमेंट करते हैं।

इन संसाधनों के बावजूद, कंबलों की साफ-सफाई एक बड़ी चिंता बनी हुई है। बिस्तर की सफाई बनाए रखने के लिए बुनियादी ढांचा तो मौजूद है, लेकिन कंबलों की धुलाई के मौजूदा प्रोटोकॉल पर्याप्त नहीं लगते, जिससे यात्री लंबे सफर के दौरान मिलने वाले बिस्तर की स्वच्छता को लेकर चिंतित रहते हैं।

First Published : October 23, 2024 | 4:05 PM IST