facebookmetapixel
Gold vs Silver: सोने से आगे निकली चांदी, लेकिन एक्सपर्ट क्यों दे रहे सोने में दांव लगाने की सलाह?Stocks to Watch today: Hero MotoCorp से लेकर Maruti और Tata Power, आज इन स्टॉक्स पर रखें नजरStock Market Today: गिफ्ट निफ्टी से सुस्त संकेत, एशियाई बाजारों में मिलाजुला रुख; शुक्रवार को कैसा रहेगा बाजार का मूड ?बैटरी बनाने वाली कंपनी मुनाफा बनाने को तैयार, ब्रोकरेज ने दी BUY रेटिंग, कहा- ₹1,120 तक जाएगा भावअगला गेम चेंजर: हाई-स्पीड रेल 15 साल में अर्थव्यवस्था में जोड़ सकती है ₹60 लाख करोड़धीमी वेतन वृद्धि: मुनाफे के मुकाबले मजदूरों की आय पीछे, आर्थिक और सामाजिक चुनौतियां बढ़ींविकास के लिए जरूरी: भारत के अरबपतियों का निवेश और लाखपतियों की वापसीकफ सिरप से बच्चों की मौतें: राजस्थान और मध्य प्रदेश में जांच तेजयूरोप को डीजल का रिकॉर्ड निर्यात! कीमतों में आई तेजीअगस्त 2025 तक फसल बीमा प्रीमियम में 30% से ज्यादा की गिरावट, आक्रामक मूल्य नीति जिम्मेदार

पूर्वोत्तर: पुराने चेहरे मगर नई हकीकत

Last Updated- March 15, 2023 | 11:11 PM IST
Northeast

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हर चुनाव में जीत हासिल कर पूर्वोत्तर और बाकी भारत के बीच बनी खाई को पाटती दिख रही है वहीं मतदाताओं ने बदलाव के बजाय निरंतरता का विकल्प चुना है। लेकिन पूर्वोत्तर के राज्यों के तीन मुख्यमंत्रियों कोनराड संगमा, नेफियू रियो और माणिक साहा को सरकार चलाने में काफी मशक्कत करनी होगी।

आगे की राह थोड़ी असहज

मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा
मेघालय के मुख्यमंत्री कोनराड संगमा

कोनराड कोंगकल संगमा भले ही दूसरी बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और अन्य गठबंधन सहयोगियों के समर्थन से मेघालय के मुख्यमंत्री बन सके हैं लेकिन वह बहुमत से जीत हासिल करने में (60 में से 26 सीट मिलीं) विफल रहे हैं। ऐसे में उनकी राह आसान नहीं रहने वाली है।

उन्होंने एक गठबंधन बनाया है जो बेहद अस्थिर दिखता है, क्योंकि खासी और गारो पहाड़ की जनजातीय समुदाय के बीच पारंपरिक प्रतिस्पर्द्धा सामने आती रहती है। वर्ष 2023 के विधानसभा चुनावों से पहले, उनकी नैशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) और भाजपा ने 2018 में सहयोगी के रूप में चुनाव लड़ा था लेकिन उनके रास्ते अलग हो गए।

पिछली विधानसभा में एनपीपी के प्रमुख संगमा ने सत्तारूढ़ छह दलों वाले मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस (एमडीए) का नेतृत्व किया था। राज्य में दो विधायकों के साथ भाजपा एमडीए का हिस्सा थी। एमडीए सरकार 50 से अधिक वर्षों के दौरान राज्य की सत्ता में अपना कार्यकाल पूरा करने वाली तीसरी गठबंधन की सरकार थी।

हालांकि, पिछले पांच वर्षों में दोनों दलों के दोस्ताना संबंधों में खटास आ गई है। गठबंधन तोड़ने वाले कोनराड एक सहयोगी दल द्वारा उनकी पार्टी को तोड़ने के तरीके से नाराज थे। भाजपा ने एनपीपी को अपने पाले में कर लिया। चुनाव से पहले मेघालय के चार विधायक, फेरलिन संगमा, सैम्यूल संगमा, बेनेडिक मराक और हिमालय मुक्तन शांगपलियांग दिल्ली में भाजपा में शामिल हो गए।

शांति में युद्ध

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो
नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो

नगालैंड के मुख्यमंत्री नेफियू रियो की सरकार में दो उप मुख्यमंत्री, नौ मंत्री, विधानसभा के 24 सदस्य विभिन्न विभागों के ‘सलाहकार’ के रूप में हैं। दिलचस्प बात यह है कि नगालैंड के इतिहास में दूसरी बार कोई विपक्ष नहीं है।

पहली बार, सत्तारूढ़ नैशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (25 सीटें) और भाजपा (12 सीटें) के गठबंधन ने लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए नगालैंड में सत्ता बरकरार रखी। इस गठबंधन ने 60 सदस्यीय विधानसभा में एक साथ 37 सीटें जीतीं। इस जीत के साथ ही रियो चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं।

हालांकि, चुनाव का महत्त्वपूर्ण मुद्दा था, नगा समझौता जिसे फ्रेमवर्क समझौते के रूप में भी जाना जाता है जिसके जरिये ग्रेटर नगालैंड के मुद्दे का हल निकाला जाना है और यह तय किया जाना अभी बाकी है। बहुत कुछ नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) या एनएससीएन (आई-एम) की राजनीतिक स्थिति पर निर्भर करता है।

एनएससीएन (आई-एम) का कहना है कि अप्रत्याशित स्थिति तब पैदा हुई जब भारत सरकार ने मसौदा समझौते की उपेक्षा करनी शुरू कर दी और मसौदा समझौते पर इस तरह के ढुलमुल रवैये ने एनएससीएन (आई-एम) को 31 मई, 2022 को नगा सेना के मुख्यालय में आपातकालीन राष्ट्रीय सभा बुलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। उसी दौरान किसी भी कीमत पर नगाओं के अद्वितीय इतिहास और राष्ट्रीय सिद्धांत को बनाए रखने और उसे संरक्षित करने के लिए एक प्रस्ताव पारित किया गया था।

पहचान बनाने की कवायद

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा
त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा

अक्सर ऐसा नहीं होता है कि किसी राज्य में एक ही नाम के दो मुख्यमंत्री होते हैं। माणिक सरकार के नेतृत्व में, त्रिपुरा में वाम मोर्चा ने न्यूनतम चुनौतियों के साथ 25 वर्षों तक तब तक शासन किया जब तक कि 2018 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) द्वारा निर्णायक रूप से उन्हें हार नहीं मिली। त्रिपुरा में दूसरे माणिक को राज्य की कमान संभालने में तीन साल से अधिक का समय लगा।

पेशे से दांतों के डॉक्टर रहे 69 वर्षीय माणिक साहा ने 2022 में विप्लब देब की जगह मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला। वह फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं। वह भाजपा में शामिल होने से पहले कांग्रेस के साथ थे, लेकिन फिर तेजी से आगे बढ़े और वर्ष 2020 से 2022 तक प्रदेश अध्यक्ष बने।

साहा को देब ने खुद चुना था जब देब मुख्यमंत्री बने थे और उन्हें पार्टी के अध्यक्ष पद से हटना पड़ा था। लेकिन साहा ने जल्द ही अपने गुरु को पीछे छोड़ दिया। उन्हें विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था। भाजपा की सीटों की संख्या वर्ष 2018 की 36 सीटों से घटकर इस दफा 32 हो गई और पार्टी की वोट हिस्सेदारी भी 2018 के 43.59 प्रतिशत से घटकर 39 प्रतिशत रह गई।

इसकी सबसे बड़ी चुनौती अब टिपरा इंडिजिनस प्रोग्रेसिव रीजनल अलायंस (टिपरा मोथा) से जुड़ी है जो आदिवासियों की पार्टी है और यह एक अलग क्षेत्र की मांग कर रही है जिसे सत्तारूढ़ पार्टी ने खारिज कर दिया है।

First Published - March 15, 2023 | 11:11 PM IST

संबंधित पोस्ट