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  बिहार व झारखण्ड  JDU के एकमात्र खेवनहार बने रहेंगे नीतीश कुमार!
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JDU के एकमात्र खेवनहार बने रहेंगे नीतीश कुमार!

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मौजूदा सरकार का उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के बने रहने के संकेत दिए हैं लेकिन उन्होंने अपनी पार्टी जद (यू) के लिए किसी भी उत्तराधिकारी की कोई घोषणा नहीं की है। पार्टी में उपेंद्र कुशवाहा जैसे कई नेताओं में इसको लेकर नाराजगी है

शिखा शालिनी शिखा शालिनी —February 13, 2023 10:20 PM IST
© BS
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हाल में संपन्न हुई जनता दल (यूनाइटेड) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में, बिहार के मुख्यमंत्री और जद (यू) के प्रमुख नीतीश कुमार ने अपने संबोधन में विपक्षी एकता पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की बात की।

उन्होंने कहा कि वह विशेष रूप से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का विरोध करने वाले दलों को एक मंच पर साथ लाने का प्रयास शुरू करने के लिए जल्द ही दिल्ली का दौरा करेंगे। फिलहाल वह राज्य के मौजूदा कल्याणकारी कार्यक्रमों और लंबित परियोजनाओं की प्रगति का आकलन करने के लिए राज्यव्यापी ‘समाधान यात्रा’ पर हैं।

इसमें अब कोई शक नहीं है कि उनकी पार्टी का भविष्य अनिश्चितता से घिरा है। बिहार, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर में जद (यू) एक मशहूर राजनीतिक दल है। लेकिन पार्टी में दूसरी पंक्ति का कोई नेता तैयार नहीं दिखता है जो नेतृत्व के लिए तैयार हो। कभी जॉर्ज फर्नांडिस और शरद यादव जैसे दिग्गज नेताओं के गठबंधन से स्थापित हुए दल, जद (यू) का अस्तित्व पूरी तरह से नीतीश के चेहरे पर निर्भर है।

जद (यू) में दूसरी पंक्ति के नेतृत्व के सवाल पर पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और महासचिव के सी त्यागी कहते हैं, ‘पार्टी में जेपी (जयप्रकाश नारायण) आंदोलन से जुड़े दर्जन भर लोग हैं जो 19-20 महीने तक जेल में रहे। इसके अलावा पार्टी के कई नेता चार से पांच बार लोकसभा सदस्य के रूप में और 10-12 वर्षों तक मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं। पार्टी में दूसरी पंक्ति का मजबूत नेतृत्व है, लेकिन निश्चित तौर पर नीतीश का कोई मुकाबला नहीं है। पार्टी में दूसरी पंक्ति के नेतृत्वकर्ता नेताओं के सवाल की बात सभी दलों पर लागू होती है।’

उनका कहना है, ‘ जद (यू) में पारिवारिक उत्तराधिकार की कोई परंपरा नहीं है। आप यह देख सकते हैं कि पार्टी में फर्नांडिस या शरद के परिवार का कोई सदस्य नहीं है। नीतीश ने अपने परिवार के किसी भी सदस्य को पार्टी में आने के लिए बढ़ावा नहीं दिया और यह कई मायने में अलग राजनीतिक संगठन है।‘

जद (यू) के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘नेतृत्व की समस्या सभी दलों, खासकर क्षेत्रीय दलों में है। अगर हम भाजपा का उदाहरण लें तो इस पार्टी की सकारात्मक बात यह है कि इसमें वंशवादी परंपरा न होने के कारण ही राज्यों में अन्य नेताओं के नेतृत्व को बढ़ावा दिया गया था।

पहले इस पार्टी में एक मजबूत लोकतांत्रिक ढांचा था। जिस तरह की राजनीतिक अनिश्चितता अब है, वह उस समय मौजूद नहीं थी। लोग उन दिनों शीर्ष नेतृत्व से असहमत होते हुए भी पार्टी में बने रहते थे।’

जद (यू) के कुछ असंतुष्ट नेताओं ने स्वीकार किया कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हाल के कुछ वर्षों में कुछ ऐसे फैसले किए जिससे पार्टी के समर्पित नेताओं में निराशा पैदा हुई खासतौर पर तब, जब गैर-राजनीतिक लोगों को कई अहम पद दिए जा रहे थे। उनका कहना है कि उन सभी लोगों ने पार्टी की फजीहत कराते हुए पार्टी को अलविदा कहा चाहे, वह प्रशांत किशोर हों या रामचंद्र प्रसाद सिंह या वर्तमान के असंतुष्ट नेता।

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं, ‘जद (यू) की स्थिति तुलनात्मक रूप से कमजोर हुई है और अब उसकी किस्मत राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से जुड़ गई है। वामपंथी रुझान वाली पार्टियों सहित अन्य दलों के साथ गठबंधन के कारण ही ‘महागठबंधन’ की स्थिति बेहतर दिखाई देती है।’

पार्टी के ही एक सूत्र के अनुसार, जद (यू) पार्टी वंशवादी नहीं है और अगर नीतीश अपने जीवनकाल में पार्टी के उत्तराधिकारी की घोषणा कर देंगे तब यह पार्टी विभाजित भी हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘नीतीश इस तरह का जोखिम क्यों लेंगे? अगर वह किसी को नामित करते हैं तो इसमें कोई संदेह नहीं है कि वह व्यक्ति सत्ता का केंद्र नहीं बन जाएगा और पार्टी या सरकार के कामकाज को प्रभावित करेगा।

आज के दौर में कोई भी अपने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं करता जब तक कि उसका कोई परिवार न हो। निस्संदेह, जद (यू) का भविष्य अनिश्चितता से घिरा है। नीतीश के बाद पार्टी बिखर जाएगी और इस दल के नेता दूसरे दलों में चले जाएंगे क्योंकि पार्टी को संभालने के लिए जद(यू) में नीतीश जैसा कोई नेता नहीं होगा।’

बिहार के राज्य सरकार में जद(यू) की प्रमुख हिस्सेदारी है और मणिपुर में यह दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है। अरुणाचल प्रदेश में भी इसकी मौजूदगी है। 2019 के आम चुनाव में, जद (यू) लोकसभा की 16 सीटें जीतकर सातवीं सबसे बड़ी पार्टी बन गई। जद (यू) लंबे समय से केंद्र और राज्य में भाजपा के साथ जुड़ी रही है।

फर्नांडिस और नीतीश के नेतृत्व वाली ‘समता पार्टी’ और शरद यादव के गुट वाले ‘जनता दल’ का विलय कर वर्ष 2003 में जद (यू) का गठन किया गया था। हाल का विवाद तब शुरू हुआ जब नीतीश ने 2024 के आम चुनावों से पहले विपक्षी दलों के बीच एकता बनाने की इच्छा जताते हुए अप्रत्यक्ष संकेत दिया कि उनके उत्तराधिकारी उप मुख्यमंत्री और राजद नेता तेजस्वी यादव हो सकते हैं।

जदयू के बागी नेता उपेंद्र सिंह कुशवाहा ने नीतीश पर जमकर निशाना साधा जिन्हें संभवतः तेजस्वी के अलावा दूसरे उप मुख्यमंत्री के तौर पर नामित किए जाने से इनकार कर दिया गया था। कुशवाहा ने कहा, ‘मैं नीतीश कुमार से पार्टी को बचाने के लिए कदम उठाने का अनुरोध कर रहा हूं। सवाल मेरे पार्टी छोड़ने का नहीं बल्कि पार्टी को बचाने से जुड़ा है। कुछ लोग उनसे जबरदस्ती कई चीजें करवा रहे हैं।’

त्यागी ने कहा, ‘कुशवाहा पहले भी दो बार पार्टी छोड़ चुके हैं। मैंने उनसे कहा कि अगर कोई वास्तविक शिकायत है तो वह इसे पार्टी के भीतर उठा सकते हैं। भाजपा सभी दलों को तोड़ने में लगी हुई है और कुशवाहा खुद प्रचार में जुटे हैं कि उन्हें कई नेताओं का समर्थन हासिल है। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं है कि जद (यू) का अस्तित्व पूरी तरह से नीतीश पर निर्भर है।’

पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज के एक राजनीतिक विश्लेषक नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, ‘जद (यू) नेताओं की महत्त्वाकांक्षाएं बड़ी हैं, लेकिन उनमें कुछ भी उल्लेखनीय करने का साहस नहीं है। वे नीतीश का विकल्प कैसे बन सकते हैं जब तक वे कोई उल्लेखनीय कदम नहीं उठाते हैं? नीतीश की एकमात्र कमी यह है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई नहीं करते हैं।‘

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