अत्यधिक प्रदूषण करने वाले परिवहन क्षेत्र में कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों को औपचारिक स्वरूप प्रदान करने के लिए केंद्र सरकार राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (एनएपीसीसी) में टिकाऊ परिवहन के लिए एक मिशन को शामिल करेगी।
एक दशक में यह पहला मौका होगा जब एनएपीसीसी में कोई नया मिशन शामिल किया जाएगा। इसके साथ ही भारत यूरोपीय संघ, कुछ विकसित देशों तथा उन अफ्रीकी देशों जैसा हो जाएगा जहां ऐसे ही कार्यक्रम चल रहे हैं। तीन अधिकारियों ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि यह नया मिशन वाहनों से होने वाले प्रदूषण की समस्या को हल करेगा तथा परिवहन क्षेत्र में पर्यावरण के अनुकूल नीतियां विकसित करेगा ताकि शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को हासिल किया जा सके।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा तैयार की जा रही इस योजना को विभिन्न उप क्षेत्रों मसलन सड़क परिवहन, रेलवे, बंदरगाह, नौवहन और नागरिक उड्डयन आदि में बांटा जाएगा।
एक अधिकारी ने बताया, ‘मंत्रालय इस मिशन पर दो साल से काम कर रहा है। अब तक दस्तावेज को मंजूरी नहीं मिली थी। अब वह 2030 और उसके बाद के ताजा आंकड़ों के हिसाब से दस्तावेज को अपडेट कर रहा है।’ परिवहन क्षेत्र के योगदान के मुताबिक क्षेत्रवार आवंटन का निर्धारण सर्वोच्च समिति द्वारा किया जाएगा। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘यह फ्रेमवर्क पर्यावरण के अनुकूल परिवहन उपायों की राह बनाएगा ताकि सड़क परिवहन जैसे परंपरागत रूप से प्रदूषण फैलाने वाले क्षेत्रों के उत्सर्जन को कम किया जा सके और देश अपने व्यापक लक्ष्यों को हासिल कर सके।’ सड़क परिवहन क्षेत्र की रणनीति उत्सर्जन मानकों पर जोर तथा उत्सर्जन घटाने पर होगी। इसमें बीएस-7 जैसे नए मानकों को अपनाने के साथ-साथ वैकल्पिक ईंधन तथा इलेक्ट्रिक व्हीकल का विस्तार शामिल होगा।
सड़क परिवहन देश में सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाला क्षेत्र है। देश में ईंधन क्षेत्र के कुल कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में वह 12 फीसदी का हिस्सेदार है और यह शहरी प्रदूषण में भी बहुत अधिक योगदान करता है। देश के सभी परिवहन माध्यमों में सड़क परिवहन को कार्बन तटस्थ होने में सबसे अधिक समय लग सकता है। फिलहाल इस क्षेत्र के लिए कोई विशुद्ध शून्य योजना नहीं है।
एक अधिकारी ने बताया, ‘अन्य परिवहन क्षेत्रों के लिए योजना व्यापक तौर पर मौजूदा अंतरराष्ट्रीय मानकों के साथ सुसंगत रहेगी। उदाहरण के लिए विमानन क्षेत्र के लिए अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (आईसीएओ), नौवहन के लिए अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन आदि पहले ही विशुद्ध शून्य ढांचे को लेकर सहमत हो चुके हैं।’ मौजूदा ढांचे के तहत अंतरराष्ट्रीय नौवहन और विमानन क्षेत्र 2050 तक विशुद्ध शून्य उत्सर्जन की स्थिति में पहुंचने का लक्ष्य लेकर चल रहे हैं।
आईसीएओ का इरादा 2030 तक कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन को 5 फीसदी कम करने का है। इसके लिए स्वच्छ ऊर्जा का प्रयोग किया जाएगा। वह अंतरराष्ट्रीय विमानन क्षेत्र के लिए कार्बन उत्सर्जन की भरपाई की संभावना भी तलाश कर रहा है। यह एक खास बुनियादी स्तर से परे कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन में किसी भी इजाफे की भरपाई करने का बाजार आधारित उपाय है। नौवहन उद्योग जहाजों पर पहली बार वैश्विक कार्बन शुल्क लगाने की योजना बना रहा है।
वस्तुओं और लोगों के आवागमन को सड़क परिवहन से रेलवे जैसे अपेक्षाकृत हरित माध्यमों की ओर स्थानांतरित करना भी मिशन का हिस्सा है। रेल मंत्रालय ने 2030 तक विशुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने का लक्ष्य तय किया है। इसके लिए रेलवे प्रणाली को बिजली से चलाने और बिजली के लिए नवीकरणीय ऊर्जा का इस्तेमाल करने की योजना है।
सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय तथा पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से इस विषय में प्रतिक्रिया मांगी गई थी जो खबर लिखे जाने तक अनुत्तरित रही। एनएपीसीसी की शुरुआत 2008 में की गई थी और इसके तहत जलवायु परिवर्तन के विपरीत प्रभाव को कम करने तथा उससे अनुकूलित होने के लिए आठ राष्ट्रीय मिशन तैयार किए गए थे।
इनमें सौर ऊर्जा, जल प्रबंधन, ऊर्जा दक्षता, टिकाऊ आवास और टिकाऊ खेती जैसे क्षेत्र शामिल हैं। परिवहन पर मसौदा कार्य योजना को संबंधित मंत्रालयों को भेजा गया है और उनकी टिप्पणी की प्रतीक्षा है। एक अधिकारी ने बताया कि सभी संबद्ध विभागों की प्रतिपुष्टि पाने के लिए गत सप्ताह एक बैठक आयोजित की गई थी। अधिकारी ने कहा कि अंतिम दस्तावेज परिवहन क्षेत्र में भविष्य की पर्यावरण के अनुकूल नीतियों के लिए व्यापक दिशा निर्देश के रूप में काम करेगा।