मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में करीब तीन दशकों से बंद पड़ी प्रसिद्ध हुकुमचंद मिल के कामगारों को उनका बकाया पैसा मिलने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने मंगलवार को मिल मजदूरों और उनके परिवारों को देने के लिए 464 करोड़ रुपये की राशि को मंजूरी प्रदान कर दी। उन्होंने नगरीय प्रशासन विभाग की बैठक में संबंधित फाइल पर हस्ताक्षर किए।
गत एक दिसंबर को उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुबोध अभ्यंकर के एकल पीठ ने आदेश दिया था कि उक्त राशि मजदूरों के खाते में जमा करवा दी जाए। उसके बाद राज्य सरकार ने यह कदम उठाया है।
इंदौर की सबसे बड़ी मिलों में से एक हुकुमचंद मिल को उसके प्रबंधन ने 1991 में बिना किसी पूर्व सूचना के बंद कर दिया था। उस समय मिल में करीब 6,000 श्रमिक काम करते थे। इन श्रमिकों ने अपने बकाया वेतन, ग्रेच्युटी और अन्य लेनदारियों के लिए लंबा संघर्ष किया।
2007 में उच्च न्यायालय ने मजदूरों को 229 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया था। यह राशि मिल की 42.5 एकड़ जमीन बेचकर दिया जाना था लेकिन प्रदेश सरकार ने मिल की जमीन को अपने अधीन बताकर इसकी बिक्री पर रोक लगा दी थी। हालांकि 2018 में उच्च न्यायालय ने इस जमीन पर प्रदेश सरकार के दावे को खारिज कर दिया था।
हुकुमचंद मिल के मजदूर नेता नरेंद्र श्रीवंश ने कहा कि मिल बंद होने के बाद मजदूरों और उनके परिजनों को जिस कठिनाई का सामना करना पड़ा वह कल्पना से परे है। तीन दशक पहले छह हजार श्रमिकों के एक दिन में बेरोजगार हो जाने की कल्पना ही बताती है कि हालात कितने भयावह रहे होंगे।
उन्होंने कहा कि इतने अरसे बाद ही सही लेकिन पैसे मिलने की बात से मजदूर और उनके परिजन प्रसन्न हैं।
गौरतलब है कि बीते 30 सालों में मिल के 6,000 में से 2,000 से अधिक मजदूरों की मौत हो चुकी है और उनमें से अनेक के परिजन अपनी लड़ाई जारी रखे हुए हैं।