Hardeep Singh Puri
दो अलग-अलग तरह के सवाल हैं। मैं अपने शब्द बहुत सावधानीपूर्वक चुनता हूं। लेकिन, गर्भनाल की तरह एक कड़ी है, जो दोनों सवालों को एक साथ जोड़ती है। यह चुनाव भारत के 2014 से 2024 तक विकास को बहुत अच्छी तरह दर्शाता है। कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे बहुत अच्छी तरह से वर्णित भी किया है जब उन्होंने कहा कि 2014 का चुनाव उम्मीदों पर लड़ा गया था, 2019 भरोसे का चुनाव था यानी जो कहा, वही किया और अब यह 2024 का चुनाव सरकार के पिछले दोनों कार्यकाल में जनता पर पड़े प्रभाव का चुनाव है।
आज आप केवल इस बारे में बात नहीं कर रहे कि 2029 में क्या होने जा रहा है, लेकिन मुद्दा यह है कि 2047 का भारत कैसा होगा। लोगों के लिए सरकार ने क्या किया, यह सबके सामने है। हम विश्व की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था से अब 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गए हैं और अगले दो साल में देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है।
ऊर्जा के मोर्चे पर यदि अर्थव्यवस्था अच्छा प्रदर्शन कर रही है तो यह स्पष्ट बात है कि आपको ऊर्जा खपत बढ़ानी होगी। यदि ऊर्जा खरीद कम होती है, तो वह भी कुछ विशेष संकेत देती है। जैसा कि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के मामले में हुआ। वास्तव में, ऊर्जा खरीदना अकेला संकेतक नहीं है (हो सकता है उन्होंने घरेलू उत्पादन किया हो)। लेकिन यदि ऊर्जा खपत और रिफाइनिंग दोनों कम हो रही है तो समझिए वे संकट की स्थिति में हैं।
यहां एक अलग कहानी है। तीन मोर्चों पर देखिए- ऊर्जा की उपलब्धता, ऊर्जा की पहुंच और ऊर्जा स्थिरता । तीनों ही मोर्चों पर भारत का प्रदर्शन बहुत अच्छा है। भारत की ऊर्जा खपत वैश्विक औसत से लगभग तीन गुना अधिक है। अगले 20 वर्षों में विश्व की कुल ऊर्जा मांग में 25 प्रतिशत वृद्धि तो केवल भारत से होगी।
विश्व में तेल की कोई कमी नहीं है। कुछ तेल उत्पादकों द्वारा ऐसा करने का प्रयास किया जाता है। यदि उत्पादन सीमित हुआ, तो निश्चित रूप से इसका असर कीमतों पर पड़ेगा। आज कच्चे तेल की कीमत 87 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल है। यदि तनाव बढ़ा तो कीमतें बढ़ेंगी। आज मैंने ओपेक के महासचिव से बात की है।
क्या मुझे देखकर आपको ऐसा लगता है कि मैं तेल कीमतों को लेकर परेशान हूं? कोई भी पक्ष नहीं चाहता कि संघर्ष की स्थिति काबू से बाहर हो। दूसरे, यदि तनाव बढ़ा, तो हम स्थिति को संभाल लेंगे। समय के साथ हमने इसका इंतजाम कर लिया है और तेल आपूर्ति के विभिन्न स्रोत बना लिए हैं। पहले हम 27 देशों से तेल आयात करते थे, अब यह संख्या 39 हो चुकी है। यदि एक देश या दिशा से आपूर्ति बाधित होती है तो हम दूसरी तरफ से इसे बढ़ा देंगे। ढुलाई का किराया थोड़ा बढ़ जाएगा। लेकिन उस स्थिति में हम खरीदार होने का कार्ड खेलेंगे।
उदाहरण के लिए हम प्रतिदिन 50 लाख बैरल तेल की खपत करते हैं। यदि हम बाजार से हटे, तो उत्पादक देशों के लिए इतनी बड़ी मात्रा में अपना तेल दूसरी जगह खपाना मुश्किल हो जाएगा। इस खेल में हम बिल्कुल भी मजबूर नहीं हैं।
मैं लंबी रेस का धावक हूं। मुझे शिअद के साथ गठबंधन को लेकर कई मोर्चों पर दिक्कत थी। पहला, पंजाब की 117 विधान सभा सीटों में से भाजपा केवल 22 या 23 पर ही लड़ी। इस समय हम पूरे भारत में प्रसार वाली पार्टी हैं, जो 2 लोक सभा सीटों से उठ कर मौजूदा स्थिति तक पहुंची है। अब कोई यह नहीं कहता कि भाजपा बनिया या ब्राह्मणों की पार्टी है। इसके बावजूद पार्टी पंजाब की 13 सीटों में से केवल 3 पर लड़ी।
मेरा मानना है कि अकेले लड़ने से भाजपा को अपनी योजनाएं, कार्यक्रम और ‘राष्ट्र प्रथम’ की नीति को उस रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण राज्य पंजाब में पहुंचाने में मदद मिलेगी, जो पूर्व में आतंकवाद से प्रभावित रहा है। एक बात ओर, किसी भी राज्य में छोटा सहयोगी बन कर लड़ने वाले दल अमूमन गायब हो जाते हैं। दूसरी बात, लोगों के बीच अकाली दल की छवि अच्छी नहीं है। इसीलिए तो राज्य में आम आदमी पार्टी का उभार हुआ। तीसरे, हमें पंजाब का स्वाभिमान लौटाना है। युवा पंजाब छोड़ रहे हैं और यूरोप, कनाडा व अमेरिका में ट्रक चालक की नौकरी कर रहे हैं। क्या यह स्वाभिमान वाली बात है?
प्रत्येक मंत्रालय ने अपनी योजना सौंप दी है। पहले तो आपको सरकार बनानी है। लेकिन, हम अपनी पार्टी का घोषणा पत्र लागू करेंगे। जैसे हमने चार करोड़ घर बनाने का वादा किया है। एक करोड़ बन चुके हैं और हम तीन करोड़ घर बनाने जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा है कि आयुष्मान भारत योजना का लाभ 70 साल से अधिक उम्र के सभी लोगों को मिलना चाहिए। मेरे मंत्रालय में स्ट्रीट वेंडरों के लिए स्वनिधि योजना टीयर-2 और टीयर-3 शहरों और गांवों तक पहुंचाने की योजना है। हमारे घोषणा पत्र में इन योजनाओं को लागू करने का पूरा खाका तैयार है।