अपनी डिजिटल भुगतान व्यवस्था में सुधार या ऐसी व्यवस्था विकसित करने में रुचि लेने वाले कम व मध्यम आय वाले देशों को भारत न सिर्फ तकनीकी विशेषज्ञता मुहैया कराने, बल्कि इसके लिए वित्तपोषण को भी इच्छुक है।
केरल के कुमारकोम में जी-20 शेरपा की बैठक में अलग से बात करते हुए एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम उन देशों को मदद देने पर विचार कर रहे हैं, जिनका अपना डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा है। हमने अपना बुनियादी ढांचा तैयार किया है और इसे जी-20 के माध्यम से दिखा रहे हैं। हम इस तरह की पहल करने वाले देशों का वित्तपोषण भी करेंगे।’
भारतीय रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर टी रविशंकर ने पिछले महीने कहा था कि कैरेबियाई और दक्षिण प्रशांत क्षेत्र और कुछ लैटिन अमेरिकी देश यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस या इस तरह की तकनीक के इस्तेमाल को इच्छुक हैं। बहरहाल इसे केवल तकनीकी विशेषज्ञता तक समझा गया। इस तरह की कवायदों के वित्तपोषण से भारत की मध्य व कम आय वाले देशों तक पहुंच बनाने के मामले में नई दिशा मिलेगी।
एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘यह भारत के सॉफ्ट पावर के प्रसार जैसा है। साथ ही इन तकनीकों में सक्षम भारत के निजी क्षेत्र को विदेश में व्यापार के अवसर मिलेंगे।’
आधार, यूपीआई जैसे डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे में सफलता कुछ ऐसी है, जिसे भारत अपनी जी-20 की अध्य़क्षता में दिखाना चाहता है।
उपरोक्त उल्लिखित अधिकारी ने कहा, ‘इस साल हम करीब सभी कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं और उसमें डीपीआई पर एक सत्र है। हमने कई देशों के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया है, जिसमें जी-20 के बाहर के देश भी शामिल हैं। हम इन सत्रों में सक्रियता से काम कर रहे हैं।’
दोनों अधिकारियों ने कहा कि सत्रों का उपयोग यूपीआई और आधार तकनीक का ब्योरा देने के लिए किया जा रहा है, ताकि उन्हें अपने डिजिटल सार्वजिक बुनियादी ढांचे में इन्हें अपनाने के लिए आकर्षित किया जा सके।
जी-20 की बैठक के मौके पर अलग से बात करते हुए भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) के सीईओ दिलीप असबे ने संवाददाताओं से कहा कि भारत और सिंगापुर द्वारा डिजिटल भुगतान प्रणाली जोड़ने के बाद कई अन्य देश भी इस तरह के लिंकेज में रुचि ले रहे हैं, जिनमें पश्चिम एशिया और दक्षिण एशिया के पड़ोसी देश शामिल हैं।