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अनुच्छेद 370 निरस्त करने का केंद्र का फैसला सही, मानवाधिकार हनन के लिए जल्द हो आयोग का गठन: सुप्रीम कोर्ट

Article 370: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जम्मू कश्मीर का राज्य का दर्जा जल्द से जल्द बहाल हो और 30 सितंबर, 2024 तक विधानसभा चुनाव कराए जाएं।

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भाविनी मिश्रा   
Last Updated- December 11, 2023 | 9:00 PM IST

उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ ने सोमवार को संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के केंद्र सरकार के 2019 के फैसले को सर्वसम्मति से सही ठहराया।

अदालत ने 2019 में जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के कानून की वैधता पर फैसला नहीं दिया। इसके साथ ही अदालत ने जम्मू कश्मीर को जल्द से जल्द राज्य का दर्जा बहाल करने का आदेश दिया। अदालत ने चुनाव आयोग को 30 सितंबर, 2024 तक जम्मू कश्मीर में चुनाव कराने के निर्देश भी दिए।

भारतीय संविधान में 17 अक्टूबर, 1949 को एक खास नियम अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था, जिसके कारण जम्मू कश्मीर को भारत के बाकी राज्यों की तुलना में कुछ खास छूट मिली थी। इस नियम के तहत जम्मू कश्मीर अपना अलग संविधान बना सकता था और अपना झंडा भी रख सकता था। इस अनुच्छेद के चलते भारत की संसद को जम्मू कश्मीर के लिए कानून बनाने के अधिकार भी सीमित थे।

देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायाधीश संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बी.आर. गवई और सूर्य कांत ने सरकार के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के फैसले को बरकरार रखा। उन्होंने कहा कि राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण यह अनुच्छेद एक ‘अस्थायी प्रावधान’ था।

पीठ ने कहा, ‘अनुच्छेद 370 एक अस्थायी प्रावधान है। इसका उद्देश्य अंतरिम व्यवस्था प्रदान करना था, जब तक कि राज्य की संविधान सभा का गठन नहीं हो जाता और यह विलय पत्र में निर्धारित मामलों के अलावा अन्य मामलों पर केंद्र की विधायी क्षमता पर निर्णय ले सकता है और संविधान को अंगीकार कर सकता है। दूसरा, यह एक अस्थायी उद्देश्य के तहत राज्य में युद्ध की स्थिति के कारण बनी विशेष परिस्थितियों को देखते हुए एक अंतरिम व्यवस्था थी।’

अनुच्छेद 370 को हटाने के खिलाफ कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद अदालत ने अपना फैसला सुनाया है। याचियों का कहना था कि अनुच्छेद 370 को हटाना संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ है और यह संविधान के साथ किया जाने वाला धोखा है।

संसद ने जम्मू कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने का एक कानून, जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम भी पारित किया था।

पीठ ने केंद्र सरकार के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के विचारों से सहमति जताते हुए इस विभाजन को बरकरार रखा। पीठ ने कहा, ‘सॉलिसिटर जनरल की इस दलील को देखते हुए कि जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल कर दिया जाएगा, हम यह निर्धारित करना आवश्यक नहीं समझते हैं कि जम्मू कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों लद्दाख और जम्मू कश्मीर में पुनर्गठित करने की अनुमति अनुच्छेद 3 (संसद के पास नए राज्यों के गठन और मौजूदा राज्यों में बदलाव से संबंधित कानून बनाने का अधिकार है) के तहत है या नहीं।’

फैसला सुनाने वाले पीठ ने तीन अलग-अलग निर्णय लिखे। पहला निर्णय, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपनी ओर से न्यायमूर्ति गवई और न्यायमूर्ति कांत के साथ लिखा, वहीं न्यायमूर्ति कौल और न्यायमूर्ति खन्ना ने अलग-अलग सहमति वाले फैसले लिखे। अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का आदेश जारी करने का अधिकार था।

अदालत ने कहा, ‘अनुच्छेद 370(3) को संवैधानिक एकीकरण के लिए लाया गया था, न कि संवैधानिक विघटन के लिए। इस बात को स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि संविधान सभा के भंग होने के बाद 370(3) का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।’ अदालत ने राष्ट्रपति द्वारा 5 अगस्त, 2019 को जारी किए गए संवैधानिक आदेश 272 को बरकरार रखा, जिसने भारतीय संविधान के प्रावधानों को जम्मू कश्मीर पर भी लागू कर दिया।

अदालत ने जम्मू कश्मीर में दिसंबर 2018 में लगाए गए राष्ट्रपति शासन की वैधता पर भी फैसला देने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा, ‘राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्य की तरफ से केंद्र द्वारा लिए गए प्रत्येक निर्णय को चुनौती नहीं दी जा सकती है क्योंकि इससे राज्य का प्रशासन ठप पड़ जाएगा।’

अदालती सुनवाई के आखिर में न्यायमूर्ति कौल ने 1980 के दशक से राज्य में हुए मानवाधिकार हनन की समस्या के समाधान के लिए एक आयोग के गठन की सिफारिश की। उन्होंने कहा, ‘इससे पहले कि हम भूल जाएं, इस आयोग का गठन जल्द से जल्द किया जाना चाहिए। यह समयबद्ध प्रक्रिया होनी चाहिए। पहले से ही युवाओं की एक पूरी पीढ़ी अविश्वास की भावना के साथ बड़ी हुई है और यह पहले उनके लिए है कि हम इस दिशा में सुधार करें।’

न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में मानवाधिकार हनन से जुड़ी कई रिपोर्टें आई हैं। उन्होंने कहा, ‘फिर भी एक बड़ी कमी आमतौर पर एक स्वीकृत कथ्य कि है कि वास्तव में क्या हुआ है या, दूसरे शब्दों में कहें तो यह सामूहिक रूप से सच कहना होगा।’

उन्होंने कहा कि सच बताने से उन पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को एक मौका मिलेगा जिन्होंने राज्य में बहुत कुछ सहा है और साथ ही इस गलती के लिए जिम्मेदार लोग अपनी गलती स्वीकार कर सकें। इससे सुलह की दिशा बनेगी।’

हालांकि, उन्होंने यह चेतावनी दी कि आयोग को आपराधिक अदालतों में नहीं बदलना चाहिए, बल्कि लोगों को यह साझा करने का मंच बनाना चाहिए कि वे किस तरह के गंभीर अमानवीय दौर से गुजरे हैं।

उन्होंने कहा, ‘यह कहने की ज़रूरत नहीं है कि यह आयोग व्यवस्थित सुधारों के लक्ष्य की दिशा में बढ़ने वाले कई रास्तों में से एक है। मुझे उम्मीद है कि यह लक्ष्य तब हासिल होगा जब कश्मीर अपने दिल को खोलकर अपनी भावनाएं जाहिर करेगा और अतीत की बातें स्वीकार करते हुए उन लोगों को सम्मान के साथ वापस आने की सुविधा देगा जो यहां से पलायन करने के लिए मजबूर हुए थे। जो हुआ सो हुआ, लेकिन हमें भविष्य देखना है।’

अदालत ने 5 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखने से पहले 16 दिनों तक इस मामले की सुनवाई की थी।

First Published : December 11, 2023 | 9:00 PM IST