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वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए केंद्र सरकार की समिति ने दिया शीर्ष निकाय बनाने का सुझाव

समिति ने अन्य कई सुझावों के साथ कहा है कि सहकारी समितियों और वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए RBI और नाबार्ड की नियामकीय निगरानी में एक शीर्ष संगठन का गठन किया जाना चाहिए।

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संजीब मुखर्जी   
Last Updated- December 11, 2023 | 11:38 PM IST

केंद्र सरकार की उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा तैयार की गई नई राष्ट्रीय सहकारी नीति में वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए एक शीर्ष संगठन गठित करने का सुझाव दिया गया है। समिति ने अन्य कई सुझावों के साथ कहा है कि सहकारी समितियों और समूहों की ऋण संरचना और वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की नियामकीय निगरानी में एक शीर्ष संगठन का गठन किया जाना चाहिए।

सूत्रों ने कहा कि समिति ने सहकारी समितियों के परिसमापन और उन्हें बंद करने की प्रक्रिया को तार्किक बनाने का भी सुझाव दिया है, जिनका उचित समयसीमा के भीतर पुनरुद्धार संभव नहीं होता है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु की अध्यक्षता में गठित विशेषज्ञों की अधिकार प्राप्त समिति द्वारा तैयार की जा रही नीति में सहकारी क्षेत्र से संबंधी विधायी प्रावधानों में एकरूपता लाने के लिए सभी हितधारकों से सदस्यों का चयन करके एक कार्यबल स्थापित करने की भी सिफारिश की गई है। इसका मकसद इस सेक्टर के क्षेत्रीय उद्यमों के लिए समान अवसर पैदा करना और व्यापार सुगमता लाना है।

इसमें बीमार सहकारी संस्थाओं की सहायता और उनके पुनरुद्धार व उनमें मजबूती लाने, उनके लिए बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिए एक कोष स्थापित करने करने की भी सिफारिश की गई है।

समिति ने व्यापार चक्र के जोखिमों से सदस्यों को बचाने के लिए व्यवस्था विकसित करने और सहकारी उत्पादों के लिए एक ब्रॉन्ड बनाने की सिफारिश की है, जिससे उत्पादों व सेवाओं की तलाश सहज हो सके।

यह नीति केंद्र सरकार की कई कवायदों का हिस्सा है, जिससे देश के सहकारिता आंदोलन में नया उत्साह लाया जा सके। सहकारिता मंत्रालय के गठन और गृह मंत्री अमित शाह को इसका पहला मंत्री बनाए जाने के बाद से यह कवायद की जा रही है।

निर्यात, ऑर्गेनिक उत्पादों व बीज के विकास के लिए 3 नए सहकारी ब्रॉन्डों का गठन और प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पीएसीएस) के ढांचे में बदलाव देश में सहकारी आंदोलन को मजबूती देने की कवायद का हिस्सा है।

समिति ने यह भी सुझाव दिया है कि सहकारी क्षेत्र में प्रशासनिक सुधार किया जाना चाहिए। साथ ही सहकारी चुनाव प्राधिकरण स्थापित करने, ऑडिट प्रोटोकॉल और मानक सुनिश्चित करने, वित्तीय प्रबंधन व पारदर्शिता सुनिश्चित करने और जवाबदेही तय करने की भी सिफारिश की गई है।

समिति चाहती है कि समयबद्ध, साफ सुधरी और पारदर्शी चुनावी प्रक्रिया, भर्तियों में सुधार और शिकायत निपटान व विवाद निपटान प्रणाली विकसित की जाए।

सहकारी समितियों के बारे में नीति में कहा गया है कि शहरी क्षेत्रों में सहकारी क्षेत्र ज्यादातर सेवा और ग्राहक केंद्रित है, इसलिए इनमें आपसी निर्भरता होनी चाहिए और ग्रामीण सहकारी समितियों को इस सेक्टर में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। सूत्रों ने कहा कि रिपोर्ट में सहकारी क्षेत्र में युवाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने की सिफारिश की गई है।

भारत में करीब 8.5 लाख सहकारी इकाइयां हैं। इनमें से 80 प्रतिशत ऋण न देने वाली समितियां हैं, जो मत्स्य पालन, डेरी, प्रोड्यूसर, प्रॉसेसिंग, कंज्यूमर, औद्योगिक, मार्केटिंग, पर्यटन, अस्पताल, आवास, परिवहन, श्रम, कृषि, सेवाओं, पशुपालन, बहुद्देश्यी समितियों के रूप में काम कर रही हैं। अनुमान के मुताबिक 13 करोड़ किसानों सहित 30 करोड़ लोग सीधे तौर पर सहकारी समितियों से जुड़े हैं।

वर्ल्ड कोऑपरेटिव मॉनिटर (डब्ल्यूसीएम) के 2022 के आंकड़ों के मुताबिक भारत के सहकारी संगठनों में इफको, कृभको और जीसीएमएमएफ कृषि क्षेत्र में काम करने वाली शीर्ष समितियां हैं।

नैशनल कोऑपरेटिव यूनियन आफ इंडिया (एनसीयूआई) की एक रिपोर्ट के मुताबिक संख्या के हिसाब से हाउसिंग कोऑपरेटिव की संख्या 22.51 प्रतिशत, डेरी की 22.45 प्रतिशत, श्रम की 7.38 प्रतिशत व अन्य की संख्या 24.09 प्रतिशत है।

अन्य क्षेत्रों में उपभोक्ता, मत्स्य पालन, टेक्सटाइल, हैंडलूम, हस्तशिल्प, औद्योगिक, पशुपालन, मार्केटिंग, चीनी और सेवा से जुड़ी सहकारी समितियां शामिल हैं, जिनकी हिस्सेदारी 5 प्रतिशत से कम है।

ऋण से जुड़ी सहकारी समितियों में प्राथमिक कृषि सहकारी समितियों (पीएसीएस) की हिस्सेदारी 55.16 प्रतिशत है। कर्मचारी बचत सहकारी समितियां 43.35 प्रतिशत और शहरी सहकारी निकाय 0.88 प्रतिशत हैं।

First Published : December 11, 2023 | 11:04 PM IST