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मध्य प्रदेश में आदिवासियों को लुभाने की जुगत में भाजपा

मध्य प्रदेश के चुनावों में आदिवासी मतदाता हमेशा महत्वपूर्ण रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को आदिवासी बहुल सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। यही वजह है कि इस बार पार्टी समय रहते आदिवासियों को साथ लेने का प्रयास कर रही है।

Last Updated- March 28, 2023 | 2:34 PM IST
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Shutter Stock

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों को बमुश्किल आठ महीने का वक्त बचा है और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी रणनीति पर लगातार काम कर रही है। पार्टी अभी तक 2018 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी बहुल सीटों पर मिली हार से उबर नहीं पाई है। आदिवासी समुदाय के प्रभुत्व वाले बड़वानी, धार और अलीराजपुर जिलों में जय युवा आदिवासी संगठन (जयस) के प्रभाव ने भी उसे चिंता में डाल रखा है। पिछले विधानसभा चुनाव में इस संगठन ने कांग्रेस का साथ दिया था।

आदिवासी समुदाय को एक बार फिर अपने साथ लाने के लिए भाजपा अब पंचायत एक्सटेंशन टु शेड्यूल्ड एरियाज (पेसा) अधिनियम और पेसा समन्वयकों की मदद लेने जा रही है। यह अधिनियम आदिवासी समुदाय के प्रभुत्व वाले अधिसूचित इलाकों में पारंपरिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करना चाहता है। इन समन्वयकों की मदद से पार्टी एक तीर से दो शिकार करना चाहती है।

विपक्षी दलों का आरोप है कि इन पदों पर सत्ताधारी दल से जुड़े लोगों को नियुक्ति दी गई है ताकि वे चुनावों में पार्टी की मदद कर सकें। कांग्रेस का कहना है कि वे अपने लिए निर्धारित काम करने के बजाय भाजपा के लिए प्रचार का काम करेंगे।

पेसा समन्वयकों की भर्ती में कथित घोटाले का खुलासा सबसे पहले व्यापम व्हिसल ब्लोअर और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद राय ने किया। उन्होंने इस बारे में जानकारी अपने सोशल मीडिया खाते पर डाली और एक के बाद एक कई जिलों के लिए चयनित समन्वयकों के बारे में तस्वीर के साथ जानकारी दी। राय ने कहा कि झाबुआ जिले में जिला समन्वयक और छह ब्लॉक समन्वयक एक ही संस्थान के हैं।

राय ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘मध्य प्रदेश उद्यमिता विकास केंद्र यानी सेडमैप के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए गए थे। आवेदन प्राप्त होने के बाद मेरिट सूची बनाई गई लेकिन अचानक बिना किसी जानकारी के इसे निरस्त करके एक निजी एजेंसी से आउटसोर्सिंग के जरिये समन्वयक नियुक्त कर लिए गए।’

राय का आरोप है कि यह एक घोटाला है जिसमें मुख्यमंत्री के एक करीबी अधिकारी के शामिल होने का शक है। उनका आरोप है कि करीब 40,000 आवेदकों से करोड़ों रुपये शुल्क वसूलने के बाद प्रक्रिया को निरस्त कर दिया गया। वह कहते हैं, ‘जिला समन्वयक को 40,000 रुपये प्रति माह और ब्लॉक समन्वयक को 25,000 रुपये प्रतिमाह मानदेय दिया जाएगा। जाहिर है चयनित लोगों के नाम सामने आते ही विवाद शुरू हो गया।’

जयस के राष्ट्रीय संरक्षक और कांग्रेस विधायक हीरालाल अलावा ने कहा कि भाजपा ने बेरोजगार आदिवासी युवाओं को ठगा है। उन्होंने कहा कि पेसा समन्वयकों की भर्ती में घोटाला हुआ है और वह इस मामले को विधानसभा में भी उठाएंगे।

इन आरोपों को निराधार करार देते हुए भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता पंकज चतुर्वेदी ने कहा, ‘राज्य में होने वाली हर भर्ती फिर चाहे वह ऑन रोल हो या आउटसोर्सिंग के जरिये, नियमों के दायरे में रहकर ही की जाती है। अगर विपक्ष को हर जगह भाजपा और RSS के लोग नजर आते हैं तो यह उनकी नजर का दोष है।’

पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कहा, ‘आठ फरवरी को सेडमैप ने एक नोटिस जारी करके इन पदों के लिए चयनित करीब 900 अभ्यर्थियों के आवेदन निरस्त कर दिए। मुझे बताया गया है कि इन पदों पर बिना साक्षात्कार के आपके दल से जुड़े लोगों को भर्ती कर लिया गया है।’ उन्होंने इस मामले की जांच स्पेशल टास्क फोर्स से कराने की मांग की है।

भाजपा और कांग्रेस दोनों का ध्यान उन 84 विधानसभा सीटों पर है जहां आदिवासी मतदाता चुनाव नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं। इनमें से 47 सीटें अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित हैं। 2018 में भाजपा को 84 में से 34 सीटों पर जीत मिली थी जबकि 2013 में पार्टी 59 सीटों पर जीती थी। इस प्रकार 2018 में उसे 25 सीटों का नुकसान हुआ। पार्टी उन सीटों को दोबारा अपने पाले में लेना चाहती है।

यही वजह है कि मार्च 2020 में दोबारा सत्ता में आने के तुरंत बाद भाजपा ने आदिवासियों को लुभाना शुरू कर दिया। उसने एक के बाद एक कई आयोजन किए। उसने 19वीं सदी में छोटा नागपुर के मशहूर आदिवासी नेता रहे बिरसा मुंडा के सम्मान में जनजातीय गौरव दिवस मनाना शुरू किया।

इसके बाद विभिन्न स्थानों के नाम बदलकर आदिवासी शख्सियतों के नाम पर रखना शुरू किया गया। भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर गोंड रानी कमलापति के नाम पर रखा गया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आदिवासी राजा शंकर शाह और उनके बेटे रघुनाथ शाह के बलिदान दिवस समारोह में शिरकत की।

आदिवासियों में मजबूत पकड़ रखने वाले जयस ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को चिंतित कर रखा है। उसने पिछले चुनाव में कांग्रेस का समर्थन किया था लेकिन इस बार वह अपने पत्ते नहीं खोल रहा है।

First Published - March 28, 2023 | 2:31 PM IST

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