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लेटरल एंट्री: UPSC के विज्ञापन से अफसरशाही में छिड़ी बहस, विपक्ष भी सरकार पर साध रहा निशाना

नीति आयोग में निदेशक पद पर रहे रणधीर सिंह कहते हैं, 'बाहर से आने वाले अधिकारियों के अनुभव का उपयोग इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें निर्णय लेने की कितनी आजादी दी जाती है।'

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रुचिका चित्रवंशी   
निवेदिता मुखर्जी   
Last Updated- August 18, 2024 | 10:47 PM IST

मंत्रालयों और विभागों में लेटरल एंट्री से शीर्ष पदों पर भर्ती संबंधी संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) के विज्ञापन से योग्यता को लेकर अफसरशाही में बहस छिड़ गई है। विपक्ष भी इस मुद्दे पर सरकार पर निशाना साध रहा है। यूपीएससी ने शनिवार को ही संयुक्त सचिव, निदेशक, उपसचिव जैसे 45 उच्च पदों पर लेटरल एंट्री से भर्ती का यह विज्ञापन निकाला है। केंद्र सरकार ने 2018-19 में यह योजना शुरू की थी और उसके बाद से यह सबसे बड़ी भर्ती प्रक्रिया है।

सरकार ने संकेत दिया है कि लेटरल एंट्री से वह प्रौद्योगिकी, सेमीकंडक्टर, साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, ऑर्गेनिक फार्मिंग और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में उभरती चुनौतियों से निपटने के लिए विशेषज्ञों की भर्ती करना चाहती है। हालांकि कई पूर्व और मौजूदा अफसर इस प्रकार आने वाले अफसरों के सहारे सरकारी व्यवस्था को आगे बढ़ाने के सरकार के इरादे पर सवाल सवाल उठा रहे हैं।

नाम नहीं छापने की शर्त पर एक संयुक्त सचिव ने कहा, ‘हम में से बहुत से अधिकारी ब्यूरोक्रेसी में ही पले-बढ़े हैं। तमाम योजनाओं और रणनीतियों, प्रस्तावों को लेकर उभरने वाली जमीनी चुनौतियों से कैसे निपटना है, हम अच्छी तरह जानते हैं।’

हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि दूसरे क्षेत्रों से तयशुदा संख्या में अफसर आएं तो यह अच्छा रहेगा। पूर्व वित्त सचिव और प्रतिस्पर्धा आयोग के अध्यक्ष रहे अशोक चावला ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘निश्चित समय के लिए दूसरे क्षेत्रों से कुछ अधिकारियों को ब्यूरोक्रेसी में लाना अच्छा निर्णय है। यह एक दूरदर्शी कदम है।’

दूसरे क्षेत्रों के अधिकारियों को सरकार के शीर्ष पदों पर भर्ती की सिफारिश 2017 में नीति आयोग ने की थी। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘लेटरल एंट्री से भर्ती कोई नई बात नहीं है और इसमें भी यूपीएससी के नियमों का ही पालन किया जाएगा।’

उन्होंने यह भी कहा कि यदि विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों में लोगों की आवश्यकता है तो लेटरल एंट्री से ऐसे विशेषज्ञों की भर्ती में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। कई अधिकारी पूर्ववर्ती मनमोहन सरकार में भी इस तरह भर्ती की बात कहते हैं, लेकिन वह इस सरकार की तरह नीतिगत प्रक्रिया नहीं थी। पिछले पांच साल में लेटरल भर्ती प्रक्रिया के जरिए विभिन्न पदों पर 63 अफसरों को नियुक्त किया गया है।

नीति आयोग में निदेशक पद पर रहे रणधीर सिंह कहते हैं, ‘बाहर से आने वाले अधिकारियों के अनुभव का उपयोग इस बात पर निर्भर करेगा कि उन्हें निर्णय लेने की कितनी आजादी दी जाती है।’

वर्ष 2007 से 2011 तक कैबिनेट सचिव रहे केएम चंद्रशेखर ऐसे अफसरों की भर्ती के जरिये प्रक्रिया में बदलाव की जरूरत पर बल देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है, क्योंकि विभागों में कुछ अधिकारी लेटरल एंट्री से आने वाले अधिकारियों का सहयोग नहीं करते। उन्हें लगता है कि इससे उनका हक मारा जा रहा है।

First Published : August 18, 2024 | 10:47 PM IST