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बॉम्बे हाईकोर्ट ने 12 अगस्त को स्पष्ट किया कि केवल आधार, पैन, वोटर आईडी या पासपोर्ट होना भारतीय नागरिक होने का सबूत नहीं है। यह फैसला एक कथित बांग्लादेशी व्यक्ति की जमानत याचिका खारिज करने के दौरान आया, जिस पर भारत में अवैध प्रवेश और नकली दस्तावेज बनाने का आरोप था।
मामला क्या था?
पुलिस ने बबू अब्दुल रफ सर्दार को गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप थे:
जांच के दौरान आरोपी के फोन से बांग्लादेशी जन्म प्रमाण पत्र बरामद हुए। जबकि आरोपी ने भारतीय होने का दावा किया और आधार, पैन और वोटर आईडी पेश किए, कोर्ट ने इन्हें पर्याप्त प्रमाण नहीं माना।
जस्टिस अमित बोर्कर ने कहा कि नागरिकता का दावा केवल नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत ही जांचा जा सकता है और नागरिकता साबित करने का जिम्मा व्यक्ति पर होता है। उन्होंने कहा, “यह मामला साधारण नहीं है। यह केवल बिना अनुमति भारत में रहने या वीज़ा की अवधि बढ़ाने का नहीं है। इसमें नकली दस्तावेजों का निर्माण और उपयोग कर भारतीय होने का दिखावा करना शामिल है।”
इंडियालॉ एलएलपी के राहुल सुन्दरम के अनुसार, हाईकोर्ट ने आरोपी की नियमित जमानत खारिज करते हुए कहा कि उसके फोन से बरामद बांग्लादेशी जन्म प्रमाण पत्र और कॉल रिकॉर्ड ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकता साबित करना आरोपी की जिम्मेदारी है। जब तक वह प्रमाण नहीं देता, केवल आधार, पैन या वोटर आईडी होना पर्याप्त नहीं है।
बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि पहचान और नागरिकता एक जैसे नहीं हैं। जस्टिस अमित बोरकर ने तीन अहम बातें बताईं:
पहचान ≠ नागरिकता
आधार, पैन, वोटर आईडी और पासपोर्ट केवल आपकी पहचान और सेवाओं के लिए हैं, ये आपकी नागरिकता साबित नहीं करते।
नागरिकता साबित करने का तरीका
भारतीय नागरिक होने के लिए आपको 1955 के सिटिजनशिप एक्ट के अनुसार प्रमाण दिखाना होगा, जैसे:
अथिरा साजन, एसोसिएट पार्टनर, किंग स्टब एंड कसिवा ने कहा, “भारतीय कानून के तहत आधार, पैन या वोटर आईडी केवल पहचान या निवास को प्रमाणित करते हैं। नागरिकता साबित करने के लिए सिटिजनशिप एक्ट, 1955 और कानूनी दस्तावेज जरूरी हैं।”
यदि कोई व्यक्ति अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाता और राज्य यह मानता है कि उस पर विदेशी होने का शक है, तो ऐसे में जिम्मेदारी उस व्यक्ति की होती है कि वह अपने भारतीय होने को प्रमाणित करे।
हाल ही में एक न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड, वोटर आईडी और पैन कार्ड जैसी सामान्य पहचान दस्तावेज़ें नागरिकता का निर्णायक प्रमाण नहीं हैं।
संक्षेप में, ये दस्तावेज़ रोज़मर्रा के कामकाज में पहचान के लिए मान्य हैं, लेकिन अदालत में नागरिकता साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
निर्णय के प्रभाव:
इस फैसले से सरकार के अधिकार को भी बल मिला है कि वह केवल प्रशासनिक पहचान दस्तावेज़ों पर निर्भर न होकर नागरिकता की पुष्टि कर सके।