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केंद्र सरकार ने ग्रामीण रोजगार योजना MGNREGA में बड़े बदलाव करने का प्रस्ताव रखा है। इसके तहत योजना का नया नाम ‘विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण)’ या VB-RaM G रखा जाएगा। साथ ही योजना के तहत काम करने वाले दिन 100 से बढ़ाकर 125 दिन किए जाएंगे।
इसके अलावा, केंद्र और राज्यों के बीच योजना के खर्च का हिस्सा अब 60:40 होगा, जबकि वर्तमान में यह अधिकतम 90:10 है।
प्रस्तावित बिल के अनुसार, केंद्र सरकार तय करेगी कि योजना देश के किन हिस्सों में लागू होगी। वहीं, राज्य सरकारों को यह अधिकार होगा कि वे साल में दो महीने अपने कृषि सीजन के दौरान योजना को रोक सकें, ताकि खेती के काम में कोई बाधा न आए।
ड्राफ्ट में कहा गया है, “राज्य सरकारें वित्तीय वर्ष में 60 दिन की अवधि पहले से घोषित करेंगी, जिसमें बीजाई और कटाई के मौसम के दौरान योजना के तहत कार्य नहीं किए जाएंगे।”
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एमजीएनरेगा में प्रस्तावित बदलावों से मजदूरों की मजदूरी की सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। एमकेएसएस (Mazdoor Kisan Shakti Sangathan) और एनसीपीआरआई (National Campaign for People’s Right to Information) के संस्थापक सदस्य निखिल डे ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, “एमजीएनरेगा की सबसे बड़ी सफलता यही थी कि इसने न्यूनतम मजदूरी को हकीकत बनाया। अब मजदूरों के पास यह विकल्प था कि अगर किसी काम के लिए वे तय मजदूरी स्वीकार नहीं करना चाहते, तो वे किसी अन्य काम में जा सकते थे। लेकिन नए मसौदे में प्रस्तावित बदलाव इसे कमजोर कर देते हैं और कृषि मजदूरों के शोषण का रास्ता खोलते हैं।”
डे ने आगे कहा कि यह मसौदा एमजीएनरेगा के तहत मिलने वाले कानूनी अधिकारों को खत्म कर देता है और इसे अब एक आवंटन-आधारित योजना में बदल देता है।
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बिल के मसौदे में योजना के खर्च को लेकर यह बताया गया है कि खर्च का अनुमान लोगों की हाज़िरी, मजदूरी की दर और सामग्री व प्रशासनिक खर्च पर निर्भर करेगा।
मसौदे के अनुसार, अगर यह कानून पूरे देश में लागू होता है, तो सालाना कुल खर्च का अनुमान ₹1,51,282 करोड़ है, जिसमें राज्यों का हिस्सा भी शामिल है। इसमें केंद्र सरकार का हिस्सा ₹95,692.31 करोड़ होगा।
अभी MGNREGA के तहत मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र वहन करता है, जबकि सामग्री पर खर्च का 75% केंद्र और 25% राज्य उठाते हैं। राज्य चाहें तो इस 25% को अधिकतम 10% तक सीमित कर सकते हैं।
राजस्थान जैसे राज्यों में अभी MGNREGA का सालाना खर्च लगभग ₹10,000 करोड़ है। विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि नए फंडिंग पैटर्न के तहत क्या राज्य 40% खर्च उठाने के लिए तैयार होंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि प्रस्तावित कानून में MGNREGA की सुरक्षा उपाय कमजोर किए जा रहे हैं। इसमें सबसे पहले ठेकेदारों के इस्तेमाल पर लगाई गई पाबंदी को कम किया गया है और अब यह तय करने का अधिकार कि कौन-कौन से काम योजना के तहत होंगे, राज्यों से केंद्र को दिया जा रहा है।
साथ ही, योजना में यह भी तय किया गया है कि रोजगार चाहने वाले के घर से पांच किलोमीटर के भीतर काम मिलने की गारंटी अब पूरी तरह सुरक्षित नहीं रहेगी। इसके अलावा, बेरोजगारी भत्ता और देर से भुगतान होने पर मुआवजा देने की जिम्मेदारी पूरी तरह राज्यों पर होगी, जबकि केंद्र की भूमिका कम कर दी गई है।
केंद्र सरकार का कहना है कि ग्रामीण विकास की बदलती जरूरतों और उम्मीदों को ध्यान में रखते हुए अब विभिन्न सरकारी योजनाओं को एक साथ जोड़कर एक समग्र और प्रभावी ग्रामीण विकास ढांचा तैयार करना जरूरी है। इसके तहत ग्रामीण बुनियादी ढांचे के निर्माण को भी अधिक सुव्यवस्थित और भविष्य-उन्मुख तरीके से किया जाएगा, और संसाधनों का वितरण निष्पक्ष और तय मानकों के आधार पर किया जाएगा।
बिल में यह भी प्रावधान है कि केंद्र राज्यों को निर्धारित मानकों के आधार पर बजट आवंटन करेगा, और अगर कोई राज्य अपने आवंटित बजट से अधिक खर्च करता है, तो वह अतिरिक्त खर्च राज्य सरकार को ही वहन करना होगा।
MGNREGA की शुरुआत से अब तक की विकास यात्रा:
MGNREGA को पहली बार 7 सितंबर 2005 को अधिसूचित किया गया था। शुरुआत में यह योजना 2 फरवरी 2006 से केवल 200 जिलों में लागू हुई थी। 2007-08 में इसे 130 और जिलों तक बढ़ाया गया और 1 अप्रैल 2008 से पूरे देश में लागू कर दिया गया, केवल उन जिलों को छोड़कर जहां पूरी तरह से शहरी आबादी है।