निर्माण सेक्टर की कंपनियों में से एक गायत्री प्रोजेक्ट्स को अभी हाल ही में सिंचाई के लिए 21,132 करोड़ रुपये की परियोजनाएं मिल रही हैं। इसके साथ ही कंपनी का ऑर्डर बुक 5,000 करोड़ के स्तर तक पहुंच जाएगा।
यह एक काफी बड़ी संख्या है क्योंकि अभी हाल ही तक इसकी सालाना कमाई 750 करोड़ रुपये तक ही थी। साथ ही, 2007-08 तक इसका बाजार मूल्य सिर्फ 65 करोड़ रुपये का ही था। वैसे कंपनी के सामने कई चुनौतियां भी हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो यह है कि कंपनी ने कई परियोजनाओं में मायटास इन्फ्रा की मदद मांगी थी। कंपनी के एमडी संदीप रेड्डी से हमारे संवाददाता जीतेंद्र कुमार गुप्ता ने बात की।
गिरते ब्याज दरों और जिंसों की कीमतों का क्या असर होगा?
ब्याज दरों का असर सिर्फ बीओटी (बिल्ट-ऑपरेट-ट्रांसफर) प्रोजेक्ट्स पर ही पड़ता है। इसका असर सामान्य निर्माण पर नहीं पड़ता। हमारे कुल कारोबार का एक तिहाई हिस्सा बीओटी प्रोजेक्ट्स से आता है। लेकिन हमने वित्तीय रूप से इसका निपटारा कर लिया है, तो इसका असर हम पर नहीं होगा। जहां तक जिंसों की कीमतों की बात है, तो हमारे सारे सौदे लागत के बढ़ने से बचे हुए हैं।
बीओटी प्रोजेक्ट्स के अलावा दूसरी जगहों पर जिंसों की कीमतों में इजाफा से जरा सा ही दबाव पड़ा था। बीओटी प्रोजेक्ट्स की लागत तय होती है। अब ये सारे पुराने स्तर पर पहुंच चुके हैं। आने वाली तिमाही में हम अपने मर्जिन की हिफाजत आराम से कर लेंगे।
कंपनी को हाल ही में 2,131 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिले हैं। अभी आपके ऑर्डर बुक की क्या हालत है?
इस सितंबर तक तो हमारी ऑर्डर बुक 3000 करोड़ रुपये का था। हमें 2,100 करोड़ रुपये का हाल ही में ऑर्डर मिला था। साथ ही, मार्च तक हमें 500 करोड़ रुपये ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। हमारे पास मार्च के अंत तक 5,000 करोड़ रुपये का ऑर्डर बुक होगा।
आप इतने बड़े स्तर के प्रोजेक्टों को पूरा कैसे करेंगे?
ये ईपीसी कॉन्ट्रैक्ट हैं, जहां हमें पांच फीसदी रकम एडवांस में मिली है। ये प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए काफी है। इसके साथ-साथ हमें कुछ कार्यशील पूंजी की भी जरूरत होगी। साथ ही, ये लंबी अवधि के प्रोजेक्ट हैं, जिन्हें पूरा होने में कम से कम 53 महीने (4.5 साल) का वक्त लगेगा। हमें पहले अपना सर्वे पूरा करना पड़ेगा। फिर इसके बारे डिजाइन तैयार करेंगे। और फिर जा कर निर्माण कार्य शुरू होगा। यह सब होने में कम से कम छह महीने का वक्त लगेगा। इसलिए हर साल हमें ज्यादा से ज्यादा काम करना पड़ेगा।
आपकी कंपनी को एक क्षेत्रीय खिलाड़ी समझा जाता है, जिसे रोड बनाने में महारत हासिल है। आप क्या कहेंगे?
अब तो हम कई क्षेत्रों में पहुंच चुके हैं। हमने कई राज्यों तक अपनी पहुंच को बना लिया है। अब तो हम ऐसे प्रोजेक्टों के लिए ही बोली लगाते हैं, जहां हमें मौके दिखाई देते हैं। हम तो सिचाईं सेगमेंट में भी काफी मजबूत हो चुके हैं।
साथ ही, इन प्रोजेक्टों पर काफी समय से काम भी कर रहे हैं। हालांकि, सड़क परियोजनाओं के मुकाबले सिंचाई परियोजनओं का आकार काफी छोटा है। वजह यह है कि सड़क और बुनियादी ढांचे से जुड़ी परियोजनाओं के निर्माण में काफी पैसे की जरूरत होती है। हालांकि, सिंचाई का कारोबार भी अब जोर पकड़ रहा है। अकेले आंध्र प्रदेश में हम 40-50 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं।
आपकी कंपनी के प्रमोटरों ने शेयरों को गिरवी रखा है। इस बारे में बताएं?
हमने शेयरों के बदले किसी तरह का कोई कर्ज नहीं लिया है। हमने उन्हें बस सुरक्षा के तौर पर बैंकों के हवाले किया है। इस पैसे का इस्तेमाल हम समूह की कंपनियों को फैलाने के लिए करेंगे।
उन परियोजनाओं का क्या होगा, जिसमें आपके साथ मायटास इन्फ्रा थी?
हमें जो पांच बीओटी प्रोजेक्ट्स मिले थे, उनमें से तीन हमने मायटस के साथ हासिल किया था। हमने बैलेंस इक्विटी के लिए पहले ही हलफनामा दिया था। जो पैसे मायटस अब नहीं लगा सकती है, उसे हम अब लगाने के लिए तैयार हैं। मायटास हमारी ईपीसी परियोजनाओं में से सिर्फ दो हमारे साथ थी। यहां भी हम मायटास के बदले पैसा लगाने के लिए तैयार हैं। हालांकि, हम कंपनी लॉ बोर्ड के फैसले का इंतजार कर रहे हैं।
