बीएस बातचीत
ऐक्सिस एमएफ के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) आर शिवकुमार ने चिराग मडिया के साथ साक्षात्कार में कहा कि आरबीआई ने फेडरल द्वारा रियायतें वापस लिए जाने की वजह से पैदा होने वाली संभावित अस्थिरता को सीमित करने के लिए विदेशी मुद्रा भंडार जमा किया है। उन्होंने बताया कि भारत में विदेशी पूंजी प्रवाह के मुख्य वाहक वैश्विक निर्धारित आय बेंचमार्कों में भारतीय बॉन्डों को शामिल करना होगा। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
क्या आप मानते हैं कि आरबीआई द्वारा तुरंत ब्याज दरें बढ़ाई जा सकती हैं?
दिसंबर, 2019 से, भारत में औसत मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत से ज्यादा रही है। इसके बावजूद भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए अनुकूल मौद्रिक नीति अपनाई है। महामारी के दौरान लॉकडाउन की वजह से अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई है। लगता हैं अब हम दूसरी लहर को मात दे चुके हैं और टीकाकरण में तेजी आई है। इससे आने वाले महीनों में सामान्य वृद्घि में मदद मिलेगी। इस वजह से इस असाधारण मौद्रिक नीति की लंबे समय तक जरूरत नहीं रहेगी।
अमेरिका में रियायत नरमी का भारतीय बॉन्ड बाजारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
इसी तरह, भारत में भी हमें आरबीआई द्वारा मौद्रिक नीति को सामान्य बनाने की प्रक्रिया शुरू किए जाने की संभावना है। हम प्रमुख वैश्विक केंद्रीय बैंकों से क्यूई जैसी विशेष रियायतें वापस लिए जाने की उम्मीद कर सकते हैं। हमें यह याद रखना चाहिए कि फेडरल और अन्य केंद्रीय बैंक मजबूत अर्थव्यवस्था की स्थिति में ही ऐसा करने में सक्षम हैं। यदि लंबे समय तक वैश्विक वृद्घि का रुझान मजबूत बना रहा तो हम इस रियायत नरमी (फेडरल रिजर्व द्वारा) के परिणाम के तौर पर कोई बड़ा प्रभाव नहीं देख सकते हैं। 2013 की रियायत के मुकाबले, इस बार आरबीआई ने अस्थिरता को सीमित करने के लिए मजबूत विदेशी मुद्रा भंडार तैयार किया है।
क्या आप भारतीय उद्योग जगत के लिए किसी तरह के डाउनग्रेड या डिफॉल्ट की आशंका देख रहे हैं?
वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही के बाद से, हमने डाउनग्रेड के मुकाबल अपग्रेड ज्यादा देखे हैं। यह 2018 के आईएलऐंडएफएस संकट के बाद कॉरपोरेट बैलेंस शीट में सुधार की वजह से ही संभव हुआ है। हमने नीतिगत समर्थन भी दर्ज किया, जिसमें सरकार की आंशिक ऋण गारंटी और आरबीआई द्वारा लक्षित दीर्घावधि रीपो ऑपरेशन, मोरेटोरियम और पुनर्गठन के जरिये सहायता प्रदान करना शामिल है। इसके अलावा, संगठित क्षेत्र ने भी महामारी के दौरान असंगठित क्षेत्र के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया, जो कॉरपोरेट बॉन्ड बाजारों के लिए सकारात्मक है, क्योंकि सूचीबद्घ बॉन्ड बड़ी और संगठित कंपनियों द्वारा जारी किए जाते हैं। पिछले साल के दौरान, बॉन्ड बाजार का अच्छा प्रदर्शन करने वाला खंड क्रेडिट सेगमेंट रहा, भले ही ज्यादातर निवेशक इससे अवगत नहीं हो सकते हैं। हमें उम्मीद है कि कंपनियां लगातार अच्छा प्रदर्शन करेंगी, क्योंकि वृहद अर्थव्यवस्था विकास की राह पर लौट रही है।
मौजूदा परिवेश को देखते हुए आप डेट निवेश का प्रबंधन कैसे कर रहे हैं?
अच्छी गुणवत्ता वाले और अल्पावधि डेट निवेश पर प्रतिफल पिछले साल के दौरान काफी कम रहा। दरअसल, इन बॉन्डों का प्रतिफल समान अवधि के दौरान औसत मुद्रास्फीति दर से नीचे रहा है। अच्छा वास्तविक प्रतिफल पाने के लिए आपको या तो क्रेडिट या दीर्घावधि बॉन्डों पर ध्यान देना होगा। क्रेडिट (गैर-एएए बॉन्डों) ने अच्छा प्रदर्शन किया है और हमें अच्छी वृद्घि से इस खंड में और मजबूती आने की संभावना है। हमारा मानना है कि ये सेगमेंट हमारे पोर्टफोलियो का अहम हिस्सा होंगे।
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश डेट श्रेणी में सकारात्मक रहा है, भले ही हमने इस तिमाही में इक्विटी से कुछ निकासी दर्ज की। ऐसा क्यों है?
विदेशी निवेशकों से प्रवाह में अल्पावधि बदलाव का उचित कारण बताना हमेशा से कठिन रहा है। हमें पूंजी प्रवाह मजबूत बने रहने की संभावना है। मुख्य वाहक वैश्विक फिक्स्ड-इनकम बेंचमार्कों में भारतीय बॉन्डों को शामिल करना होगा।
यह वर्ष डेट निवेशकों के लिए खराब रहा है। क्या अगला वर्ष बेहतर रहेगा?
इस साल बॉन्डों पर कम प्रतिफल कम ब्याज दर परिवेश की वजह से है। प्रभावी ब्याज दर 3-3.25 प्रतिशत रही है और पूरे पूंजी बाजार ने 4 प्रतिशत से नीचे प्रदर्शन किया है। बॉन्ड बाजार भी प्रभावित हुआ है क्योंकि बाजार में आरबीआई द्वारा आगामी दर वृद्घि का असर दिखा है।