बाजार पर फेड की बैठकों का दबाव रहेगा कम

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 11, 2022 | 5:31 PM IST

अमेरिका में ताजा रिटेल मुद्रास्फीति 9 प्रतिशत (फेडरल रिजर्व की बैठक से पहले) से ऊपर पहुंचने के साथ बर्न्सटीन के प्रबंध निदेशक वेणुगोपाल गैरे ने पुनीत वाधवा को एक साक्षात्कार में कहा कि भारत से एफआईआई निकासी 2022 की दूसरी छमाही में कम रहेगी, जिसका संकेत कुछ हद तक वैश्विक वृहद कमजोरी में नरमी के तौर पर दिखा है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या बाजार अमेरिकी फेडरल बैठक में हर बार नीति निर्माताओं की घोषणाओं के निर्णयों से बिकवाली देखेंगे, या भारी दर वृद्धि को सहन करने की संभावना है?
यह पैटर्न हर बार एक जैसा रहने की संभावना नहीं है, खासकर, तब जब मुद्रास्फीति संबंधित दबाव दूर होने का अनुमान है। यदि मुद्रास्फीति तेज होती है या मांग में लगातार मजबूती या आपूर्ति शृंखला चुनौतियों के कारण बनी रहती है तो दर वृद्धि की मात्रा को लेकर चिंता पैदा होगी। अन्यथा, बाजार पर 2022 की दूसरी छमाही में फेड बैठकों का कम असर पड़ने की संभावना है।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि फेडरल द्वारा इस साल के अंत में अपने रुख में बदलाव किए जाने की संभावना है, खासकर अमेरिका में मध्यावधि चुनाव समाप्त हो जाने के बाद। क्या दरों में वृद्धि राजनीतिक दबाव से ज्यादा प्रेरित है, जैसा कि कई अर्थव्यवस्थाएं मुद्रास्फीति को काबू में करने के लिए करती हैं?
हम इन निर्णयों को राजनीतिक हवा देने वाले खेमे में शामिल नहीं हैं, क्योंकि समस्या का समाधान जरूरी है, नहीं तो इसका भविष्य में व्यापक प्रभाव पड़ेगा। मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए मांग संबंधित नरमी और आपूर्ति संबंधित समाधानों, दोनों की जरूरत होती है।  आपूर्ति के संबंध में तुरंत बदलाव नहीं लाया जा सकता है, लेकिन मांग संबंधित उपायों को मजबूती के साथ बढ़ावा दिए बगैर अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं किया जा सकता। इसलिए मुद्रास्फीति की मात्रा या समय सीमा के नजरिये से, बड़ी वृद्धि अब की जाएगी। ये अमेरिका में कुछ तिमाहियों पहले शुरू की गई हैं। हम इन निर्णयों को आर्थिक वृद्धि के तौर पर देखेंगे।

बाजार में गिरावट के बीच आपकी रणनीति क्या रही है?
उभरते बाजार के संदर्भ में, हमने भारत को सीमित दायरे के नजरिये से डाउनग्रेड किया है। नजरिये में व्यापक बदलाव इक्विटी के लिए संपूर्ण नरमी की उम्मीद पर आधारित था और इसलिए बड़े अवसरों के लिए गुंजाइश सीमित है। यह भारांक के संदर्भ में अन्य बाजारों के बारे में नहीं था। भारी मूल्यांकन को छोड़कर, हम भारत को अन्य उभरते बाजारों के मुकाबले खराब बाजार के तौर पर नहीं देख रहे हैं। हमें जीडीपी वृद्धि नरम रहने की संभावना है, लेकिन अभी भी मौजूदा रुझानों से ऊपर बने हुए हैं। इसके अलावा, निर्यात पर कम निर्भरता से भी मदद मिली है।

क्या आप भारत पर अपने नजरिये के बारे में विस्तार से बता सकते हैं?
हम बाजार को अभी भी सीमित दायरे में देख रहे हैं, लेकिन निफ्टी-50 के लिए दायरा घटाकर 13,500-16,000 कर दिया है। बाजार के लिए इस दायरे का निचला स्तर तोड़ने की संभावना कम है, हालांकि समय समय पर ऊपरी दायरा टूटने के आसार हैं, खासकर इसलिए, क्योंकि मुद्रास्फीति चिंताएं कम हुई हैं और दर चक्र चरम के नजदीक है। हमारा बाजार दायरा सूचकांक आय के लिए 18 प्रतिशत से कम वृद्धि के अनुमान पर आधारित है। वैश्विक वित्तीय संकट (जीएफसी) के दौरान कम आय जोखिम की मात्रा के साथ, जीडीपी की कमजोर पृष्ठभूमि से अर्थव्यवस्था में दबाव सीमित करने और सतर्क वित्तीय व्यवस्था से लंबे संकट की आशंका कम करने में मदद मिली है। क्षेत्रीय संदर्भ में, हम कंज्यूमर डिस्क्रेशनरी और जिंसों के मुकाबले वित्त, दूरसंचार, और आईटी सेवाओं को पसंद कर रहे हैं। हमने पिछले साल स्मॉल-कैप और मिड-कैप को डाउनग्रेड किया और तब से इस रुख में कोई बदलाव नहीं किया है।

भारतीय बाजारों में एफआईआई निवेश के लिहाज से आगामी राह कैसी है?
पूंजी निकासी की मात्रा पहले की काफी बढ़ चुकी है, ऐतिहासिक संदर्भ में भी यह काफी ऊपर है। पूंजी निकासी 2022 की दूसरी छमाही में कम रहेगी, क्योंकि ऐसा वैश्विक वृहद कमजोरी की मात्रा और क्यूटी यानी सख्ती के प्रभाव पर आधारित होगा।  सितंबर से क्यूटी मात्रा में और तेजी आई और इसके प्रभाव पर नजर रखे जाने की जरूरत होगी।

सरकार मान रही है कि पूंजीगत खर्च योजनाओं और क्रियान्वयन से अर्थव्यवस्था को मदद मिलेगी। कंपनियां ऐसे समय में पूंजीगत खर्च पर जोर क्यों दे रही हैं, जब वैश्विक केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति नियंत्रण के लिए मांग को भी नजरअंदाज कर रहे हैं?
सरकार को कच्चे तेल के कुझ बोझ के बावजूद मौजूदा कार्यक्रमों मे तेजी लाकर पूंजीगत खर्च बढ़ाने की जरूरत है। निजी क्षेत्र के पूंजीगत खर्च निर्णयों को टाला गया है, क्योंकि हालात अभी भी नई परियोजनाओं में तेजी लाने के लिहाज से ज्यादा अनुकूल नहीं हैं। ऊंची दरों और अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता भी इसके मुख्य वाहक हैं। हालांकि यह इस साल के लिए एक बड़ी चुनौती है। हमें अर्थव्यवस्था के इन चिंताओं से उबरने की संभावना है।

First Published : July 18, 2022 | 1:19 AM IST