स्मार्ट सेक्टर – उत्पाद कर में चार फीसदी की कटौती, निर्यात पर छूट, हाउंसिंग सेक्टर के लिए राहत पैकेज और आयातित सीमेंट पर प्रतिपूर्ति शुल्क (सीवीडी) को फिर से लगाकर सरकार ने इस सेक्टर को काफी राहत दी है।
राहत पैकेज, जिंसों की कीमतों में तेज गिरावट, न्यूनतम स्तर पर आ चुका मूल्यांकन और पिछले दो महीनों में आए तेज उछाल की वजह से अब सीमेंट उद्योग की तरफ निवेशक वापस खिंचे चले आ रहे हैं।
फिर भी इस उद्योग के लिए राहत का असल सबब तो तभी आएगा, जब मंदी की काली छाया वैश्विक अर्थव्यवस्था से हटेगी। बता रहे हैं धीरेन शाह
राहत पैकेज, जिंसों की कीमतों में तेज गिरावट, न्यूनतम स्तर पर आ चुका मूल्यांकन और पिछले दो महीनों में आए तेज उछाल की वजह से अब सीमेंट उद्योग की तरफ निवेशक वापस खींचे चले आ रहे हैं।
अंबुजा सीमेंट और एसीसी जैसी बड़ी कंपनियों के शेयरों ने तीसरी तिमाही में जबरदस्त प्रदर्शन किया है। हालांकि, विश्लेषकों के मुताबिक अगला वित्त वर्ष इस सेक्टर के लिए खासा चुनौतीपूर्ण रहेगा। वजह है, रियल एस्टेट की पतली हालत और मांग से ज्यादा सप्लाई की हालत।
मौका या धोखा?
नवंबर और दिसंबर में सीमेंट के उत्पादन में पिछले साल के मुकाबले 11.2 और 12.1 फीसदी का इजाफा हुआ। दूसरी, तरफ अप्रैल से लेकर अक्टूबर के महीने तक इसमें सिर्फ 6.3 फीसदी का इजाफा हुआ था।
वक्त है चुनाव का, तो ऐसे मंल बुनियादी ढांचा सेक्टर की तरफ से मांग में इजाफा होगा ही। साथ ही, क्षमता में इजाफे की वजह से सीमेंट के उत्पादन में अभी और इजाफा होगा। श्री सीमेंट ने पिछले साल के मुकाबले 37.1 फीसदी का जबरदस्त इजाफा दर्ज किया है।
एक विश्लेषक का कहना है, ‘इस बात को याद रखिएगा कि पिछले साल दिसंबर में इस सेक्टर में सिर्फ 4.8 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ था, जबकि इस साल इस औसत विकास दर आठ फीसदी है। तो उत्पादन के आंकड़ों में आए इस इजाफे में बेस इफेक्ट का भी हाथ है।’
दूसरी तरफ, अक्टूबर में नगदी की तंगी की वजह से इस सेक्टर की विकास दर सिर्फ 4.1 फीसदी रही थी। नगदी की हालत सुधरने की वजह से आगे के महीनों में मांग की स्थिति अच्छी रही है।
इसके अलावा, ट्रांसपोर्टरों की हड़ताल की आशंका की भी वजह से उत्पादकों ने सीमेंट की अच्छी-खासी मात्रा पहले ही डीलरों के पास भेज दिया था।
इडलवाइस सिक्योरिटीज की विश्लेषक रेवती मेयानी की राय है कि, ‘पारंपरिक तौर पर दिसबंर से लेकर मार्च तक के महीने सीमेंट उद्योग से अच्छे होते हैं। इस दौरान मांग वैसे ही अच्छे स्तर होता है। हालांकि, अगले कुछ महीनों तक मांग अच्छी खासी हालत में रहेगी, लेकिन बड़ी अवधि में इस स्तर को बनाए रख पाना मुश्किल होगा।’
असल मुसीबत
रियल एस्टेट सेक्टर पर मंदी की मार जो आज पड़ रही है, उससे सीमेंट उद्योग भी अछूता नहीं है। कैसे? दरअसल, मुल्क में होने वाले कुल सीमेंट उत्पादन का 65 फीसदी हिस्सा तो रियल एस्टेट ही इस्तेमाल करती हैं।
अकेले आईटी और आईटीईएस उद्योग मुल्क भर के ऑफिस स्पेस का तीन-चौथाई हिस्से लेता है। अब इस सेक्टर में नए लोगों को तो रखा नहीं जा रहा है, तो इसका असर भी सीमेंट की मांग पर पड़ना तय है। सीमेंट का निर्यात भी अप्रैल-दिसंबर के बीच एक करोड़ टन से घटकर 21 लाख टन रह चुका है।
वजह है, मध्य पूर्व में क्षमता का विस्तार और वहां के रियल एस्टेट सेक्टर में भी मंदी का साया पड़ चुका है। सीमेंट की असल मांग का अंदाजा, मुल्क की विकास दर से लगाया जा सकता है। असल में, सीमेंट की असल मांग वृध्दि दर अक्सर विकास दर से 1.2 गुना ज्यादा होती है।
अगर मुल्क की विकास की दर वित्त वर्ष 2009 और उसके अगले साल 6.5 और छह फीसदी रहती है, तो विश्लेषकों के मुताबिक सीमेंट की मांग में 7.8 और 7.2 फीसदी का इजाफा होगा। वित्त वर्ष 2011 के अंत तक नौ से 9.5 करोड़ टन की अतिरिक्त उत्पादन क्षमता शामिल हो जाएगी।
इसका मतलब यह हुआ कि वित्त वर्ष 2009 और 2010 में उत्पादन क्षमता में एक और 3.5 करोड़ टन का इजाफा होगा। दूसरी तरफ, दिसंबर में सीमेंट की एक 50 किलो बोरी की कीमत कम होकर 234 रुपये रह गई थी, जबकि नवबंर में यही कीमत 238 रुपये थी।
विश्लेषकों के मुताबिक अगली तिमाही में कीमतों में अभी और कमी आएगी। साथ ही, वित्त वर्ष 2010 में तो कीमतों में 5-10 फीसदी की कमी आएगी।
उम्मीद की किरणें
उत्पाद कर में चार फीसदी की कटौती, निर्यात पर छूट, हाउंसिंग सेक्टर के लिए राहत पैकेज और आयातित सीमेंट पर प्रतिपूर्ति शुल्क (सीवीडी) को फिर से लगाकर सरकार ने इस सेक्टर को काफी राहत दी है।
हालांकि, उत्पाद कर में छूट के फायदे को पहले ही कीमतों में कटौती के रूप में लोगों को दिया जा चुका है। साथ ही, सीमेंट के निर्यात पर रोक हटाने का फायदा सीमित ही रहेगा क्योंकि सरकार ने सिर्फ गुजरात के बंदरगाहों से ही सीमेंट के निर्यात की इजाजत दी है।
राहत का सबब
कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट और मंदी की वजह से कोयले की कीमतों में भी तेजी से कमी आई है। इसी वजह से पेटकोक की कीमतों में भी तेजी से गिरावट आई है। शिपिंग की कीमतें भी कम होने से कोयले की कीमतों में और भी तेजी से गिरावट आई है।
सीमेंट उत्पादन लागत में बिजली और ईंधन का हिस्सा 25 फीसदी का होता है। हालांकि, इसका फायदा अलग-अलग कंपनियों में अलग-अलग हो रहा है। वजह है, उनके अलग-अलग हालात और आयतित कोयले पर उनकी अलग-अलग निर्भरता।
बड़े स्तर पर सीमेंट कंपनियों को उम्मीद है कि ब्याज दरों में कटौती की वजह से हॉउसिंग डिमांड में इजाफा होगा। इससे उनकी मांग में भी इजाफा होगा।
हमारी पसंद
एसीसी और अंबुजा सीमेंट ने अपनी क्षमता में जो इजाफा किया है, उसका असर इस साल या अगले साल के अंत में ही दिखाई देगा। इस वजह से उनके उत्पादन में अभी कोई इजाफा होने की उम्मीद नहीं है।
लार्ज कैप में ग्रासिम इंडस्ट्रीज और मिड कैप में अल्ट्राटेक सीमेंट और श्री सीमेंट विश्लेषकों का पसंदीदा है। उनके मुताबिक कम कीमतों और उत्पादन का असर इन कंपनियों पर नहीं पड़ने वाला है।
साथ ही, इन्होंने अपने पूंजी विस्तार कार्यक्रमों को भी पूरा कर लिया है। इस वजह से उन पर नगदी के बाहर जाने का बोझ नहीं रहेगा।