सरलता एक हल की गई जटिलता और शक्तिशाली निवेश करने का जरिया है। यह बात किसी निवेश विशेषज्ञ ने नहीं बल्कि दार्शनिकों और पेंटरों ने कहा था।
सरलता के संबंध में हमारे पास नोबेल पुरस्कार भी था,जो वैसे विचारों को मिलता था,जिनमें बिना मनोविज्ञान के आर्थिक अवधारणाओं को बताने की कोशिश नहीं होती थी। इसके अलावा निवेश में सेंटीमेंट्स की भी अहम भूमिका होती है,जो सजग निवेशक होते हैं वो ही मुनाफा बनाने में सफल हो पाते हैं।
जबकि भीड़चाल में चलने वाले लोग इमोशन्स,कंप्लसिव बिहेवियर और बॉयोलोजिकल ड्राइव का ज्यादा अनुसरण करते हैं। लिहाजा,बाजार की सफलता आर्थिक अवधारणाओं से कम लोगों के मनोविज्ञान या फिर यूं कहें कि उनकी मानसिकता पर ज्यादा निर्भर है।
मानसिकता
भीड़ मानसिकता पर किए गए प्रयोगों से यह पता चला है कि जब कोई अकेला इंसान किसी भीड़ का हिस्सा बनता है तो फिर वह तार्किक और अक्लमंद विचारों को पीछे छोड़ देता है। इस बाबत हावर्ड विश्वविद्यालय के सोलोमन एश्च ने एक मैचिंग लाइन प्रयोग संचालित किया था,जिसमें अकेले लोगों को तीन अन्य पंक्तियों की लंबाई से मिलान करने को कहा गया,जिस पर एक फीसदी से भी कम अकेले लोगों ने कोई गलती की।
लेकिन जब समूह में खड़ा कर उनसे यह पूछा गया कि जिन पंक्तियों से वो मिलान नहीं भी कर सके वो भी दरअसल मिली हुई पंक्तियां हैं तो इस पर उनमें से 75 फीसदी लोगों का जवाब हां था। जबकि किन्हीं दो पंक्तियों के बीच का अंतर कोई आसानी से देख सकता था। कहने का मतलब कोई भी बहुमत से अलग विचार या फिर सच कहने की हिम्मत नहीं कर सका।
एक और रोचक प्रयोग येल के स्टैनले मिलग्रैम ने किया,जिससे उनको पता चला कि भीड़ में अक्लमंद विचार बिड़ले ही हो पाते हैं। उन्होंने लोगों से किसी एक इंसान को दंड देने के लिए कहा तो मौजूद भीड़ में से 60 फीसदी से ज्यादा लोग उस इंसान को हर स्तर तक दंड देने को तैयार हो गए,जिससे वह मूच्र्छित होने तक हो सकता था।
शक्ति का नियम
और अगर हम इन सारे दंडों और दर्दों को एक बंद दरवाजे में किए गए प्रयोग की भांति मानते हुए शेयर बाजारों के प्रयोगों से अलग माने तो हमारे पास बड़ी संख्या में गणितज्ञ मौजूद हैं जो इस चीज को गणित की सहायता से साबित कर सकते हैं कि सरलता की ताकत क्या है? इस बारे में जॉर्ज किंग्सले ने इस बारे में प्रयोग द्वारा साबित कि या कि हमारे शक्ति नियम की समझ किस कदर संपूर्ण समाज और प्रकृति में व्याप्त हैं।
शेयर बाजार का संसार भी इन्हीं शक्ति नियमों के इर्द-गिर्द घूमता है कि जो काम पहले वाला करता है,उससे अलग कुछ भी करने को लोग तैयार नहीं होते, बल्कि उसी काम को और प्रभावी तरीके से दुहराते हैं। 2003 में इस बाबत मैने और कौशिक मित्रा ने एक इकॉनोफिजिक्स का पेपर जमा करते हुए यह पता करने की कोशिश भारतीय उत्पादों की कीमतों में जारी उतार-चढ़ाव के कारण क्या हैं?
इसे हमने शक्ति के नियम और गॉसियन बिहेवियर के बीच पता करने की कोशिश की। बाद में 2006 में सितभ्रा सिन्हा ने इस बात को फिर से साबित किया,कीमतों में उतार-चढ़ाव शक्ति के नियमों में समाहित हैं।
आंशिक ज्यामिति
इसमें रोचक पहलू फ्रैक्टल ज्यामिति का भी है,जिसे 1977 में बेनॉइट मैनडलब्रोट ने गणित के जरिए आंशिक ज्यामिति को साबित किया था। इस काम से सरलता अवधारणा को नया आयाम मिला,और इस ज्यामिति से न केवल समुद्रतट की लंबाई का पता कि या जाने लगा, बल्कि सिस्मोलॉजी और हेलीसिस्मोलॉजी में भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा।
आज के जमाने में इसका दूसरे अन्य वैज्ञानिक कामों में भी इस्तेमाल होता है। मसलन, मरीन ड्राइव मुंबई में ऐसे बहुत सारे फ्रैक्टल ड्रम हैं जो समुद्री किनारे की सुरक्षा करने के लिए हैं। यह बात वैज्ञानिक तरीके से भी साबित हो चुकी है कि समुद्र किनारों की सुरक्षा के लिहाज से ये ड्रम, कंक्रीट की दीवारों से कहीं बेहतर हैं। इसके अलावा गूगल की वेब की सफलता के पीछे भी इस फै्रक्टल का हाथ है।
वर्ल्ड वाइड वेब बो-टाई के रूप में है जिसके चार कंपोनेंट हैं, कोर, इंबाउंड लिंक्स, आउटगोइंग लिंक्स और डिस्कनेक्ड कल्स्टर्स। यह बिल्कुल फ्रैक्टल बिहेवियर की तरह है जैसा हमारे समाज कीमतों की प्रकृति में होता है। इसी का तकाजा है कि इलियट का तरंग सिद्धांत और डॉउ सिद्धांत पूरे 125 सालों तक टिक सका।
उनका कहना था कि मानव सामाजिक आर्थिक नीति में संलिप्त रहने वाला प्राणी है। इसी समान प्रकार का काम फै्रक्टल सेल्फ एफिनिटी करता है और यह एक प्रकार के नियम का अनुसरण करता है, निश्चित समय अवधि पर इसमें दुहराव होता है और कुछ खास चीजों की भांति काम करता है। इसमें भी सोने की कीमतों की भांति उतार-चढ़ाव होता है। इसके अलावा कमोडिटी कीमतें, महामारी, रियल एस्टेट कारोबार, राजनीति और सुख के लिए काम होता है।
चक्र
अर्थव्यवस्था की प्रकृति का अन्य रोचक पहलू यह है कि प्रकृति और ब्रम्हांड का इसके साथ एक निश्चित अंतराल पर संबंध होता है। यह साइकिल उसी से चलता है। एडवर्ड आर डेवी ने 1940 के दशक की शुरुआत में फाउंडेशन ऑफ साइकिल की शुरुआत की थी। इससे पहले वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि कारोबारी गतिविधियों में हाइड क्लार्क, औद्योगिक कीमतों में बेनर और सेटॅन के एनिमल पॉपुलेशन डॉटा साइकिल में परस्पर समानता थी।
9 साल पुराना साइकिल धर्म और क्रेडिट को जोड़ता है जो हर नौं सालों में लोगों द्वारा की गई जमा को चर्च जाने वाले लोगों की संख्या में होने वाली वृध्दि से जोड़ता है। इसी तरह 25 साल को वोलेटिलिटी साइकिल, 17 साल के इंटरनेशनल बेटल साइकिल और डिविडेंड साइकेलिटी भी शामिल है।
लेखक ग्लोबल अल्टरनेटिव रिसर्च कंपनी, ऑर्फेस केपिटल्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।