भारतीय रिजर्व बैंक के गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) और सूक्ष्म वित्त संस्थानों (एमएफआई) को दिए जाने वाले ऋण पर जोखिम भार के मामले में रियायत देने को आर्थिक वृद्धि को मदद देने वाले विवेकपूर्ण उपाय के तौर पर देखा जा रहा है। इससे समग्र स्तर पर बैंकिंग प्रणाली के लिए 20-30 आधार अंक या 40,000 करोड़ रुपये की पूंजी उपलब्ध होगी, जो 4 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त ऋण योग्य निधि में तब्दील हो जाएगी।
रिजर्व बैंक ने नवंबर, 2023 में एनबीएफसी को दिए जाने वाले बैंक ऋण पर जोखिम भार 100 फीसदी से बढ़ाकर 125 फीसदी कर दिया था। लेकिन रिजर्व बैंक ने मंगलवार को एनबीएफसी को दिए जाने वाले बैंकों के ऋण पर पहले लगने वाले जोखिम भार को फिर से लागू कर दिया है। यह 1 अप्रैल से लागू होगा। बैंकों के माइक्रो ऋण पर उसकी प्रकृति के अनुसार 125 फीसदी की जगह 75 फीसदी या 100 फीसदी जोखिम भार होगा।
नोमूरा के अनुसार भारत खास तौर पर उपभोक्ता मांग को तेजी से बढ़ाने के लिए अधिक समन्वयात्मक नीति अपना रहा है। तरक्की को रफ्तार देेने के लिए राजकोषीय, मौद्रिक, नकदी और व्यापक अर्थव्यवस्था में विवेकपूर्ण तरीके अपनाए गए हैं।
नोमूरा ने कहा, ‘कम जोखिम भार होने पर बैंक अधिक पूंजी जारी कर सकेंगे और एनबीएफसी और एमएफआई को अधिक ऋण जारी कर सकेंगे। उच्च रेटिंग प्राप्त एनबीएफसी बैंकों से कम लागत पर उधारी ले सकेंगी। हालांकि हमारा विश्वास है कि नीति को प्रभावी होने में अधिक समय लगेगा।’