भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को उठाए गए घाटे वाले मौजूदा ढांचे से अनुमानित ऋण घाटे (ईसीएल) वाले ढांचे में बदलाव करते समय अधिक प्रावधान की आवश्यकताओं का दायरा बढ़ाने के लिए 1 अप्रैल, 2027 से जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश कम करने के लिए चार वर्षों का समय देने का निर्णय लिया है। इसके अलावा नियामक ने एमएसएमई और आवास ऋणों के लिए ऋण के लिए जोखिम भार समायोजित करने का भी प्रस्ताव किया, जिससे बैंकों के लिए पूंजी उपलब्ध होगी।
प्रावधान को लेकर सूझ-बूझ वाली सीमा के साथ ईसीएल का यह नया ढांचा 1 अप्रैल, 2027 से सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों पर लागू करने का प्रस्ताव है। ईसीएल के मानदंड लघु वित्त बैंकों (एसएफबी), भुगतान बैंकों (पीबी), क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) और अखिल भारतीय वित्तीय संस्थानों (एआईएफआई) पर लागू नहीं होंगे।
आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा की घोषणा करते हुए कहा, ‘उन्हें जोखिम वाली परिसंपत्तियों में निवेश कम करने का वक्त (31 मार्च, 2031 तक) दिया जाएगा, ताकि उनके मौजूदा खातों पर अगर कोई अधिक प्रावधान हो, तो उसके एकमुश्त प्रभाव को कम किया जा सके।’
रेटिंग एजेंसी इक्रा ने अनुमानित ऋण घाटे (ईसीएल) के प्रभाव के लिए बैंकों के मूल पूंजी अनुपात में 300 से 400 आधार अंकों की कमी का अनुमान लगाया था। इक्रा ने कहा, ‘1 अप्रैल, 2025 से कार्यान्वयन के हमारे पहले के अनुमान के विपरीत 1 अप्रैल, 2027 से प्रस्तावित यह कार्यान्वयन हाल के वर्षों में परिसंपत्ति गुणवत्ता में लगातार सुधार को देखते हुए प्रभाव को कम करेगा।’
एजेंसी ने कहा कि वित्त वर्ष 2031 तक चरणबद्ध कार्यान्वयन, बैंकों को संबंधित प्रावधान की आवश्यकताओं के प्रबंधन के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करता है।
आरबीआई ने कहा कि ईसीएल मानदंडों से ऋण जोखिम प्रबंधन की कार्यप्रणाली में सुधार, विभिन्न संस्थानों में दर्ज किए गए वित्तीय विवरणों की बेहतर तुलना को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है और इस ढांचे को सहज तरीके से लागू करने के लिए तैयार किया गया है।