मौद्रिक नीति की रिपोर्ट के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने ऋण वृद्धि में अपनी हिस्सेदारी को और बढ़ाकर सितंबर 2025 में 59.7 प्रतिशत कर लिया, जो मार्च 2025 में 57.3 प्रतिशत और एक साल पहले 54 प्रतिशत थी।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंक समूहों के बीच सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऋण वृद्धि निजी क्षेत्र के बैंकों (9.4 प्रतिशत) की तुलना में अधिक (11.4 प्रतिशत) रही, जबकि विदेशी बैंकों की ऋण वृद्धि में गिरावट आई। भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति समीक्षा के साथ मौद्रिक नीति की अर्ध-वार्षिक रिपोर्ट भी जारी करता है।
वार्षिक आधार पर (19 सितंबर, 2025 तक) सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने ऋण वृद्धि में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी बरकरार रखी तथा नीति क्षेत्र के बैंको और विदेशी बैंकों की तुलना में उनकी हिस्सेदारी और बढ़ गई।
बैंकरों ने कहा कि पिछले 18 महीने में बाजार हिस्सेदारी में यह वृद्धि व्यापक आर्थिक हालात में बदलाव, बेहतर पूंजी और वित्तीय प्रोफाइल के साथ-साथ बेहतर संचालन और प्रणालियों में सुधार जैसे कारकों के संयोजन का परिणाम है।
उन्होंने कहा कि जहां शाखाओं का व्यापक नेटवर्क सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों को फायदा पहुंचाता है, वहीं उन्होंने प्रक्रियाओं में भी सुधार किया है, डिजिटल बैंकिंग में भारी निवेश किया है और प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए खास तौर पर खुदरा ऋण श्रेणी में नवीन योजनाएं तैयार कर रहे हैं।
मौद्रिक नीति की रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के गैर-खाद्य बैंक ऋण में वृद्धि 19 सितंबर, 2025 तक सालाना आधार धीमी पड़कर 10.2 प्रतिशत रह गई, जबकि एक साल पहले यह 13.0 प्रतिशत थी। हालांकि दूसरी तिमाही (सितंबर 2025 को समाप्त तिमाही) के दौरान रफ्तार में तेजी देखी गई।
बैंक ऋण में अलग रुझान से पता चलता है कि सभी क्षेत्रों में ऋण वृद्धि में नरमी आई है। हालांकि औद्योगिक ऋण नरम हुआ, लेकिन यह अपने ऐतिहासिक 10 साल के औसत से मामूली रूप से अधिक रहा और हाल के महीनों में वृद्धि में तेजी के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं। वृद्धि में नरमी के बावजूद व्यक्तिगत ऋण और सेवा क्षेत्र ऋण समूची बैंक ऋण वृद्धि के मुख्य संचालक बने रहे। रिपोर्ट में कहा गया कि कृषि और संबद्ध गतिविधियों में मामूली ऋण वृद्धि दर्ज की गई और हाल के महीनों में धीरे-धीरे मजबूती आई।