देश में बिजली की कमी की वजह कई सरकारें इस सेक्टर में निवेशकों को खीचें कर लाने की कोशिश कर रही हैं। सबसे बड़ी कोशिश बिजली उत्पादन, वितरण और ट्रांसमिशन की तरफ निवेशकों को आकर्षित करने की रही है।
इस वजह से कई कंपनियों ने इस सेक्टर में भारी निवेश भी किया है। इससे न सिर्फ ऊर्जा उत्पादन से जुड़ी कंपनियों के लिए मौके सामने आए, बल्कि इन्हें पैसे मुहैया करवाने वाली कंपनियों की भी चांदी हो गई।
ऐसे ही एक कंपनी है, पावर फाइनैंस कॉर्पोरेशन (पीएफसी)। ऊंची ब्याज दरों, नगदी के अभाव और संपत्तियों की गिरती कीमत की वजह से आज कई कंपनियों की हालत पस्त है।
लेकिन पीएफसी ने कर्जों बांटने की स्थिर दर, अपनी विशेषज्ञता और बाजार में अपनी मजबूत स्थिति की वजह से खुद को मजबूत बनाए रखा है।
चमकदार भविष्य
आज मुल्क में ऊर्जा सेक्टर में मोटा निवेश किया तो जा रहा है, लेकिन हम अब भी बिजली की मांग और पूर्ति में 10 फीसदी का बड़ा अंतर मौजूद है। वैसे, भारत अब भी सात फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है और अगले कई सालों में यह रफ्तार बरकरार रहने की उम्मीद है।
ऐसे में हमारे देश में प्रति व्यक्ति बिजली का उपभोग सिर्फ 600 यूनिट है, जो अंतरराष्ट्रीय मानकों का सिर्फ चौथाई हिस्सा भर है। सरकार ने इस पंचवर्षीय योजना में मौजूदा उत्पादन क्षमता में 2012 तक 79 हजार मेगावॉट की अतिरिक्त उत्पादन क्षमता को जोड़ने का लक्ष्य रखा है।
इसमें सरकार को उम्मीद है कि 200 अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी। ऐसे में इस बिजली के उत्पादन के लिए संयंत्रों के साथ-साथ वितरण और ट्रांसमिशन में भी मोटे निवेश की भी जरूरत होगी।
मजूबत आधार
पीएफसी की इस कारोबार में अच्छी खासी पकड़ है। इस बाजार के 20 फीसदी कारोबार पर उसी का कब्जा है। पिछले पांच सालों में कंपनी ने कर्जे देने की रफ्तार में 43 फीसदी का इजाफा किया है।
साथ ही, इसकी लेनदारियों में भी 20 फीसदी का इजाफा हुआ है। दिसंबर, 2008 को खत्म हुए नौ महीनों में इसने पिछले साल के मुकाबले इस साल 45 फीसदी ज्यादा कर्ज बांटे। यह दिखाता है कि यह संस्थान कितनी तेजी से कर्जे बांट रहा है, ताकि कंपनियां जल्द से जल्द काम शुरू कर सकें।
वित्त वर्ष 2008 में कंपनी ने 120 फीसदी ज्यादा कर्जे बांटे थे। साथ ही, बिजली परियोजनाओं में सबसे ज्यादा पैसे प्रोजेक्ट के पूरा होने के वक्त लिए जाते हैं।
इससे पता चलता है कि कंपनी की कर्जे बांटने की दर इसी रफ्तार से बढ़ती रहेगी। पीएफसी को अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट्स के साथ-साथ कई दूसरी परियोजनाओं के लिए नोडल एजेंसी भी करार दे दिया गया है।
इससे कंपनी को यूएमपीपी की बोली जीतने वाली कंपनी के लिए अलग-अलग चीजों के वास्ते सहमति हासिल करने के बदले कंपनियों से फीस भी वसूल सकती है। चार यूएमपीपी की पहले ही नीलामी हो चुकी है, जबकि नौ के बारे में अभी घोषणा होनी बाकी है। इससे इतने करीब से जुड़े होने का फायदा कंपनी को जरूर होगा।
बड़ा है तो बेहतर है
हालांकि, पीएफसी और दूसरे संस्थानों की ब्याज दर बैंकों की ब्याज दरों से ज्यादा है। लेकिन नियमों और बड़े फंड की जरूरत की वजह इनके लिए विकास के पूरे मौके मौजूद हैं। इस क्षेत्र में विशेषज्ञता और जबरदस्त ट्रैक रिकॉर्ड की वजह से पीएफसी के लिए मौकों की कोई कमी नहीं है।
बिजली परियोजनाओं में मोटे कर्ज की जरूरत होती है। इसीलिए कंपनियों को पीएफसी जैसे एक ही स्रोत से कर्ज लेना ज्यादा पसंद आता है। बैंकों के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उनके सामने किसी खास कंपनी, सेक्टर या कारोबारी को कर्ज देने की एक सीमा होती है।
एक गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थान (एनबीएफसी) होने की वजह से पीएफसी के लिए सीआरआर और सीएलआर जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देना जरूरी नहीं है। इसीलिए उसके पास हर वक्त अच्छी-खासी रकम तैयार रही है।
अच्छा विकास
ब्याज दरों में हुई कटौती की वजह से न सिर्फ कंपनियों की लागत में कमी आई है, बल्कि इससे उनके कर्ज वसूल नहीं कर पाने का डर भी कम हुआ है। तादाद से ज्यादा गुणवत्ता पर जोर देने की पीएफसी की नीति आज रंग लाती दिखाई दे रही है।
इसकी वजह से उसने तेजी से विकास भी किया है, तो उसकी गैर निष्पादित अस्तियों (एनपीए) की मात्रा भी न के बराबर है। आज तो ग्रामीण विद्युतीकरण पर जोर दिए जाने की वजह से इस क्षेत्र में भी काफी मौके मौजूद हैं।
इस कार्यक्रम के तहत कम से कम एक लाख गांवों का विद्युतीकरण किया जाना है। साथ ही, अब तो गैर पारंपरागत स्रोतों पर भी काफी जोर दिया जाने लगा है। हालांकि, यह कंपनी सरकारी कंपनियों को तरजीह देती है, जो चिंता का एक कारण हो सकता है।