ज्यादातर लोग टैक्स सेविंग फंड में निवेश करते समय कुछ परंपरागत तरीकों जैसे पब्लिक प्रोवीडेंट फंड, नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट और पांच वर्ष की अवधि की जमा योजनाओं में निवेश करते हैं।
हालांकि इसके अलावा भी कुछ इक्विटी आधारित इंस्ट्रूमेंट हैं जो खास अवधि के बाद बेहतर प्रतिफल देते हैं। कुछ इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस) जैसी योजनाएं भी हैं। इसके अलावा म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों की पेंशन योजनाएं भी हैं जो डेट और इक्विटी इंस्ट्रूमेंट में निवेश करती हैं।
म्युचुअल फंड की पेंशन योजनाओं में ईएलएसएस की तरह ही तीन वर्षों की लॉक-इन अवधि जुड़ी होती है। मौजूदा समय में ऐसी दो तरह की योजनाएं उपलब्ध हैं- यूटीआई रिटायरमेंट बेनिफिट पेंशन प्लान (यूटीआई आरबीपी) और टेम्पलटन इंडिया पेंशन प्लान (टीआईपीपी)।
उल्लेखनीय है कि इन दोनों योजनाओं में निवेश करने पर करों में रियायत मिलती है क्योंकि आयकर की धारा 80 सी के तहत साल के दौरान एक लाख तक के निवेश कर छूट के दायरे में आता है।
गौरतलब है कि ये दोनों पेंशन योजनाएं पिछले दस सालों से अस्तित्व में हैं और इस लिहाज से निवेशक निवेश करने से पहले इनके पिछले प्रदर्शन का भी आसानी से पता लगा सकते हैं।
हालांकि यहां पर म्युचुअल फंड और बीमा कंपनियों के द्वारा ऑफर किए जा रही पेंशन योजनाओं के अंतर को जानना बहुत महत्वपूर्ण है। बीमा कंपनियां में प्रवाह निरंतर होता है और निवेशकों को सालाना मुनाफा मिलता है।
जो म्युचुअल फंड कंपनियां इन पेंशन योजनाओं को बाजार में उतारती हैं, उनका लक्ष्य एक ही होता है लेकिन इन लक्ष्यों की प्राप्ति सामान्य म्युचुअल फंडों की तरह कार्य करके ही प्राप्त करके की जाती है।
कहने का मतलब यह कि जैसे ही निवेशक 58 वर्ष के होते हैं उनको प्रत्येक महीने कुछ विशिष्ट यूनिट का प्रतिदान करके पेंशन की राशि प्रदान की जाएगी। इसके अलावा निवेशकों को अपनी पूरी राशि निकालने और निवेश को रोकने का विकल्प मौजूद रहता है।
सेवानिवृत्ति के बाद निवेशकों के लिए योजनाओं में अपने निवेश को बनाए रखना अनिवार्य नहीं है जो उन्हें योजनाओं में लचीलापन का अवसर प्रदान करता है। ये योजनाएं सतत खुली होती है।
इन योजनाओं में कोई भी साल में कभी भी निवेश कर सकता है और ऐसे कई तरीके हैं जिसमें निवेशक अपना पैसा डाल सकते हैं। यह एक बार कुछ पैसों का निवेश या फिर नियमित तौर पर सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (एसआईपी) के जरिए किया जा सकता है।
इसके अलावा निवेशकों को कई बीमा पॉलिसियों की तरह कुछ निश्चित वर्षों की अवधि तक के लिए निवेश को लगातार जारी रखने की बाध्यता नहीं है। चूंकि पेंशन का फायदा 58 वर्ष की अवधि के बाद ही होगा, इसमें शुरुआती तीन सालों के बाद कभी भी अपने पैसों को निकालने की छूट होती है।
जहां तक खर्च की बात है तो यह एक्जिट लोड के रूप में होगा जो इस बात पर निर्भर करेगा कि निवेशक कितने समय तक योजनाओं से जुड़ा रहता है। यह बात शायद निवेशकों के लिए शायद सबसे दिलचस्प होती है।
ये योजनाएं संतुलित होती हैं इसलिए प्रतिफल के शुध्द इक्विटी ऑप्शन से कम लेकिन डेट ऑप्शन से ज्यादा होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
