अमेरिका द्वारा शुल्क में बढ़ोतरी से राहत देने के लिए केंद्र सरकार सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्यमों (एमएसएमई) को दिए जाने वाले ऋण के मामले में गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) के वर्गीकरण की अवधि बढ़ा सकती है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापे जाने की शर्त पर कहा कि सरकार एनपीए के रूप में एमएसएमई के ऋण के वर्गीकरण की अवधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने पर विचार कर रही है।
वरिठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘एमएसएमई के ऋण भुगतान में चूक की अवधि 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन करने के प्रस्ताव पर मंत्रिमंडल जल्द फैसला कर सकता है।’
अधिकारी ने आगे कहा कि इस कदम से नकदी के संकट से जूझ रहे एमएसएमई को अतिरिक्त वक्त मिल सकेगा और वे अपने ऋण भुगतान को नियमित रख सकेंगे और इससे निर्यात में आए व्यवधान से उनकी सुरक्षा हो सकेगी।
इस सिलसिले में वित्त मंत्रालय, भारतीय रिजर्व बैंक और एमएसएमई मंत्रालय को भेजे गए ई-मेल का कोई जवाब नहीं मिल सका।
इंडिया एमएसएमई फोरम के प्रेसीडेंट विनोद कुमार ने कहा कि एमएसएमई के लिए एनपीए चूक की अवधि बढ़ाकर 180 दिन किए जाने से आसानी से 10 लाख नौकरियां बच सकेंगी और इससे एमएसएमई को पुनर्भुगतान की बेहतर योजना बनाने की सुविधा मिलेगी।
कुमार ने कहा, ‘कृषि क्षेत्र के लिए अक्सर ऐसा किया जाता है, जहां ऋण पर पुनर्भुगतान का मॉरेटोरियम 180 दिन से 360 दिन तक हो जाता है। तमाम एमएसएमई का भी एक चक्र होता है और नकदी की आवक एक विशेष सीजन में होती है, जैसा कि कृषि क्षेत्र के मामले में होता है।’
कोविड-19 के दौरान रिजर्व बैंक ने एनपीए वर्गीकरण की अवधि सीमित वक्त के लिए 90 दिन से बढ़ाकर 180 दिन कर दी थी।
अधिकारी ने आगे यह भी उल्लेख किया कि एमएसएमई के लिए एसएमए की अवधि में भी राहत दी जा सकती है। एसएमए, ऋण खाते का एक वर्गीकरण है, जो बैंक करते हैं। अगर उधार लेने वाले पर दबाव के लक्षण दिखते हैं तो उन्हें इससे आगामी एनपीए खातों को चिह्नित करने में मदद मिलती है।
बैंक भी अमेरिका के साथ कारोबार से जुड़ी आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान का अनुमान लगा रहे हैं और उनका मानना है कि इससे कुछ छोटे कारोबारियों की ऋण भुगतान करने की क्षमता प्रभावित हो सकती है।
देश के सबसे बड़े ऋणदाता भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन सीएस शेट्टी ने पिछले सप्ताह बैंक के परिणाम की घोषणा करते हुए कहा था कि शुल्क का भारत के बैंकिंग क्षेत्र पर सीधा असर सीमित रहने की उम्मीद है, लेकिन अनिश्चितता के कारण व्यय में होने वाली देरी से नुकसान हो सकता है।