मंदी के इस दौर में निवेशक अब निवेश के ऐसे मौके और क्षेत्र की तलाश कर रहे हैं जो बिना किसी जोखिम के ज्यादा से ज्यादा प्रतिफल दे रहे हैं।
इस समय शेयर बाजार और रियल एस्टेट कारोबार मंदी के चंगुल में दम तोड़ता नजर आ रहा है, इस लिहाज से निवेशकों के लिए बेहतर मौकेतलाशना और भी ज्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है।
हालांकि पिछले कुछ समय से सोना कारोबार की दृष्टि से बेहतर रहा है लेकिन इसमें अनिश्चिता की गुंजाइश अधिक है और कीमतों में उतार-चढाव की बात कुछ ज्यादा ही होती है। पिछले दो सालों के दौरान सावधि जमा योजना (एफएमपी) निवेशकों के दिलों को जीतने में काफी हद तक सफल रही थी लेकिन नई नियामावली और ब्याज दरों में आ रही गिरावट के कारण इसमें लोगों का आकर्षण लगभग समाप्त हो गया है।
हालत तक यहां तक पहुंच गई है कि सावधि जमा (एफडी) जो पिछले तीन-चार महीनों से आकर्षक लग रहे हैं उसके आकर्षण के कमजोर रह पाने में कोई कसर बाकी नहीं रह गई है। हालांकि जोखिम लेने से परहेज करनेवाले और वरिष्ठ नागरिकों के लिए एफडी अभी भी बेहतर विकल्प है।
अन्य लोगों केलिए बाजार में अभी दो तरह की डेट योजनाएं हैं जो पिछले कुछ महीनों के दौरान मजबूती से उभरे हैं और ये दोनों फंड हैं गिल्ट और इनकम फंड। जहां तक गिल्ट फंड की बात है तो यह दीर्घ अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करता है जिसमें केंद्रीय और राज्य सरकार के डेटेड प्रतिभूतियां और ट्रीजरी बिल शामिल हैं।
जैसा कि पहले से ही स्पष्ट है कि ये फंड सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करते हैं इसलिए जोखिम की संभावना नहीं के बराबर होती है। दूसरी तरफ इनकम फंड के पोर्टफोलियो में गिल्ट, सार्वजनिक क्षेत्र की इकाईयों के बॉन्ड और कॉर्पोरेट बॉन्ड शामिल होते हैं।
निश्चित तौर पर इनमें गिल्ट फंडों से बेहतर प्रतिफल देने की क्षमता होती है लेकिन साथ ही कॉर्पोरेट पेपर्स होने की वजह से इसमें जोखिम की संभावना भी अधिक होती है। इन फंडों केसाथ तीन तरह के जोखिम जुड़े होते हैं- क्रेडिट जोखिम, नकदी से जुड़े जोखिम और ब्याज दरों से जुड़े जोखिम।
के्रडिट जोखिम बुनियादी तौर पर कर्जधारक के कर्ज की भुगतान करने की क्षमताओं से जुड़ा होता है और इसलिए क्रेडिट जोखिम की संभावना अधिक होने का मतलब यह होता है कि कर्जधारक कर्जों के पुनर्भुगतान करने की स्थिति में नहीं होगा।
सरकारी प्रतिभूतियों में जोखिम का खतरा नहीं के बराबर माना जाता है हालांकि अन्य तरह के फिक्स्ड इनकम निवेश में जोखिम की संभावना ज्यादा होती है। किसी भी अर्थव्यवस्था में सरकारी प्रतिभूतियों को सबसे कम जोखिम वाला माना जाता है।
इस लिहाज से किसी भी निवेश के अन्य विकल्पों की बजाय गिल्ट फंड को ज्यादा बेहतर माना जाता है। नकदी से जुड़े जोखिम का मतलब कर्जदाता के किसी भी समय प्रतिभूतियों की बिक्री करने से है।
उदाहरण के लिए सोने के साथ काफी अधिक तरलता जुड़ी होती हैं क्योंकि इसे बड़ी आसानी से बेचा जा सकता है। कभी-कभी निवेश के लिए क्षमातावान खरीदार नहीं होते हैं और इसलिए इसे वास्तविक मूल्य से कम कीमत पर बेचा जाता है।
ब्याज दरों से जुड़े जोखिम का मतलब ब्याज दरों में आनेवाले उतार-चढाव से है और इसका सीधा प्रभाव बॉन्ड की कीमता पर पड़ता है। ब्याज दरों और प्रतिभूतियों की कीमतों में छत्तीस का आंकड़ा होता है और सबसे पहले यह सरकारी प्रतिभूतियों में दिखाई देता है।
जब ब्याज दरों में कमी आती है तो बॉन्ड की कीमत में तेजी आती है जबकि ब्याज दरों में तेजी आने की स्थिति में बॉन्ड की कीमतों में कमी आती है। ये फंड ब्याद दरों में गिरावट की स्थिति में बेहतर रिटर्न देते हैं।
इनकम फंडों से तुलना करें तो गिल्ट फंड के साथ जोखिम शून्य होता है जबकि तरलता की स्थिति काफी बेहतर होती है जिसके लिए गिल्ट फंड में सक्रिय संस्थागत भागीदारी को जिम्मेदार माना जाता है। हालांकि इसके बाद गिल्ट फंड काफी अनिश्चितता वाले हो सकते हैं।
गिल्ट पेपर्स की परिपक्वता अवधि जितनी अधिक होगी नफा-नुकसान भी उसी अनुपात में होगा। कॉर्पोरेट बॉन्ड की अवधि दो से पांच सालों के बीच की होती है। गिल्ट के लिए परिपक्वता की अवधि कभी-कभी 30 सलों तक की भी हो सकती है।
चार से छह सालों की परिपक्तवा अवधि वाले गिल्ट मध्यम अवधि के गिल्ट फंडों की श्रेणी में आते हैं। लंबी अवधि के गिल्ट फंड वे होते हैं जिनका कारोबार 10 सालों की अधिक की परिपक्वता अवधि वाले गिल्ट में ज्यादा होता है।
रिजर्व बैंक की प्रमुख दरों में कटौती करने की नीति के बाद से पिछले कुछ महीनों के दौरान बॉन्ड की कीमतों में खासी तेजी देखने को मिली है। रिजर्व बैंक की मांग में तेजी लाने और अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए ब्याज दरों को कम रखने की नीति पर चल सकता है।
लेखक माई फाइनैंशियल एडवाइजर के निदेशक हैं।